ज्योतिषशास्त्र में शनि का पाया एक महत्वपूर्ण विषय है, जिस पर अक्सर लोग ध्यान नहीं देते. जन्मकुंडली देखने पर जहां ग्रह-नक्षत्र की स्थिति का विश्लेषण किया जाता है, वहीं शनि के पाया को अनदेखा कर दिया जाता है, जिसके कारण व्यक्ति जीवन में अनावश्यक परेशानियों का सामना कर सकता है.
“पाया” का अर्थ हिंदी में स्तंभ होता है. किसी व्यक्ति की जन्म राशि और चंद्रकुंडली के आधार पर, शनि की स्थिति के अनुसार पाया तय होता है. शनि का पाया निर्धारण चंद्रमा और शनि की स्थिति के आधार पर किया जाता है, और यह दर्शाता है कि जन्म के समय शनि किस भाव में स्थित था.
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ज्योतिष के अनुसार, शनि का पाया चार प्रकार का होता है—
शनि के पाया के प्रकार और उनके प्रभावशनि के पाया के प्रकार और उनके प्रभाव
स्वर्ण (सोना) का पाया
यदि शनि, जन्म राशि (चंद्रकुंडली) से 1, 6 या 11वें भाव में स्थित हो, तो इसे सोने का पाया कहा जाता है. यह पाया शुभ माना जाता है और व्यापार, नौकरी तथा जीवन में उन्नति लाता है. हालांकि, परिणाम पूरी तरह सकारात्मक नहीं होते—कुछ स्थितियों में मिलाजुला असर भी दे सकता है.
चांदी का पाया
जब शनि 2, 5 या 9वें भाव में स्थित हो, तो यह चांदी का पाया कहलाता है. यह स्थिति बहुत शुभ मानी जाती है. व्यक्ति को धन लाभ, स्थिर आय और उच्च जीवनशैली प्राप्त होती है.
तांबे का पाया
यदि शनि 3, 7 या 10वें भाव में हो, तो इसे तांबे का पाया कहते हैं. यह पाया सामान्य परिणाम देता है. व्यक्ति को कार्यक्षेत्र में मेहनत करनी पड़ती है, लेकिन पारिवारिक जीवन सामान्य और संतोषजनक रहता है.
लोहा का पाया
जब शनि 4, 8 या 12वें भाव में स्थित हो, तो इसे लोहे का पाया कहा जाता है. यह कम शुभ माना जाता है. इसमें व्यक्ति पर कर्ज बढ़ सकता है, मानसिक तनाव रह सकता है, और कार्यक्षेत्र में विशेष अनुशासन व सतर्कता की आवश्यकता होती है.
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ज्योतिषाचार्य संजीत कुमार मिश्रा
ज्योतिष वास्तु एवं रत्न विशेषज्ञ
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