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बरना पर्व पर थरुहट क्षेत्र में होता है 48 घंटे का लॉकडाउन

वाल्मीकि टाइगर रिजर्व वन क्षेत्र से सटे थरुहट के रिहायशी क्षेत्रों में भादो के महीने में बरना पर्व को थारू समुदाय द्वारा प्रमुखता से मनाया जाता है.

वाल्मीकिनगर. वाल्मीकि टाइगर रिजर्व वन क्षेत्र से सटे थरुहट के रिहायशी क्षेत्रों में भादो के महीने में बरना पर्व को थारू समुदाय द्वारा प्रमुखता से मनाया जाता है. इस पर्व में खासकर वनस्पति की पूजा के साथ दुर्गा स्वरूप कुंवारी कन्याओं की भी पूजा की जाती है. थरुहट क्षेत्र की आबादी अधिक होने के कारण इस पर्व को अलग-अलग गांव के लोग पूरे भादों के महीने में अलग-अलग दिन 48 घंटे के लिए मनाते हैं. मंगलवार को संतपुर-सोहरिया पंचायत के घोटवा टोला गांव में बरना पर्व मनाया जा रहा है. नौ कुंवारी कन्याओं की पूजा बरना पर्व के अवसर पर गांव के लोगों के द्वारा गांव की 9 कुंवारी कन्याओं को मां दुर्गा स्वरूप मानते हुए उनकी पूजा अर्चना के बाद भोजन कराया जाता है. तत्पश्चात कन्याओं को खोईचा में अन्न और उपहार दिया जाता है. वातावरण का होता है शुद्धिकरण इस अवसर पर वातावरण पूरी तरह शुद्ध हो जाता है. कारण की यह पर्व 48 घंटे का होता है. इस पर्व पर ग्रामीणों के द्वारा 48 घंटे तक लोगों की चहल-पहल शून्य हो जाती है. एहतियात बरतने से वातावरण पूरी तरह शुद्ध होता है. कारण की ग्रामीण पर्व पर नियमों और परंपराओं का पालन सख्ती से करते हैं. लोग घरों से बाहर नहीं निकलने के लिए पूरी तरह कटिबद्ध होते हैं और इस नियम का पालन पूरी सख्ती से करते हैं. पीपल के पेड़ के नीचे की जाती है कन्याओं की पूजा इस पर्व के दौरान गांव के पीपल के पेड़ जिसे ग्रामीण ब्रह्म भी मानते हैं, उसके नीचे श्रद्धा भाव से ग्रामीण कुंवारी कन्याओं की पूजा करते हैं. वही उनकी पांव पखारने के बाद उन्हें भोजन के उपरांत यथोचित दक्षिणा में अन्न और पैसा देकर विदा करते हैं. 48 घंटे का संपूर्ण कार्य विराम घोटवा टोला गांव के वैध सकलदेव महतो ने बताया कि बरना पर्व की परंपरा काफी पूर्व काल से चली आ रही है. पूर्वजों द्वारा इस पर्व को मनाने की शुरुआत भविष्य की बेहतर सोच के तहत की गयी थी. उन्होंने बताया कि इस पर्व के अवसर पर गांव वालों द्वारा वनस्पति वृक्ष, पौधों की पूजा की जाती है. 48 घंटे तक एक तरह से पूरे गांव में लॉकडाउन का सख्ती से पालन किया जाता है. गांव के लोगों द्वारा 48 घंटे पूर्व तैयारी के तहत खाने पीने और अन्य जरूरी वस्तुओं की व्यवस्था कर ली जाती है. ग्रामीण 48 घंटे तक घर से बाहर नहीं निकलते. यहां तक कि पीने के पानी की व्यवस्था भी लोग हैंड पंप से सुबह 5 बजे के पूर्व या शाम 5 बजे के बाद ही लेते हैं. गांव वाले किसी भी हरी वनस्पति को नहीं तोड़ते चाहे वह खाने की सब्जी हीं क्यूं न हो. रोजी रोजगार के लिए भी ग्रामीण अपने घरों से 48 घंटे तक बाहर नहीं निकलते.

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