Why India in 1986 and Pakistan in 1990 boycotted Asia Cup: एशिया कप अब अपने 17वें सीजन में प्रवेश कर चुका है. महाद्वीपीय टूर्नामेंट ने एक लंबा सफर तय किया है. इसकी लोकप्रियता में भारत-पाकिस्तान के बीच शुरू हुई प्रतिद्वंद्विता का बड़ा हाथ रहा है. हालांकि अप्रैल 2025 में पहलगाम हमला और फिर ऑपरेशन सिंदूर की वजह से भारत और पाकिस्तान के बीच सैन्य तनाव बढ़ गया. इस साल कुछ समय तक लगा कि दोनों देशों के बीच सहमति नहीं बन पाएगी और शायद एशिया कप हो ही नहीं. हालांकि बॉयकॉट और टूर्नामेंट के कैंसल होने के बादल छंटे और बातचीत से हल निकला. टी20 फॉर्मेट में 9 सितंबर से पहली बार 8 टीमों का टूर्नामेंट फिर से शुरू हो रहा है. वैसे एशिया कप की शुरुआत 1984 में शारजाह से हुई थी. लेकिन इसके दूसरे संस्करण- 1986 में भारत और चौथे सीजन- 1990 में पाकिस्तान ने भाग नहीं लिया था. आइये जानते हैं, इसके पीछे क्या वजह थी.
भारत क्यों नहीं खेला 1986 एशिया कप
1984 का पहला एशिया कप टूर्नामेंट सफल रहा और इसी सफलता ने एशियन क्रिकेट काउंसिल को 1986 में दूसरा संस्करण श्रीलंका में कराने के लिए प्रेरित किया. आयोजकों को जॉन प्लेयर गोल्ड लीफ सिगरेट्स जैसे स्पॉन्सर भी मिल गए थे, लेकिन मुश्किल यह थी कि श्रीलंका उस समय गृहयुद्ध की चपेट में था. जुलाई 1983 से शुरू हुए तमिल उग्रवादी संगठन एलटीटीई के संघर्ष ने देश में खूनखराबे का माहौल बना दिया था. अनुराधापुरा नरसंहार और कोलंबो बम धमाके जैसी घटनाओं ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के लिए माहौल असुरक्षित कर दिया था.
भारत ने अगस्त 1985 में श्रीलंका का दौरा किया था लेकिन हालात लगातार बिगड़ते चले गए. पाकिस्तान ने फरवरी 1986 में वहां सीरीज खेली, हालांकि अंपायरिंग विवाद से उनका दौरा तनावपूर्ण रहा. भारत ने इस स्थिति को देखते हुए एशिया कप में हिस्सा नहीं लेने का फैसला किया. आयोजकों के सामने टूर्नामेंट रद्द होने का खतरा खड़ा हो गया, लेकिन ऐन मौके पर इसमें बांग्लादेश को शामिल कर लिया गया ताकि यह द्विपक्षीय सीरीज न रह जाए. बांग्लादेश ने पहली बार वनडे क्रिकेट खेला और दोनों मैच हार गया.
जीत पर राष्ट्रपति ने घोषित कर दी छुट्टी
1986 के इस टूर्नामेंट के फाइनल में युवा अरविंदा डी सिल्वा और अर्जुन रणतुंगा के शानदार प्रदर्शन ने पाकिस्तान को हराकर श्रीलंका को उनकी पहली बड़ी ट्रॉफी दिलाई. 1986 का टूर्नामेंट खास इस मायने में भी रहा कि इसने एशिया कप की लोकप्रियता को बनाए रखा. श्रीलंका की जीत ने वहां के क्रिकेट को नई पहचान दी और पहली बार जश्न में राष्ट्रीय अवकाश घोषित करने की मांग की, जिसे तत्कालनी श्रीलंकाई राष्ट्रपति जे.आर. जयवर्धने ने मान लिया. आगे 1988 में बांग्लादेश ने एशिया कप की मेजबानी की और भारत ने वापसी करते हुए फाइनल में श्रीलंका को हराकर खिताब जीता. लेकिन महज दो साल बाद हालात ऐसे बने कि इस बार पाकिस्तान एशिया कप से बाहर हो गया.
पाकिस्तान क्यों नहीं खेला 1990 एशिया कप
1989 में भारत ने पाकिस्तान का दौरा किया था जहां सचिन तेंदुलकर और वकार यूनुस ने डेब्यू किया. लेकिन इस दौरान सियाचिन ग्लेशियर को लेकर दोनों देशों के बीच सैन्य तनाव तेजी से बढ़ गया. 1980 के दशक में भारत और पाकिस्तान कई बार एक-दूसरे का दौरा करते रहे थे और 1987 में दोनों ने मिलकर विश्व कप की मेजबानी भी की थी. इसके बावजूद 1990 तक हालात इतने खराब हो चुके थे कि पाकिस्तान ने एशिया कप से हटने का फैसला कर लिया. यही कारण रहा कि 1990 का एशिया कप बिना पाकिस्तान के इंडिया में खेला गया.
श्रीलंका एकमात्र देश जिसने खेले हैं सभी एशिया कप
इस एशिया कप के फाइनल में भारत और श्रीलंका के बीच मुकाबला हुआ. उस फाइनल में कपिल देव की शानदार हैट्रिक ने भारत को जीत दिलाई और खिताब अपने नाम कराया. इस तरह 1986 में भारत और 1990 में पाकिस्तान की गैरहाजिरी ने एशिया कप के इतिहास पर गहरा असर छोड़ा. यानी हालिया घटनाक्रम में यह मान लेना चाहिए कि क्रिकेट को राजनीति और सुरक्षा के मसलों से पूरी तरह अलग रखना आसान नहीं है. पहले भी दोनों देशों ने बहुपक्षीय सीरीज में हिस्सा नहीं लिया है. हालांकि 1990 के बाद से भारत, पाकिस्तान, श्रीलंका और बांग्लादेश चारों लगातार एशिया कप में हिस्सा लेते आ रहे हैं. लेकिन लगातार हर संस्करण का हिस्सा बनने का गौरव केवल श्रीलंका को ही हासिल है, जिसने इस टूर्नामेंट को हमेशा रंगीन बनाए रखा.
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