सुरेंद्र कुमार/शंकर पोदार, रजरप्पा
Rajarappa Temple: झारखंड की धार्मिक और सांस्कृतिक धरोहरों में रजरप्पा का नाम बेहद आस्था से लिया जाता है. मां छिन्नमस्तिका मंदिर के लिए मशहूर यह स्थान संताल समाज के लिए उतना ही पूजनीय है, जितना काशी. संताल परंपरा में मान्यता है कि किसी व्यक्ति के निधन के बाद उसकी आत्मा की शांति और मोक्ष के लिए अस्थियों का विसर्जन रजरप्पा स्थित दामोदर नद में किया जाना आवश्यक है. यही वजह है कि पीढ़ियों से यह परंपरा संताल समाज की पहचान और आस्था से जुड़ी हुई है.
रविवार को मुख्यमंत्री हेमंत सोरेन ने अपने पिता और दिशोम गुरु शिबू सोरेन की पवित्र अस्थियों का विसर्जन इसी दामोदर नद में किया. यह क्षण न सिर्फ संताल समाज, बल्कि पूरे झारखंड के लिए भावुक कर देने वाला था. शिबू सोरेन को जीवनभर समाज और झारखंड आंदोलन के लिए समर्पित माना जाता है. ऐसे में उनका अस्थि विसर्जन रजरप्पा में होना समाज की परंपरा और गहरी आस्था का प्रतीक बन गया.
शक्ति उपासना का प्रमुख केंद्र
रजरप्पा स्थित मां छिन्नमस्तिका का मंदिर शक्ति उपासना का एक प्रमुख स्थल माना जाता है. यहां की पवित्र धारा में अस्थि विसर्जन करने से आत्मा को मोक्ष और पितरों का आशीर्वाद प्राप्त होता है. यही कारण है कि झारखंड ही नहीं, बल्कि पड़ोसी राज्यों के संताल परिवार भी अपने परिजनों की अस्थियां विसर्जित करने यहां आते हैं.
पिता की परंपरा निभाते दिखे हेमंत सोरेन
संताल समाज के लोगों ने कहा कि शिबू सोरेन हमारे लिए सिर्फ नेता नहीं, बल्कि परिवार के मुखिया जैसे थे. उनकी अस्थियां दामोदर नद में विसर्जित होते देख ऐसा लगा जैसे हमारी आत्मा का एक हिस्सा भी उसमें समा गया. लोगों ने यह भी माना कि हेमंत सोरेन ने जिस तरह समाज की परंपरा निभायी, उससे साफ है कि वे पिता की विरासत और मूल्यों को आगे बढ़ाने के लिए पूरी तरह तैयार हैं.

