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Premanand Ji Maharaj: ज्यादा पूजा-पाठ करने वालें को क्यों मिलते हैं इतने कष्ट? जानिए क्या कहते हैं प्रेमानंद जी महाराज

Premanand Ji Maharaj: क्या आपने कभी सोचा है कि कुछ लोग नियमित रूप से ज्यादा पूजा-पाठ करते हैं, उन्हें ज्यादा कष्ट क्यों होते हैं? आइए जानते हैं प्रेमानंद जी महाराज ने क्या बताया है.

Premanand Ji Maharaj: प्रेमानंद महाराज अपने उपदेशों और सत्संगों के जरिए लोगों को भक्ति और आध्यात्मिक जीवन की ओर मार्गदर्शन दे रहे हैं. खासकर युवाओं में उनका आकर्षण लगातार बढ़ता जा रहा. भक्त उनसे सवाल करते हैं और महाराज जी उसका जवाब देते हैं. इसी कड़ी में किसी भक्त ने उनसे पूछा की ज्यादा भक्ति करने वालों को इतने कष्ट क्यों मिलते है तो प्रेमानंद जी ने क्या ऊतर दिया आइए जानते हैं.

ज्यादा पूजा करने वालें लोगों को क्यों होते है इतने कष्ट

प्रेमानंद महाराज जी ने समझाया कि हमारे पिछले जन्मों से जो पाप या गलत कर्म जुड़े हैं, उन्हें भगवान इस जन्म में धीरे-धीरे दूर करते हैं. उन्होंने इसे इस तरह समझाया कि जैसे कमरे में कूड़ा दिखाई नहीं देता, लेकिन जब आप झाड़ू लगाते हैं तो सारे कचरे सामने आ जाते हैं. इसी तरह, जब हम पूजा और भक्ति का मार्ग अपनाते हैं, तो पुराने कर्मों के असर से कुछ कठिनाइयाँ सामने आने लगती हैं.

भक्ति का मार्ग कभी नहीं छोड़ना चाहिए

महाराज जी ने यह भी स्पष्ट किया कि इस दौरान भयभीत नहीं होना चाहिए और भक्ति का मार्ग कभी नहीं छोड़ना चाहिए. उन्होंने कहा कि आध्यात्मिकता की ओर चलने वाला हर कठिन अनुभव अंत में फलदायी होता है. जो व्यक्ति भगवान के रास्ते पर निरंतर चलता है, उसके लिए असली हानि नहीं हो सकती.

जारी रखें नाम जाप

अगर कभी विपत्ति या परेशानी आती भी है, तो इसका मतलब यह है कि हमारे पुराने बंधन या पापों को धीरे-धीरे समाप्त किया जा रहा है. महाराज जी ने यह स्पष्ट किया कि यह समझना गलत होगा कि भगवान का नाम जपना शुरू करने के बाद ही समस्याएँ आई हैं. इसलिए इन सभी चुनौतियों को पीछे छोड़कर, श्रद्धा और निरंतरता के साथ भगवान के नाम का जाप जारी रखना चाहिए.

क्या भक्ति के मार्ग पर आने वाले दुख का मतलब है कि भगवान हमें छोड़ रहे हैं?

नहीं, महाराज जी बताते हैं कि परमार्थ के मार्ग पर आने वाले हर शूल का अंत फलदायी होता है. जो प्रभु के मार्ग पर चलता है, उसका अमंगल नहीं हो सकता.

परेशानियां क्यों आती हैं, जबकि हम भगवान का नाम जप रहे हैं?

इसका अर्थ है कि पुराने पाप या बंधन धीरे-धीरे समाप्त हो रहे हैं. विपत्ति का अनुभव भगवान की भक्ति को रोकने के लिए नहीं, बल्कि हमारे अंदर पवित्रता और आत्म-सुधार लाने के लिए होता है.

क्या पुराने कर्मों की वजह से आने वाली कठिनाइयाँ हमेशा रहेंगी?

नहीं, जैसे-जैसे हम सच्ची भक्ति और अच्छे कर्म करते हैं, पुराने पाप धीरे-धीरे समाप्त हो जाते हैं और जीवन में शांति और सुख लौटता है.

ये भी पढ़ें: Premanand Ji Maharaj: भगवान इच्छाएं पूरी नहीं करतें तो भक्ति पर होता है शक? ऐसे में क्या करें… जानें प्रेमानंद जी से

Disclaimer: यहां दी गई जानकारी केवल मान्यताओं और परंपरागत जानकारियों पर आधारित है. प्रभात खबर किसी भी तरह की मान्यता या जानकारी की पुष्टि नहीं करता है.

JayshreeAnand
JayshreeAnand
कहानियों को पढ़ने और लिखने की रुचि ने मुझे पत्रकारिता की ओर प्रेरित किया. सीखने और समझने की इस यात्रा में मैं लगातार नए अनुभवों को अपनाते हुए खुद को बेहतर बनाने की कोशिश करती हूं. वर्तमान मे मैं धार्मिक और सामाजिक पहलुओं को नजदीक से समझने और लोगों तक पहुंचाने का प्रयास कर रही हूं.

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