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अंपायरिंग के तौर-तरीकों में लाना होगा बड़ा बदलाव

अभिषेक दुबे वरिष्ठ खेल पत्रकार इंग्लैंड और जर्मनी के बीच फीफा का नॉक आउट मैच हो रहा था. टीवी पर लाखों दर्शक देख सकते थे कि लैंपार्ड ने गोल कर दिया है, लेकिन नियम तकनीक की मदद लेने की इजाजत नहीं देता. लैंपार्ड के चाचा हैरी लैंपार्ड ने फीफा प्रमुख सेप ब्लैटर से कहा- हम […]

अभिषेक दुबे
वरिष्ठ खेल पत्रकार
इंग्लैंड और जर्मनी के बीच फीफा का नॉक आउट मैच हो रहा था. टीवी पर लाखों दर्शक देख सकते थे कि लैंपार्ड ने गोल कर दिया है, लेकिन नियम तकनीक की मदद लेने की इजाजत नहीं देता.
लैंपार्ड के चाचा हैरी लैंपार्ड ने फीफा प्रमुख सेप ब्लैटर से कहा- हम लोगों को चांद पर तो भेज सकते हैं, लेकिन दुर्भाग्य से ये नहीं पता कर सकते कि बॉल सीमा रेखा के अंदर गयी या नहीं. क्रिकेट वर्ल्डकप देख रहे क्रिकेट के लाखों दीवानों को हैरी लैंपार्ड की बात एक मर्तबा नहीं, बल्कि एक मैच में कई मर्तबा सही लगी होगी.
वेस्टइंडीज और ऑस्ट्रेलिया के बीच वर्ल्डकप का लीग मैच : वेस्टइंडीज के बल्लेबाज क्रिस गेल ने 17 गेंद की पारी खेली, लेकिन इस दौरान खूब ड्रामा हुआ. गेल को अंपायर ने दो बार आउट दिया, गेल ने अंपायर के फैसले को दोनों बार चुनौती दी और दोनों ही बार अंपायर का फैसला गलत पाया गया.
आखिरकार गेल मिचेल स्टार्क की गेंद पर एलबीडब्ल्यू आउट हो गये, लेकिन रीप्ले में साफ पाया गया कि उससे पहले की गेंद नोबॉल थी. यानी जिस गेंद पर वो आउट हुए वह फ्री हिट होना था. वेस्टइंडीज के महान क्रिकेटर माइकल होल्डिंग ने जब फैसले के खिलाफ कमेंटरी बॉक्स में आवाज उठायी, तो उन्हें क्रिकेट की सबसे बड़ी संस्था ने ये कहकर चेतावनी दी कि वे लाखों दर्शकों को अंपायर के फैसले के खिलाफ भड़का रहे हैं.
भारत और वेस्टइंडीज के बीच मैच : रोच की गेंद रोहित के पैड को लगकर विकेट कीपर के दस्ताने में गयी, गेंदबाज ने रीप्ले लिया और क्योंकि एंगल मौजूद नहीं था. रोहित शर्मा आउट करार दिये गये.
अफगानिस्तान और पाकिस्तान मुकाबला : पहली बार वर्ल्डकप में हिस्सा ले रहे अफगानिस्तान को हौसलाआफजाई की जरूरत थी. लेकिन, दो गलत फैसलों ने अफगानिस्तान टीम के हौसले को तार-तार कर दिया. पाकिस्तान के इमाद वसीम साफ एलबीडब्ल्यू आउट थे, लेकिन उन्हें आउट नहीं दिया गया. पाकिस्तान के हरीस सोहेल जब 17 रन पर खेल रहे थे, तो गेंद उनके बल्ले का किनारा लेते हुए फील्डर के पास गयी, लेकिन अंपायर ने उन्हें आउट नहीं दिया.
भारत और न्यूजीलैंड के बीच सेमीफाइनल मैच : अंतिम चार ओवर तक भारत पूरी तरह से मुकाबले में था. महेंद्र सिंह धोनी बल्लेबाजी कर रहे थे. अंपायर इस बात का अंदाजा नहीं लगा सके की न्यूजीलैंड टीम ने नियम के विपरीत गेंद डाले जाने से ठीक पहले एक एक्स्ट्रा फील्डर को बाउंड्री पर लगा दिया.
