Vece Paes Passed Away: भारतीय हॉकी के महान खिलाड़ी और बहुमुखी प्रतिभा के धनी डॉ. वेस पेस का 80 वर्ष की उम्र में कोलकाता में निधन हो गया. वह लंबे समय से पार्किंसन रोग और बढ़ती उम्र से जुड़ी बीमारियों से जूझ रहे थे. 1972 म्यूनिख ओलंपिक में कांस्य पदक जीतकर उन्होंने देश को गौरवान्वित किया और अपने हॉकी करियर के बाद खेल चिकित्सा में योगदान देकर क्रिकेट, फुटबॉल, टेनिस और रग्बी तक को नई दिशा दी. पेस को जानने वाले उन्हें सौम्य, विनम्र और अत्यंत ज्ञानवान व्यक्तित्व मानते थे.
ओलंपिक पदक से खेल चिकित्सा तक का सफर
डॉ. पेस ने हॉकी के मैदान पर अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाने के बाद खेल चिकित्सा में अद्वितीय योगदान दिया. उनके पुत्र और दिग्गज टेनिस खिलाड़ी लिएंडर पेस ने कई बार सार्वजनिक मंचों पर पिता के महत्व को रेखांकित किया. पेस सीनियर न केवल लिएंडर के लंबे समय तक मैनेजर रहे बल्कि एक दशक तक भारतीय डेविस कप टीम के डॉक्टर भी रहे.
पूर्व कप्तान अजीत पाल सिंह ने कहा कि पेस ने हॉकी से संन्यास के बाद भी पूरी निष्ठा से खिलाड़ियों की फिटनेस और स्वास्थ्य सुधार में योगदान दिया. वीरेन रासकिन्हा ने उन्हें “बेहद स्नेही, ज्ञानी और हमेशा मदद को तैयार” बताया.
हर खेल में अहम योगदान और सम्मान
हॉकी के अलावा पेस ने फुटबॉल, क्रिकेट और रग्बी में भी महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. 1996 से 2002 तक वह भारतीय रग्बी यूनियन के अध्यक्ष रहे और बीसीसीआई के डोपिंग रोधी कार्यक्रम तथा एशियाई क्रिकेट परिषद के साथ भी जुड़े. उन्होंने ईस्ट बंगाल फुटबॉल टीम और बाईचुंग भूटिया जैसे खिलाड़ियों के साथ भी काम किया.
पेस ने लखनऊ के ला मार्टिनियर कॉलेज और कोलकाता के प्रेसीडेंसी कॉलेज से मेडिकल शिक्षा प्राप्त की. उनका विवाह पूर्व बास्केटबॉल खिलाड़ी जेनिफर पेस से हुआ था और वह कलकत्ता क्रिकेट व फुटबॉल क्लब के अध्यक्ष भी रहे.
पूर्व खिलाड़ी बी पी गोविंदा का मानना था कि यदि महासंघ में राजनीति न होती तो पेस 1968 ओलंपिक में भी खेलते. हरबिंदर सिंह ने उन्हें “सच्चा सज्जन और प्रतिभाशाली खिलाड़ी” बताया. डॉ. वेस पेस का जीवन खेल भावना, अनुशासन और सेवा का प्रतीक रहा. उनके निधन से भारतीय खेल जगत में एक युग का अंत हो गया है.
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