Sharad Purnima Ki Vrat Katha: शरद पूर्णिमा का पावन पर्व आज यानी सोमवार 6 अक्टूबर को मनाया जा रहा है. इस दिन माता लक्ष्मी की पूजा-अर्चना की जाती है. माना जाता है कि इस दिन रात के समय चंद्रमा अपनी 16 कलाओं से अमृत बरसाता है. यही कारण है कि इस दिन घरों में खीर बनाकर चंद्रमा की रोशनी में रखने की परंपरा है. कहा जाता है कि ऐसा करने से चंद्रमा से बरस रहा अमृत खीर में आ जाता है और इसके सेवन से शारीरिक रोग-कष्ट दूर होते हैं.
क्या है शरद पूर्णिमा पर खीर रखने का शुभ समय ?
शरद पूर्णिमा के दिन सुबह 12 बजकर 23 मिनट से लेकर रात 10 बजकर 53 मिनट तक भद्रा काल रहने वाला है. धार्मिक मान्यताओं के अनुसार इस समय कोई भी शुभ कार्य नहीं करना चाहिए. ऐसे में आप 10 बजकर 53 मिनट के बाद खीर को चंद्रमा की रोशनी में रखें.
क्या है शरद पूर्णिमा पौराणिक कथा ?
शरद पूर्णिमा की प्रचलित पौराणिक कथा के अनुसार, प्राचीन समय में एक साहूकार हुआ करता था. उसकी दो बेटियां थीं. दोनों ही बेटियां हर साल पूर्णिमा का व्रत रखती थीं. बड़ी पुत्री पूरे विधि-विधान से व्रत रख उसे पूरा करती थी, जबकि छोटी पुत्री भूख बर्दाश्त नहीं कर पाती थी और बीच में भोजन ग्रहण कर व्रत अधूरा छोड़ देती थी. ऐसे ही साल बीतते गए. साहूकार ने अपनी दोनों बेटियों का विवाह करा दिया.
कहा जाता है कि छोटी पुत्री, जो बार-बार व्रत अधूरा छोड़ दिया करती थी, उसकी हर संतान जन्म के तुरंत बाद मर जाती थी. इन सबसे दुखी और हताश छोटी बहन एक दिन पंडितों के पास इसका कारण पूछने गई. पंडितों ने उसे बताया कि उसके पूर्णिमा का व्रत अधूरा छोड़ने के कारण ऐसा हो रहा है. उन्होंने उसे कहा कि यदि वह इस बार पूरे नियमों का पालन करते हुए व्रत करेगी, तो ही उसकी संतान जीवित रह सकेगी.
इसके बाद छोटी बहन ने पंडितों के कहे अनुसार पूरे विधि-विधान से व्रत किया. कुछ समय बाद उसे एक पुत्र हुआ, लेकिन कुछ दिनों बाद वह बच्चा भी जीवित नहीं रह सका. यह देखकर छोटी बहन रोते हुए पहले अपने बच्चे को एक पीढ़े पर लिटाया, फिर उसे कपड़े से ढक दिया और अपनी बड़ी बहन को बुलाने चली गई.
जब बड़ी बहन आई, तो छोटी बहन ने उसे उसी पीढ़े पर बैठने को कहा, जहां उसने अपने मृत बच्चे को लिटाकर रखा था. जैसे ही बड़ी बहन उस पर बैठने लगी, उसकी साड़ी का एक हिस्सा बच्चे को छू गया और बच्चा अचानक रोने लगा. यह देखकर बड़ी बहन चौंक गई और गुस्से में अपनी बहन से कहा, “तुम मुझे कलंकित करना चाहती थी, अगर यह मर जाता तो दोष मुझे दिया जाता.” इस पर छोटी बहन ने रोते हुए कहा, “दीदी, यह तो पहले से ही मरा हुआ था. तुम्हारे पुण्य और पूर्णिमा व्रत के कारण यह जीवित हुआ है.” इसके बाद छोटी बहन ने पूरे नगर में घोषणा करवाई कि पूर्णिमा का व्रत हमेशा पूरे विधि-विधान से करना चाहिए. यह व्रत न केवल संतान की रक्षा करता है, बल्कि जीवन में सुख, समृद्धि और सौभाग्य भी लाता है.
शरद पूर्णिमा कब शुरू होगी और कब खत्म होगी?
शरद पूर्णिमा की तिथि 6 अक्टूबर को दोपहर 12 बजकर 23 मिनट पर शुरू होगी. वहीं इसका समापन 7 अक्टूबर को सुबह 9 बजकर 16 मिनट पर होगा.
शरद पूर्णिमा को चांद कितने बजे निकलेगा?
इस दिन चंद्रमा का उदय शाम 5 बजकर 27 मिनट पर होगा.
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