Why BCCI allows Indian Players to County Cricket: भारतीय खिलाड़ियों को लेकर अक्सर यह सुनने में आता है कि वे काउंटी क्रिकेट खेलने जा रहे हैं. उन्होंने यॉर्कशायर, लंकाशायर, नॉटिंघमशायर जैसी टीमों के साथ एक सीजन या गिनती के मैचों का करार किया है. लेकिन बीसीसीआई अपने खिलाड़ियों को इसकी इजाजत कैसे दे देता है. यह दिलचस्प है कि भारतीय क्रिकेटर इंग्लैंड की डोमेस्टिक सर्किट, यानी काउंटी क्रिकेट, में खेलते हुए तो अक्सर दिख जाते हैं, लेकिन बिग बैश लीग (BBL), कैरेबियन प्रीमियर लीग (CPL) या द हंड्रेड जैसी लीग्स में नहीं. ऐसा क्यों है? अन्य ग्लोबल T20 लीग्स में भारतीय खिलाड़ियों की भागीदारी लगभग न के बराबर है, जबकि काउंटी में भाग लेने पर बीसीसीआई से कोई भी आवाज नहीं आती.
विदेशी टी20 लीग्स पर बीसीसीआई का सख्त रुख
भारतीय खिलाड़ियों का विदेशी टी20 लीग्स में न खेलना पूरी तरह से बीसीसीआई की पॉलिसी पर आधारित है. बीसीसीआई का मानना है कि अगर भारतीय क्रिकेटर CPL, BBL या द हंड्रेड जैसी लीग्स में हिस्सा लेंगे तो उनकी लोकप्रियता और मार्केट वैल्यू इन टूर्नामेंट्स को भी फायदा पहुंचाएगी. इससे आईपीएल की एक्सक्लूसिविटी को नुकसान हो सकता है.
दरअसल आईपीएल ही बीसीसीआई का सबसे बड़ा ब्रांड है. यह टूर्नामेंट हर साल अरबों की कमाई करता है और इसकी सबसे बड़ी ताकत भारतीय खिलाड़ियों की मौजूदगी है. विराट कोहली, रोहित शर्मा, एमएस धोनी, हार्दिक पंड्या या सूर्यकुमार यादव जैसे स्टार खिलाड़ियों का करिश्मा ही आईपीएल को दुनिया की सबसे सफल लीग बनाए हुए है. बीसीसीआई का तर्क है कि अगर वही खिलाड़ी अन्य विदेशी लीग्स में भी खेलेंगे, तो दर्शकों और स्पॉन्सर्स की दिलचस्पी बंट जाएगी.
खिलाड़ी घरेलू क्रिकेट को ना न कहें
इसके अलावा, बोर्ड चाहता है कि खिलाड़ी हमेशा घरेलू क्रिकेट और अंतरराष्ट्रीय सीरीज के लिए उपलब्ध रहें. अगर उन्हें विदेशी लीग्स की खुली छूट मिल जाए, तो कई खिलाड़ी रणजी ट्रॉफी, विजय हजारे ट्रॉफी और सैयद मुश्ताक अली ट्रॉफी जैसे टूर्नामेंटों से किनारा कर सकते हैं. यह भारतीय घरेलू संरचना के लिए बड़ा खतरा होगा. इसी वजह से बोर्ड ने विदेशी लीग्स को ‘ना’ कहकर भारतीय क्रिकेटर्स की ब्रांड वैल्यू और एक्सक्लूसिविटी बनाए रखी है.
इतना ही नहीं, बीसीसीआई का नियम है कि कोई भी खिलाड़ी जो बोर्ड से जुड़ा है, वह आईपीएल के अलावा किसी विदेशी लीग में हिस्सा नहीं ले सकता. अपवाद केवल वही खिलाड़ी हैं जो अंतरराष्ट्रीय और घरेलू क्रिकेट से संन्यास ले चुके हों. यही कारण है कि हरभजन सिंह, युवराज सिंह या इरफान पठान जैसे पूर्व खिलाड़ी बाद में विदेशी टी20 लीग्स में नजर आए, लेकिन सक्रिय भारतीय क्रिकेटर कभी नहीं. हाल ही में SA20 लीग खेलने वाले दिनेश कार्तिक पहले खिलाड़ी बने. हाल ही में रविचंद्र अश्विन ने भी रिटायरमेंट के बाद ILT20 लीग और बीबीएल में खेलने के लिए संपर्क किया है.
तो फिर काउंटी क्रिकेट क्यों?
अब सवाल यह है कि अगर विदेशी टी20 लीग्स पर रोक है, तो बीसीसीआई खिलाड़ियों को काउंटी क्रिकेट खेलने की इजाजत क्यों देता है? इसका सबसे बड़ा कारण यह है कि बोर्ड काउंटी क्रिकेट को किसी भी तरह से आईपीएल का प्रतिद्वंद्वी नहीं मानता. काउंटी चैंपियनशिप रेड-बॉल क्रिकेट की प्रतियोगिता है, जबकि आईपीएल टी20 प्रारूप में दुनिया का सबसे बड़ा टूर्नामेंट है.
दरअसल भारतीय क्रिकेटर काउंटी क्रिकेट को तरजीह देने के पीछे कई कारण हैं. सबसे बड़ा कारण इसका ऐतिहासिक महत्व और विदेशी खिलाड़ियों को होस्ट करने की परंपरा है, जिसमें भारतीय क्रिकेटर भी लंबे समय से शामिल रहे हैं. यह उन्हें अलग-अलग परिस्थितियों और विविध गेंदबाजों के खिलाफ खेलने का अनुभव देता है, जो उनके विकास और अंतरराष्ट्रीय प्रदर्शन में सहायक होता है.
