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कल मनाई जाएगी महावीर जयंती 2025, यहां से जानें भगवान महावीर को कैसे मिली केवलिन  की उपाधि

Mahavir Jayanti 2025: भगवान महावीर जैन धर्म के चौबीसवें तीर्थंकर माने जाते हैं. महावीर जयंती जैन समुदाय का एक महत्वपूर्ण उत्सव है. प्रत्येक वर्ष चैत्र शुक्ल त्रयोदशी के दिन जैन धर्म के अनुयायी इस पर्व को मनाते हैं. इसी दिन भगवान महावीर का जन्म हुआ था, जो जैन धर्म के 24वें और अंतिम तीर्थंकर हैं. महावीर जयंती को एक पर्व के रूप में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है.

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Mahavir Jayanti 2025: चैत्र मास की शुक्ल पक्ष की त्रयोदशी तिथि को भगवान महावीर का जन्म हुआ था. इस दिन को जैन धर्म में महावीर जयंती के रूप में मनाया जाता है. इस वर्ष महावीर जयंती का पर्व कल 10 अप्रैल को मनाया जाएगा. भगवान महावीर का जन्म एक राजपरिवार में हुआ था. उन्होंने बहुत कम उम्र में भौतिक सुख-सुविधाओं का त्याग कर संन्यासी का जीवन अपनाया. महावीर जयंती के अवसर पर आइए हम बताने जा रहे हैं भगवान महावीर के बारे में कुछ विशेष

महावीर स्वामी, जैन धर्म के 24वें तीर्थकर

महावीर स्वामी को उनके सत्य के प्रति प्रतिबद्धता, अहिंसा और मानवता के प्रति प्रेम के कारण जैन धर्म का 24वां तीर्थकर माना जाता है. उन्होंने जैन धर्म के संस्थापक ऋषभदेव के सिद्धांतों को विस्तार देते हुए इसे आगे बढ़ाया.

वैशाली में जन्म

महावीर जी का जन्म बिहार के वैशाली क्षेत्र के निकट कुंडग्राम में हुआ था. वे एक राज परिवार में जन्मे थे, उनके पिता सिद्धार्थ कुंडग्राम के राजा थे. राजसी परिवार में जन्म लेने के कारण स्वामी जी का जीवन आरामदायक और ऐश्वर्य से भरा हुआ था. उनके बचपन का नाम वर्धमान था.

पूर्व से पश्चिम तक का विस्तार

महावीर जी ने जैन धर्म को वैश्विक स्तर पर प्रतिष्ठा दिलाई. उन्होंने उड़ीसा से मथुरा तक जैन धर्म का प्रसार किया. वे मौर्य और गुप्त वंश के शासनकाल में जैन धर्म को पुनर्जीवित करने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई.

“जीवो और जीने दो” का सिद्धांत

महावीर स्वामी मानवता के कल्याण के प्रति पूर्ण रूप से समर्पित थे. उन्होंने समाज में व्याप्त जाति व्यवस्था का विरोध किया और लोगों को “जीवो और जीने दो” के सिद्धांत के माध्यम से जनकल्याण की दिशा में आगे बढ़ने के लिए प्रेरित किया.

भगवान महावीर को केवलिन की उपाधि कैसे प्राप्त हुई

बचपन से ही वर्धमान का वैराग्य के प्रति गहरा झुकाव था. उन्हें धन और राजसत्ता में कोई रुचि नहीं थी. इसी दौरान उनके पिता का निधन हो गया, जिससे वर्धमान की जीवन में बची हुई आशा भी समाप्त हो गई. जब उन्होंने सन्यास लिया, तब उनकी आयु केवल 30 वर्ष थी. इसके बाद उन्होंने 12 वर्षों तक कठोर तप किया. इस तपस्या के फलस्वरूप, जम्बक वन में ऋजुपालिका नदी के किनारे स्थित साल्व वृक्ष के नीचे उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई. इस ज्ञान को कैवल्य कहा जाता है, और इसी कारण भगवान महावीर को केवलिन की उपाधि दी गई. इसके पश्चात, उनके विचारों और उपदेशों ने न केवल आम जनों, बल्कि विशिष्ट व्यक्तियों को भी प्रभावित करना शुरू कर दिया. उनकी कीर्ति चारों ओर फैलने लगी, और उनके अनुयायियों तथा शिष्यों की संख्या में वृद्धि होने लगी.

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