कटोरिया : कुम्हार के चाक से निर्मित दीपक का प्रकाश यूं तो युगों से हमारे घरों को रौशन करता रहा है़ लेकिन इस पुश्तैनी धंधा से जुड़े कुम्हार जाति के कारीगरों के घर अंधेरे का राज कायम है़ फैशन के दौर और आधुनिक युग में इलेक्ट्रॉनिक लाई की जगमगाहट ने मिट्टी के दीया की डिमांड और महत्व को काफी कम कर दिया है़ जिससे वर्तमान समय में चाक पर मिट्टी के बर्तन व दीया गढ़ने वाले कारीगरों के चेहरे मुरझाये हुए हैं.
प्रखंड के कठौन पंचायत के डोमकट्टा गांव में कुम्हार जाति के परिवारों की संख्या करीब छह दर्जन हैं. जिसमें दो दर्जन घरों में आज भी चाक पर कुम्हार मिट्टी का दीया, कलश, घडा, भुटकी, ढिबरी, सरपोश आदि गढ़ने का काम करते हैं. बुजुर्ग कुम्हार सिंहेश्वर पंडित (85वर्ष) ने बताया कि वे अपने समय में दूसरों के घरों पर जाकर एक हजार खपड़ा चाक पर तैयार करते थे,
तो उन्हें मजदूरी में पांच रुपये मिलते थे़ मजदूरी की राशि से घर का सारा खर्च चल जाता था़ आज पांच हजार खपड़ा तैयार करने पर पच्चीस सौ रुपये मजदूरी मिलते हैं, लेकिन महंगाई के कारण आज की मजदूरी काफी कम लगती है़ पहले एक घड़ा की कीमत दो आना मिलती थी, तो काफी खुशी होती थी़ लेकिन आज वही घडा पंद्रह से तीस रुपये में भी बिक जाता है,
लेकिन वह खुशी व संतुष्टि नसीब नहीं हो पाती़ डोमकट्टा गांव के किसान बद्री पंडित, उनकी पत्नी गेनिया देवी, बिरंची पंडित व उनकी पत्नी मीरा देवी ने बताया कि दीपावली को लेकर दीया, कलश, सरपोश आदि का स्टॉक कर रहे हैं़
लगभग एक किलोमीटर दूर से ललकी मिट्टी लाना पड़ता है़ चाक पर दीया व बर्तनों को तैयार करने के बाद उसे पकाने में भी बहुत मेहनत तो लगती ही है,
खर्च भी अधिक गिर जाता है़ तैयार बर्तनों व दीपक को चार किलोमीटर दूर कटोरिया बाजार ले जाकर बेचना पड़ता है़ इस कारण उन्हें पर्याप्त आमदनी नहीं मिल पाती़ डोमकट्टा गांव में चाक चलाने वाले कुम्हारों में पैरू पंडित, रामदेव पंडित, लक्ष्मण पंडित, लालू पंडित, अनिरूद्ध पंडित, धनौछी पंडित आदि शामिल हैं.
– सामान दाममिट्टी का दीया 80 से 100 रुपये प्रति सैकड़ामिट्टी की भुटकी 2 से 4 रुपये प्रति पीसमिट्टी की ढीबरी 5 रुपये प्रति पीसमिट्टी का घड़ा 15 से 25 रुपये प्रति पीस