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नेशनल खेल चुका झारखंड का यह क्रिकेटर फेरी लगाकर अब बेचता है बर्तन

इंडियन क्रिकेट फेडरेशन, लखनऊ की नेशनल लेवल प्रतियोगिता में ले चुके हैं हिस्सागोमो : झारखंड की पूर्ववर्ती तथा वर्तमान सरकार की उदासीनता के कारण प्रदेश के प्रतिभावान खिलाड़ियों की प्रतिभा कुंठित हो रही है. खिलाड़ी अपना कीमती उम्र खेल में गुजार देते हैं, लेकिन कोई लाभ नहीं मिलता है. नेशनल स्तर के खिलाड़ी रोजी-रोटी की […]

इंडियन क्रिकेट फेडरेशन, लखनऊ की नेशनल लेवल प्रतियोगिता में ले चुके हैं हिस्सा
गोमो : झारखंड की पूर्ववर्ती तथा वर्तमान सरकार की उदासीनता के कारण प्रदेश के प्रतिभावान खिलाड़ियों की प्रतिभा कुंठित हो रही है. खिलाड़ी अपना कीमती उम्र खेल में गुजार देते हैं, लेकिन कोई लाभ नहीं मिलता है. नेशनल स्तर के खिलाड़ी रोजी-रोटी की समस्या से जूझ रहे हैं. इन्हीं में तोपचांची प्रखंड के सुकूडीह निवासी नेशनल दिव्यांग क्रिकेटर मो एकराम अंसारी (35) भी हैं. एकराम ने कहा कि शुरू से ही उनकी रुचि खेल में रही. खेल के दौरान 10 वर्ष की उम्र में चोट लगने से वह दिव्यांग हो गये. उनका बायां हाथ काम का नहीं करता है. सरकार 60 फीसदी दिव्यांगता का प्रमाणपत्र दे चुकी है. एकराम क्रिकेट के अलावा गोला फेंक, कैरम व दौड़ में भी हिस्सा ले चुके हैं.

कई प्रतियोगिताओं में मिली सफलता

एकराम अंसारी 2003-04 में प्रखंड स्तरीय दिव्यांग खेलकूद प्रतियोगिता में कैरम, दौड़ व गोला फेंक में बेहतर प्रदर्शन कर चुके हैं. दिव्यांगों के लिए इंडियन क्रिकेट फेडरेशन, लखनऊ द्वारा रांची के मेकन स्टेडियम में आयोजित टूर्नामेंट में भाग लिया था. इनकी टीम को उप विजेता का प्रमाण पत्र मिला. मेडल व कप स्थानीय खिलाड़ियों की हौसला अफजाई के लिए उनके बीच बांट दिया. कहा कि पहले स्थानीय खिलाड़ियों की मदद करते थे, परंतु अब खेल से दिल टूट चुका है. घर में शेष बचे मेडल देख कर रोना आता है. खेलने से अच्छा रहता पढ़ाई कर लेते तो भविष्य संवर जाता. वह कमला नेहरू समाज सेवा संस्थान (पटना) से वेल्डर का प्रशिक्षण ले चुके हैं. लोन नहीं मिलने के कारण यह प्रशिक्षण भी बेकार साबित हुआ.

अच्छी नहीं है घर की आर्थिक स्थिति

एकराम के घर की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं है. प्लास्टिक तथा स्टील बर्तन की फेरी कर परिवार चला रहे हैं. प्रतिमाह छह सौ रुपये दिव्यांग पेंशन मिलती है. वह भी बंद हो गयी थी. काफी भाग-दौड़ के बाद शुरू हुई. कहा कि क्षेत्र में प्रतिभावान खिलाड़ियों की कमी नहीं है. सरकारी सुविधा मिले तो झारखंड का नाम देश-विदेश में रोशन हो सकता है. राज्य सरकार को कम से कम नेशनल स्तर के खिलाड़ियों को योग्यता के अनुसार नौकरी देनी चाहिए.

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