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आजादी के सात दशक बाद भी लोहागढ़ नदी पर नहीं बना पुल

बांका : फुल्लीडुमर प्रखंड क्षेत्र के भितिया स्थित लोहागढ़ नदी में आजादी के सात दशक बाद भी एक पुल नहीं बन पाया है. जिस नदी के रास्ते रोजाना दर्जनों गांवों के लोगों का आवाजाही होती है. प्रत्येक दिन राहगीर लोहागढ़ नदी के पास पहुंचते ही जूता- चप्पल उतार लेते हैं, इसके बाद नदी पार करते […]

बांका : फुल्लीडुमर प्रखंड क्षेत्र के भितिया स्थित लोहागढ़ नदी में आजादी के सात दशक बाद भी एक पुल नहीं बन पाया है. जिस नदी के रास्ते रोजाना दर्जनों गांवों के लोगों का आवाजाही होती है. प्रत्येक दिन राहगीर लोहागढ़ नदी के पास पहुंचते ही जूता- चप्पल उतार लेते हैं, इसके बाद नदी पार करते हैं.
साथ ही अपना पायजामा समेट कर नदी पार करने को मजबूर हैं. इससे आसपास के ग्रामीणों सहित अन्य राहगीरों में नाराजगी है. पुल नहीं रहने के कारण उक्त मार्ग में पड़ने वाले दर्जन भर गांव में शादी समारोह सहित अन्य कार्यक्रमों में काफी परेशानियां होती है.
चार पहिया वाहन इस मार्ग में बड़ी मुश्किल से पहुंच पाती है. बारिश के दिन में ये परेशानियां और भी बढ़ जाती है. ग्रामीणों की मानें तो उक्त मार्ग में दर्जनों गांवों का आवाजाही है, जिसमें प्रमुख रुप से कठढांड, नावाडीह, पुतरिया, अंगराजोर, नाढ़ातरी, बिरनाडीह, मचना, बरमसिया सहित अन्य गांव शामिल हैं. जहां तक पहुंचने में राहगीर व आमलोगों को परेशानियां होती है.
स्वतंत्रता सेनानियों का गढ़ है भितिया पंचायत
देश को आजादी मिले सात दशक बीत चुके हैं, जहां की तीसरी पीढ़ी के बच्चें होश संभाल चुके हैं, बावजूद आजतक लोहागढ़ नदी में पुल नहीं बन पाया है. जबकि भितिया पंचायत स्वतंत्रता सेनानियों का गढ़ रहा है. आजादी के समय भितिया के समीप नाढ़ा पहाड़ में स्वतंत्रता सेनानी महेंद्र गोप, श्रीधर सिंह सहित दर्जनों स्वतंत्रता सेनानियों ने शरण लिया था. जहां से अंग्रेजों को खदेड़ने की रणनीति बनायी जाती थी. बावजूद यह इलाका आज भी विकास के मायनों में पिछड़ा हुआ है.
स्कूल जाने में छात्र-छात्राअों को होती है परेशानी
आसपास के ग्रामीण सोहन पंडित, महेश पंजियारा, रौशन सिंहि, सागीर राय, राजाराम साह सहित अन्य ने बताया है कि उक्त नदी में पुल नहीं रहने से चार पहिया वाहनों की आवाजाही में परेशानियां होती है. बारिश के दिनों ये समस्या और भी बढ़ जाती है. वहीं स्कूली छात्र- छात्राओं को स्कूल पहुंचने में भी व्यवधान होता है. किसी के बीमार पड़ने पर नदी पार करने में परेशानियां होती है. नदी पार करते वक्त लोग जूता व पायजामा समेट लेते हैं.

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