काउंटी एक लर्निंग प्लेटफॉर्म
दरअसल बीसीसीआई इंग्लैंड की काउंटी चैंपियनशिप को एक लर्निंग प्लेटफॉर्म मानता है. इंग्लैंड की परिस्थितियाँ ठंडी और नम मौसम, हरी पिचें और स्विंग गेंदबाजी भारत से बिल्कुल अलग हैं. भारतीय बल्लेबाजों और गेंदबाजों के लिए इन हालातों में खेलना एक तरह से ट्रेनिंग का काम करता है. खासकर जब भारतीय टीम को इंग्लैंड दौरा करना होता है, तब काउंटी अनुभव बहुत फायदेमंद साबित होता है. वहीं, ऑस्ट्रेलिया की शेफील्ड शील्ड का सीजन अक्सर भारतीय घरेलू क्रिकेट से टकराता है, जिससे खिलाड़ियों के लिए वहां खेलने का अवसर सीमित हो जाता है.
खिलाड़ियों का भी बनता है नाम
इसके अलावा, कई बार खिलाड़ियों की व्यक्तिगत पसंद और इंग्लिश काउंटी टीमों से उनके जुड़ाव भी अहम भूमिका निभाते हैं. कई भारतीय पहले से वहां खेल चुके होते हैं या कोचिंग स्टाफ से रिश्ते बनाए होते हैं, इसलिए वे इंग्लैंड को प्राथमिकता देते हैं. आर्थिक दृष्टिकोण से भी काउंटी क्रिकेट आकर्षक है, क्योंकि इंग्लैंड में यह लीग व्यावसायिक रूप से सफल है और बेहतर आर्थिक पैकेज देती है. साथ ही, यहां अच्छा प्रदर्शन करने से खिलाड़ी का नाम भी बनता है और अंतरराष्ट्रीय स्तर पर पहचान बढ़ती है, जिससे राष्ट्रीय चयन की संभावनाएँ और एंडोर्समेंट के अवसर दोनों में बढ़ोतरी होती है.
भारतीय खिलाड़ी, जिन्होंने काउंटी क्रिकेट में लिया हिस्सा
चेतेश्वर पुजारा इसका सबसे अच्छा उदाहरण हैं. उन्होंने इंग्लैंड की काउंटी सर्किट में खेलकर अपने खेल को निखारा और फिर भारतीय टीम के लिए खासकर SENA (साउथ अफ्रीका, इंग्लैंड, न्यूजीलैंड, ऑस्ट्रेलिया) देशों में शानदार प्रदर्शन किया. हाल ही में अपनी पहली टेस्ट टीम कॉल-अप पाने वाले साई सुदर्शन ने भी सर्रे की ओर से काउंटी क्रिकेट खेला और अच्छा प्रदर्शन किया. सचिन तेंदुलकर ने 1992 में यॉर्कशायर की ओर से खेला था. फारुख इंजीनियर सबसे लंबे समय तक काउंटी में सक्रिय रहे. हाल के दिनों में चेतेश्वर पुजारा, जयदेव उनादकट, युजवेंद्र चहल, ईशान किशन, तिलक वर्मा और साई सुदर्शन जैसे खिलाड़ी इंग्लिश टीमों के लिए खेले. अब मयंक वर्मा का नाम भी इस सूची में जुड़ गया है.
काउंटी चैंपियनशिप और रणजी ट्रॉफी
काउंटी चैंपियनशिप भारत की रणजी ट्रॉफी की तरह हैं. रणजी ट्रॉफी और काउंटी चैंपियनशिप क्रिकेट की दो सबसे बड़ी और प्रतिष्ठित रेड-बॉल प्रतियोगिताएँ मानी जाती हैं. रणजी ट्रॉफी की शुरुआत 1934-35 में हुई थी, जिसमें 15 टीमों ने नॉकआउट फॉर्मेट में हिस्सा लिया और बॉम्बे (अब मुंबई) ने पहला खिताब जीता. वहीं, काउंटी चैंपियनशिप की शुरुआत 1890 में इंग्लैंड एंड वेल्स क्रिकेट बोर्ड (ECB) ने की थी. यह दुनिया की पहली घरेलू क्रिकेट प्रतियोगिता मानी जाती है और इसका पहला खिताब सर्रे (Surrey) ने जीता. इन दोनों टूर्नामेंट्स ने सालों से भारत और इंग्लैंड को कई दिग्गज खिलाड़ियों को तराशा है. कुछ खिलाड़ी काउंटी क्रिकेट खेलकर भी अपने खेल और तकनीक को निखारते हैं.
कैसे काम करता है काउंटी का सिस्टम
काउंटी क्रिकेट में 18 टीमें हिस्सा लेती हैं, जिनमें इंग्लैंड की 17 काउंटी और 1 वेल्श की टीम शामिल है. यह टूर्नामेंट डिवीजन 1 और डिवीजन 2 में विभाजित है. जिसमें डिवीजन-1 में 10 टीमें हिस्सा लेती हैं, जबकि डिवीजन-2 में 8 टीमें खेलती हैं. हाल ही में यह खबर आई कि इंग्लैंड क्रिकेट इस टूर्नामेंट के इस रूप में बदलाव कर 12 टीमों में बांटना चाहता है. हालांकि अभी यह रोक दिया गया है, लेकिन आने वाले समय में यह बदलाव हो जाए, तो आश्चर्य नहीं होगा.
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