भगवान विष्णु योगनिंद्रा से आज आयेंगे बाहर, शुरू हो जायेगा मांगलिक कार्य धर्मशास्त्र में है तुलसी विवाह का महत्व फोटो कैप्शन-प्रतीकात्मक फोटो प्रतिनिधि, औरंगाबाद/कुटुंबा सनातन संप्रदाय में मनायी जाने वाली एकादशी में हरि प्रबोधिनी एकादशी बहुत ही उत्तम मानी गयी है. इसे ही देव प्रबोधिनी एकादशी या देवोत्थान व्रत कहा जाता है. लोकभाषा में इसे देव उठनी एकादशी भी कहते हैं. यह पर्व प्रत्येक वर्ष कार्तिक शुक्लपक्ष एकादशी को मनाया जाता है. ज्योतिर्विद डॉ हेरंब कुमार मिश्र ने बताया कि शुक्रवार को रात्रिशेष चार बजकर दो मिनट से आज शनिवार को रात्रि शेष दो बजकर 57 मिनट तक एकादशी तिथि है. ऐसे में देवोत्थान एकादशी का व्रत आज ही रखा जायेगा. शास्त्रों के अनुसार, आषाढ़ शुक्ल पक्ष हरिशयनी एकादशी के दिन से देव शयन होने बाद चातुर्मास उपरांत आज ही देवोत्थान को भगवान श्रीहरि योगनिद्रा से बाहर आते हैं. तुलसी विवाह का विधान ज्योतिर्विद ने बताया कि पद्मपुराण के अनुसार प्रबोधिनी एकादशी का बड़ा ही महत्व है. आज के ही दिन संध्या बेला में अनुयायी शंख, घंटा, मृदंग आदि बजाकर भगवान श्रीहरि को योग निंद्रा से जगाते हैं व विधि पूर्वक पूजनादि कर तुलसी विवाह का आयोजन करते हैं. इस क्रम में तुलसी पौधा का विवाह शालिग्राम भगवान से कराने की परंपरा रही है. तुलसी वृक्ष के आसपास साफ-सफाई व सजावट कर श्री तुलसी व भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. घी के दीपक जलाये जाते हैं. तुलसी को विष्णुप्रिया भी कहा जाता है. उनका पूजन भगवान का आह्वान माना जाता है. भाव यह कि तुलसी विवाह के माध्यम से योग निंद्रा से बाहर आने के लिए भगवान श्रीहरि का आह्वान किया जाता है. इसीलिए, इस दिन भक्ति पूर्वक तुलसी, भगवान विष्णु व अन्य देवी-देवताओं की पूजा करनी चाहिए. शास्त्रों में वर्णित है कि इस दिन किये गये पूजा-पाठ, जप तप, दान पुण्य एवं होमादि कर्म से अक्षय फल की प्राप्ति होती है. सभी तरह के मांगलिक कार्य होंगे आरंभ ज्योतिर्विद ने बताया कि हरिशयनी एकादशी से सभी मांगलिक कार्य चार महीने के लिए अवरुद्ध हो जाते हैं. इसके बाद आज के दिन भगवान के योग निंद्रा से बाहर आने के बाद पुनः मांगलिक कार्य आरंभ होते हैं. उन्होंने बताया कि नंबर माह के दूसरे सप्ताह के बाद शादी विवाह का मुहूर्त है. सभी तरह के मांगलिक कार्य शुरू हो जायेंगे. विदित हो कि सनातन संस्कृति में तुलसी विवाह एक पवित्र व शुभ क्षण है. इसके तुलसी माता रूपी पौधा को शृंगार किया जाता है. यह शृंगार न केवल भक्ति व श्रद्धा का प्रतीक है, बल्कि माता लक्ष्मी के प्रति आस्था का भी प्रतीक है. तुलसी विवाह का आयोजन न सिर्फ धार्मिक दृष्टि से महत्वपूर्ण है, अपितु एकता, प्रेम, आशीर्वाद व भक्ति भावना का भी संकल्प है. धर्मशास्त्रों में तुलसी माता से जुड़ी अन्य पौराणिक कथाएं भी प्रमाणिक और प्रचलित हैं. [
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