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Loksabha Elections 2024: इस बार किसका चलेगा मगध में जादू?

Loksabha Elections 2024 औरंगाबाद निखिल कुमार के के पिता सत्येंद्र नारायण सिन्हा और पत्नी श्यामा सिंह सांसद चुनी जाती रही हैं. यह दूसरा मौका है जब कांग्रेस के उम्मीदवार इस सीट पर नहीं हैं. मुख्य मुकाबला भाजपा के मौजूदा सांसद सुशील कुमार सिंह और राजद के अभय कुशवाहा के बीच होगा

Loksabha Elections 2024 लोकसभा चुनाव में मगध इलाके की चार सीटें गया, नवादा, औरंगाबाद और जमुई में ऊंट किस करवट बैठेगा, इसको लेकर चौक चौराहे पर चर्चा शुरू हो गयी है. पहले चरण की चार सीटों के लिए 19 अप्रैल को मतदान होना है. इन चारों सीटों के लिए गुरुवार को नामांकन खत्म हो जायेगा. गया की सीट पर देश दुनिया की नजरें टिकी हैं. इस सीट पर एक ओर एनडीए के प्रत्याशी के रूप में पूर्व मुख्यमंत्री जीतन राम मांझी अपनी पार्टी ‘हम’ से उम्मीदवार हैं.

गया में मांझी और सर्वजीत आमने सामने

इस बार उन्हें घेरने के लिए महागठबंधन से राजद के कुमार सर्वजीत को मैदान में उतारा गया है. मांझी पिछली दफा भी गया सुरक्षित सीट से उम्मीदवार थे. अंतर यह था कि मांझी 2019 के चुनाव में महागठबंधन के घटक थे. इस बार उन्होंने एनडीए का दामन पकड़ा है. पिछले 10 सालों में मांझी कभी भाजपा तो कभी राजद के करीब रहे हैं. बिहार में नयी सरकार बनने के पूर्व ही मांझी एनडीए में शामिल हो गये थे. एनडीए से उनके पुत्र संतोष सुमन विधान पार्षद और राज्य सरकार में मंत्री हैं.

औरंगाबाद सीट पर फंसा है पेंच

पड़ोस की औरंगाबाद सीट पर इस बार भी कांग्रेस खाली हाथ रह गयी है. औरंगाबाद की सीट कांग्रेस नेता निखिल कुमार की परंपरागत सीट रही है. यहां से स्वयं निखिल कुमार के अलावा उनके पिता सत्येंद्र नारायण सिन्हा और पत्नी श्यामा सिंह सांसद चुनी जाती रही हैं. यह दूसरा मौका है जब कांग्रेस के उम्मीदवार इस सीट पर नहीं हैं. मुख्य मुकाबला भाजपा के मौजूदा सांसद सुशील कुमार सिंह और राजद के अभय कुशवाहा के बीच होगा. अभय कुशवाहा हाल तक जदयू के जिलाध्यक्ष थे. राजद का सिंबल मिलने के एक दिन पहले वे पार्टी में शामिल हुए और उन्हें उम्मीदवार बनाया गया.

पिछली दफा अंतिम समय में राजद ने औरंगाबाद की सीट ‘हम’ को देकर उपेंद्र प्रसाद को उम्मीदवार बनवाया था. उपेंद्र प्रसाद मात्र 72 हजार मतों से चुनाव हार गये. उन्हें तीन लाख 58 हजार से अधिक वोट मिले और वो दूसरे नंबर पर रहे. जीतने वाले भाजपा के सुशील कुमार सिंह को चार लाख 31 हजार से अधिक वोट आये. इस बार भाजपा ने एक बार फिर सुशील कुमार सिंह पर ही भरोसा जताया है. अब देखना यह होगा कि कांग्रेस समर्थक मतदाताओं का रुख किस ओर होगा.

रोचक होगी नवादा में चुनावी जंग

नवादा की चुनावी जंग और भी रोचक होने वाली है. पिछली दफा 2019 में नवादा की सीट एनडीए में लोजपा के खाते में गयी थी. लोजपा ने पूर्व सांसद सूरजभान सिंह के भाई चंदन सिंह को उम्मीदवार बनाया और उन्हें जीत भी हासिल हुई. इस बार नवादा की सीट पर भाजपा ने अपना उम्मीदवार दिया है. भाजपा ने पूर्व केंद्रीय मंत्री डा सीपी ठाकुर के बेटे विवेक ठाकुर को अपना उम्मीदवार बनाया है.

विवेक ठाकुर फिलहाल राज्यसभा के सदस्य हैं. उनके मुकाबले राजद ने इस सीट पर नये उम्मीदवार श्रवण कुशवाहा पर दांव लगाया है. श्रवण कुशवाहा को उम्मीदवार बनाये जाने से यहां के पूर्व राजद नेता रहे विनोद यादव ने पार्टी से इस्तीफा दे दिया है. विनोद यादव जेल में बंद राजद नेता राजबल्लभ यादव के भाई हैं. पिछली दफा राजद ने राजबल्लभ यादव की पत्नी विभा देवी को उम्मीदवार बनाया था. विभा देवी को तीन लाख 47 हजार से अधिक वोट मिले और वे दूसरे स्थान पर रहीं. वहीं पहले स्थान पर रहे लोजपा के चंदन सिंह को चार लाख 95 हजार से अधिक मत मिले.

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नगीना राय से चुनाव हारने के बाद सुबह-सुबह उनके दरवाजे पर जा पहुंच पं राजमंगल मिश्र

संजय कुमार अभय, गोपालगंज

चुनाव भले ही डिजिटल क्रांति के युग में पहुंच गया है. लेकिन जो माहौल पहले हुए करता था, अब वह नहीं है. आज चुनाव के दौरान प्रेम, सौहार्द और भाईचारा देखने को बहुत कम ही मिलता है. ऐसे में आपको बताते हैं 1977 में हुए विधानसभा चुनाव के एक वाक्या के बारे में. तब रात के 1.30 बजे चुनाव परिणाम आया. कांग्रेस से नगीना राय कटेया विधानसभा क्षेत्र से चुनाव जीते. जनता पार्टी से पं राजमंगल मिश्र चुनाव हार गये. चुनाव हारने के बाद सुबह आठ बजते ही पं राजमंगल मिश्र नगीना राय के गोपालपुर स्थित घर जा पहुंचे.

दरवाजे पर मजाकिया लहजे में उन्होंने नगीना राय को बुलाया. नगीना बाबू ने भी उनको देखते ही उनके पैर छूकर आशीर्वाद लिया. पं राजमंगल मिश्र ने कहा कि आशीर्वाद देने आये हैं कि ठीक से पांच साल काम करना. नगीना राय की पत्नी इंदू देवी ने कहती है कि तब पं राजमंगल मिश्र का भव्य स्वागत किया गया. अपनी गाड़ी से उन्हें मीरगंज पहुंचाया गया. उनका आशीर्वाद मिलता रहा. तब ऐसा वैमनस्य नहीं होता था. आज तो चुनाव में हारने वाले हों, जीतने वाले, एक-दूसरे के दुश्मन जैसा व्यवहार करते हैं. यहां बता दे कि पं राजमंगल मिश्र जेपी आंदोलन के बड़े नेता थे. तब उनकी गिनती प्रधानमंत्री चंद्रशेखर और बिहार के सीएम रहे कर्पूरी ठाकुर सरीखे नेताओं के समकक्ष होती थी. लालू प्रसाद उन्हें अपना राजनीतिक गुरु मानते थे.

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