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लारी गढ़ में दफन हैं कई इतिहास

प्रधान सचिव के दौरे से ग्रामीणों में जगी थी आस, नहीं उठा गढ़ के रहस्यों से परदा कुर्था (अरवल) : अरवल जिले के कुर्था प्रखंड क्षेत्र के प्राचीन व ऐतिहासिक लारी गढ़ में दबे हैं कई पौराणिक इतिहास. जरूरत है इसके रहस्यों से परदा उठाने की. हालांकि बिहार सरकार के खाद्य आपूर्ति विभाग के प्रधान […]

प्रधान सचिव के दौरे से ग्रामीणों में जगी थी आस, नहीं उठा गढ़ के रहस्यों से परदा

कुर्था (अरवल) : अरवल जिले के कुर्था प्रखंड क्षेत्र के प्राचीन व ऐतिहासिक लारी गढ़ में दबे हैं कई पौराणिक इतिहास. जरूरत है इसके रहस्यों से परदा उठाने की. हालांकि बिहार सरकार के खाद्य आपूर्ति विभाग के प्रधान सचिव सह लारी गांव निवासी शिशिर कुमार सिन्हा ने इसके इतिहास से परदा उठाने के लिए सतत प्रयास किया और कुछ हद तक सफल भी रहे. पुरातत्व विभाग की नजरें उक्त प्राचीन गढ़ की ओर गयी और खुदाई का निर्णय लिया.

इसके तहत वर्ष 2012 में सर्वेक्षण के लिए पुरातत्व विभाग की टीम पहुंची. इस दौरान खोदे गये गड्ढे से काफी पुराने कुछ सिक्के मिले, जो गढ़ के अंदर छिपे इतिहास की संभावनाओं को प्रबल करता है. ग्रामीणों के अनुसार उक्त सिक्के लगभग दो हजार वर्ष पुराने हैं. हालांकि पुरातात्विक विभाग ने अभी तक इसकी पुष्टि नहीं की है. ग्रामीणों ने पूर्व से चली आ रही चर्चाओं पर आधारित इसके इतिहास का वर्णन करते हुए बताया कि पटियाला नरेश प्रताप सिंह जब संन्यासी बने, तो स्वामी रत्नेश्वर गिरी के नाम पर प्रसिद्धि पाये और उन्होंने लारी गढ़ के समीप शरण लिया.

नि:वस्त्र रहने के कारण गांव के ग्रामीण उन्हें लंगटा बाबा कह कर पुकारने लगे. जब इनकी प्रसिद्धि टिकारी राज दरबार में पहुंची, तो टिकारी राज की महारानी मुनेश्वरी कुंवर ने स्वामी रत्नेश्वर गिरी से मिल कर दान स्वरूप 25 एकड़ का गढ़ व 25 एकड़ का तालाब दान में दे दिया, जिसकी रजिस्ट्री 1901 में स्वामी जी के नाम से किया गया. इसके दस्तावेज की कॉपी आज भी ग्रामीणों के पास सुरक्षित है. हालांकि उक्त गढ़ को इतिहास विशेषज्ञ भी अति प्राचीन मानते हैं.

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