जहां बाउंड्री पर सिर्फ पांच फील्डर रह सकते थे, उस वक्त छह फील्डर थे. हालांकि फील्ड पोजिशन का धोनी के आउट होने से सीधा क्या संबंध है, ये बहस का मुद्दा हो सकता है, लेकिन सेमीफाइनल जैसे मुकाबले में तकनीक के रहते इस तरह की चूक को कभी जायज नहीं ठहराया जा सकता है.
अंपायरिंग में चूक : गलत फैसले और वर्ल्डकप के बीच अचूक रिश्ते का सिलसिला दूसरे सेमीफाइनल में भी जारी रहा. इंग्लैंड के सलामी बल्लेबाज जैसन रॉय ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ धमाकेदार अंदाज में खेल रहे थे. एक और गलत फैसले ने जैसन रॉय के अरमानों पर पानी फेर दिया. गेंद ने न बल्ले को छुआ, न दस्ताने को, लेकिन अंपायर ने उन्हें आउट करार दिया. पवेलियन लौटने से पहले जैसन रॉय ने विरोध भी किया, लेकिन वह आउट करार दिये गये.
फीफा वर्ल्डकप हो या फिर क्रिकेट वर्ल्डकप मैच का आशय है कि फैसले सही हों. जब फीफा वर्ल्डकप में लैंपार्ड के चाचा ने आपत्ति जतायी थी, तो ब्लैटर के तीन तर्क थे. पहला तकनीक का इस्तेमाल घरेलू स्तर पर नहीं हो सकता और दूसरा कि इससे रेफरी के सम्मान पर असर पड़ेगा. बाद में ब्लैटर ने ये भी तर्क दिया कि फुटबॉल एक तेज खेल है और बार-बार तकनीक के दखल से इसकी तेजी पर भी असर पड़ेगा. ब्लैटर के पहले दो तर्कों का तो खूब मजाक उड़ाया गया, लेकिन तीसरे तर्क में दम था.
फुटबॉल के विपरीत क्रिकेट में समय की अधिक गुंजाइश है. लेकिन लगता है कि क्रिकेट के कर्ता-धर्ता अब तक ब्लैटर के पहले दो तर्कों पर टीके हुए हैं. सवाल ये है कि बिल्ली के गले में घंटी कौन बांधे. अगर ये काम कोई कर सकता है तो वह भारतीय क्रिकेट बोर्ड है. क्रिकेट को चलानेवाली सबसे बड़ी संस्था के मौजूदा मुखिया भारतीय हैं.
शशांक मनोहर भारतीय क्रिकेट बोर्ड के भी अध्यक्ष रह चुके हैं. लेकिन, भारतीय क्रिकेट बोर्ड की उदासीनता जगजाहिर है. अगर वर्ल्डकप में मौजूदा इलीट पैनल अंपायरिंग की सूची पर नजर दौड़ाएं, तो सिर्फ एक अंपायर भारतीय है. इसमें इंग्लैंड, ऑस्ट्रेलिया और न्यूजीलैंड जैसे देशों का बोलबाला है. बड़ी वजह ये है की भारतीय क्रिकेट में अंपायरिंग के पहलू पर कभी अधिक ध्यान दिया ही नहीं गया.
दूसरा, घरेलू स्तर पर अंपायरिंग में कम पैसे मिलते थे. जिस वजह से क्रिकेटर कम आते थे. हर स्तर पर अंपायर के सेलेक्शन में राजनीति की वजह से सही उम्मीदवार सामने नहीं आना चाहते थे. अगर भारत से सही अंपायर सामने आयेंगे, तो इलीट पैनल में मौजूदा असंतुलन को दूर कर पायेंगे.
अगर टेनिस जैसे खेल में सीमा के बाहर गेंद पड़ते ही बीप बज सकता है, तो क्यों नहीं नोबॉल होते ही बीप बज जाये. इसी तरह अंपायर कॉल पर गंभीरता से विचार करने की जरूरत है.
वर्ष 1983 वर्ल्डकप इंग्लैंड में हुआ था. उस समय तक हर वर्ल्डकप इंग्लैंड में होता था. भारत ने ये वर्ल्डकप जीत कर विश्व क्रिकेट में बदलाव ला दिया. साल 2019 का वर्ल्डकप भारत तो नहीं जीत सका, लेकिन वह विश्व क्रिकेट की अंपायरिंग की दिशा और दशा में बदलाव ला सकता है.

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