अब चौपाल पर नहीं सुनाई देती रेडियो की धुनऔरंगाबाद (सदर) हर पुरानी बातें स्मरण में सदा रहती है. ऐसे ही याद से जुड़ा है रेडियो, जो अब बीते दिनों की याद दिलाता है. एक समय में रेडियो लोगों के मनोरंजन का एक मात्र साधन था. ये सूचना का बेहतर और सशक्त माध्यम भी रहा है. अगर रेडियो की इतिहास और विकास की बात करें तो वो बड़ा ही बेहतरीन और रोचक रहा है. चाहे रेडियो पर सुने जानेवाले गाने हो या समाचार और क्रिकेट की कमेंटरी सचमुच लोगों को उत्साहित कर देता था. चाहे चाय की दुकान हो या कोई चौपाल एक रेडियो पर कई श्रोता मजे लेते दिखते थे. पर, अब ये बीते जमाने की बातें लगती है. अब न तो चौपाल लगता है और न ही वहां रेडियो की धुन ही सुनाई देती है. रेडियो तो है पर उसे अब सुना कम जा रहा है. बुजुर्गों की शान थी रेडियो : ज्यादा पुरानी बात नहीं जब बुजुर्गों के हाथों की शोभा हुआ करती थी रेडियो. जिसे बुजुर्ग भूल कर भी कभी अपने से अलग नहीं करते थे. रेडियो पुराने जमाने की लोगों की मनोरंजन की पहली पसंद थी. पर धीरे-धीरे इसका स्वरूप बदल सा गया. अब भी रेडियो सुने जा रहे हैं, पर उस दौर की तरह मजा लेकर नहीं सुना जाता. मोबाइल व इंटरनेट के माध्यम से आज रेडियो ने पहले से कहीं ज्यादा अपनी पकड़ बनायी है, पर श्रोता उसमें उतनी रुचि नहीं ले रहे हैं. विविध भारती का रेनबो चैनल व एफएम का प्रसारण आज भी हो रहा है, बल्कि इस दौर में प्राइवेट रेडियो चैनल भी प्रसारित हो रहे हैं, पर उसकी लोकप्रियता कम दिखती है. लोगों का मानना है कि आज भी सूचना का बेहतर माध्यम विविध भारती है, पर युवा इसकी लोकप्रियता को नहीं समझ रहे हैं.मेल जोल का भी माध्यम था रेडियो : रेडियो के शौकिन रामपति मालिक योगेंद्र सिंह अरविंद कुमार, कमलेश प्रसाद, उधव सिंह सहित दर्जनों लोग ऐसे हैं जो बताते हैं कि रेडियो स्वस्थ्य मनोरंजन का साधन आज भी है. इसके प्रचलन के दौर से रेडियो से ये जुड़े रहे हैं. इनका कहना है कि रेडियो न सिर्फ समाचार व मनोरंजन का माध्यम रहा है, बल्कि आपसी मेल जोल का भी माध्यम है. आज टेलिवीजन व मोबाइल के आ जाने से इसकी लोकप्रियता भले ही प्रभावित हुई है, पर इसका दौर काफी आकर्षक था. टीवी ने लोगों को आपसी मेल जोल को प्रभावित किया है. ज्यादातर लोग अपना समय टीवी व मोबाइल पर बिताना पसंद कर रहे है. इससे मेल जोल में भी कमी आयी है. सेवानिवृत्त शिक्षक शत्रुधन सिंह एक ऐसे रेडियो के श्रोता हैं जो लगभग चार दशक से रेडियो से जुड़े रहे हैं. इनके बारे में गांव के लोग बताते हैं कि आज भी ये रेडियो को अपने से अलग नही करतेे. क्रिकेट की कमेंटरी और पुराने गीतों को बीते दिनों के तरह ही चाव से सुना करते हैं. इनके बारे में बताया जाता है कि रेडियो पर जब समाचार का प्रसारण होता है तो उसे ये अपने डायरी में लिखकर संग्रहित करते हैं. इसमें इन्हें बड़ा मजा आता है
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अब चौपाल पर नहीं सुनाई देती रेडियो की धुन
अब चौपाल पर नहीं सुनाई देती रेडियो की धुनऔरंगाबाद (सदर) हर पुरानी बातें स्मरण में सदा रहती है. ऐसे ही याद से जुड़ा है रेडियो, जो अब बीते दिनों की याद दिलाता है. एक समय में रेडियो लोगों के मनोरंजन का एक मात्र साधन था. ये सूचना का बेहतर और सशक्त माध्यम भी रहा है. […]
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