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कल मनाई जाएगी महापुरुष स्वामी दयानंद सरस्वती की जयंती, बाल विवाह, छुआछूत का किया था पुरजोर विरोध

Swami Dayanand Jayanti 2025: दुनिया में ऐसे व्यक्तियों की संख्या अत्यंत सीमित है, जो अपने सम्पूर्ण जीवन को समाज को जागरूक करने के कार्य में समर्पित कर देते हैं. इसी प्रकार का जीवन व्यतीत किया महापुरुष स्वामी दयानंद सरस्वती ने. पंचांग के अनुसार, उनकी जयंती कल मनाई जाएगी. आइए, उनके बारे में और अधिक जानकारी प्राप्त करें.

Swami Dayanand Jayanti 2025: कल यानी 23 फरवरी 2025 को आर्य समाज के संस्थापक महर्षि स्वामी दयानंद की जयंती मनाई जाएगी. महर्षि स्वामी दयानंद सरस्वती एक प्रमुख समाज सुधारक भी थे, जिनका योगदान न केवल आर्य समाज की स्थापना में बल्कि भारतीय समाज को जागरूक करने में भी अत्यंत महत्वपूर्ण रहा है. उनका जीवन सभी के लिए प्रेरणा का स्रोत बना. दयानंद सरस्वती ने वेदों के प्रचार-प्रसार के उद्देश्य से मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की, जब महिलाओं के प्रति भेदभाव अपने चरम पर था. उस समय वे ही थे जिन्होंने इन समस्याओं के खिलाफ आवाज उठाई.

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कब हुआ था दयानंद सरस्वती का जन्म

दयानंद सरस्वती का जन्म 12 फरवरी 1824 को गुजरात के टंकारा में हुआ. हिंदू पंचांग के अनुसार, उनकी जयंती फाल्गुन मास के कृष्ण पक्ष की दशमी तिथि को मनाई जाती है.

स्वामी दयानंद सरस्वती ने की थी आर्य समाज की स्थापना

स्वामी दयानंद सरस्वती ने 10 अप्रैल 1875 को गुड़ी पड़वा के दिन मुंबई में आर्य समाज की स्थापना की. इस समाज का प्रभाव मुख्य रूप से पंजाब, हरियाणा और दिल्ली में देखा जाता है. आर्य समाज एक हिन्दू सुधार आंदोलन है, जिसका उद्देश्य वैदिक धर्म को पुनर्स्थापित कर सम्पूर्ण हिन्दू समाज को एकजुट करना है. यह जातिप्रथा, छुआछूत, अंधविश्वास, मूर्तिपूजा, बहुदेववाद, अवतारवाद, पशुबलि, श्राद्ध, जंत्र, तंत्र-मंत्र और झूठे कर्मकांडों के खिलाफ है. आर्य समाज के अनुयायी पुराणों की मान्यता को अस्वीकार करते हैं और एकेश्वरवाद में विश्वास रखते हैं.

आर्य समाज के सिद्धांतों के अनुसार, ईश्वर एक ही है, जिसे ब्रह्म कहा जाता है. सभी हिन्दुओं को इस एक ब्रह्म की पूजा करनी चाहिए और देवी-देवताओं की पूजा से बचना चाहिए. स्वामीजी ने अपने उपदेशों का प्रचार आगरा से आरंभ किया और झूठे धर्मों का खंडन करने का कार्य किया.

स्वामीजी ने अपने उपदेशों का प्रसार आगरा से आरंभ किया और झूठे धर्मों का खंडन करने के लिए ‘पाखण्ड खण्डनी पताका’ को फहराया. स्वामी जी के विचारों का संग्रह उनकी रचना ‘सत्यार्थ प्रकाश’ में उपलब्ध है, जिसे स्वामी जी ने हिंदी में लिखा था. दयानंद जी ने वेदों को दिव्य ज्ञान मानते हुए ‘पुनः वेदों की ओर चलो’ का संदेश दिया.

स्वराज का दिया था नारा

स्वामी दयानंद ने 1873 में स्वराज का उद्घोष किया, जिसे बाद में बाल गंगाधर तिलक ने आगे बढ़ाया. वे पहले महापुरुष थे जिन्होंने यह सिद्धांत प्रस्तुत किया कि भारत भारतीयों के लिए है. स्वामी दयानंद एक ऐसी शिक्षा प्रणाली के प्रबल समर्थक थे, जिसके माध्यम से युवाओं में शारीरिक, मानसिक और आत्मिक क्षमताओं का विकास हो सके. इसके लिए उन्होंने वैदिक गुरुकुल प्रणाली का प्रचार किया. स्वामी दयानंद की विचारधारा से प्रेरित होकर बाल गंगाधर तिलक, लाला लाजपत राय, राम प्रसाद बिस्मिल, श्यामजी कृष्ण वर्मा, चंद्रशेखर आजाद, भगत सिंह जैसे अनेक युवाओं ने भारत की स्वतंत्रता के लिए अपने प्राणों की आहुति दी. स्वामी दयानंद एक तपस्वी और निर्भीक संन्यासी थे.

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