डॉ एमपी सिंह
वरिष्ठ लेप्रोस्कोपिक सर्जन
गुरु नानक अस्पताल
Guru Tegh Bahadur Shaheedi Divas 2025: हिंद की चादर साहिब श्री गुरु तेग बहादुर जी का बलिदान सिर्फ इतिहास का एक अध्याय नहीं, बल्कि मानवता, आस्था और स्वतंत्रता की रक्षा का एक अमर संदेश है. सिखों के नवें गुरु, गुरु तेग बहादुर जी की शहादत को देश 24 नवंबर 2025 को 350वीं वर्षगाँठ के रूप में मना रहा है. उनका बलिदान दुनिया के इतिहास में अनोखा है, क्योंकि उन्होंने अपने प्राण सिर्फ एक समुदाय नहीं, बल्कि पूरी मानवता की धार्मिक स्वतंत्रता की रक्षा के लिए न्योछावर कर दिए.
उथल–पुथल का दौर और गुरु तेग बहादुर जी की भूमिका
सत्रहवीं सदी भारत के लिए काफी कठिन समय था. औरंगजेब के शासन में धार्मिक कट्टरता और जबरन धर्मांतरण की घटनाएं बढ़ गई थीं. खासकर कश्मीर में उसके सूबेदार इफ्तिखार खान द्वारा हिंदुओं पर अत्याचार किए जा रहे थे. डर, हिंसा और जबरदस्ती धर्म बदलवाने की कोशिशों से परेशान होकर कई कश्मीरी ब्राह्मण किसी ऐसे व्यक्ति की तलाश में थे, जो उनकी रक्षा कर सके. इन्हीं परिस्थितियों में 1675 में पंडित कृपा राम के नेतृत्व में एक समूह आनंदपुर साहिब पहुँचा. उन्हें पता था कि गुरु तेग बहादुर जी का दरबार हमेशा पीड़ितों और कमजोरों के लिए खुला रहता है. गुरु साहिब को लोग सिर्फ आध्यात्मिक नेता नहीं, बल्कि एक रक्षक और मार्गदर्शक के रूप में देखते थे.
जब ब्राह्मणों ने अपनी पीड़ा सुनाई, तो सवाल उठा—इन अत्याचारों के खिलाफ खड़ा कौन होगा? जवाब बहुत स्पष्ट था: “सबसे महान संत ही यह जिम्मेदारी उठा सकते हैं.” गुरु तेग बहादुर जी ने बिना झिझक इस जिम्मेदारी को स्वीकार किया.
ये भी लिखें: इस दिन है गुरु तेग बहादुर सिंह जी का शहीदी दिवस, जानें सिखों के नौवें गुरु के बारे में…
दिल्ली में औरंगजेब से सामना
गुरु जी दिल्ली पहुंचे और औरंगजेब से सीधे मुलाकात की. बादशाह ने उन्हें पद, धन और सुरक्षा देने का प्रस्ताव रखा—बस एक शर्त पर: वे इस्लाम कबूल कर लें. लेकिन गुरु तेग बहादुर जी दृढ़ थे. उन्होंने साफ कहा कि कोई भी सत्ता किसी की आस्था या विश्वास छीनने का अधिकार नहीं रखती. धर्म आत्मा का विषय है, सत्ता का नहीं. औरंगजेब को यह बात बहुत बुरी लगी. नतीजा यह हुआ कि 24 नवंबर 1675 को चांदनी चौक में गुरु जी का सार्वजनिक रूप से सिर कलम कर दिया गया. उनके साथियों को भी यातनाएँ दी गईं, लेकिन किसी ने अपना धर्म नहीं छोड़ा.
बलिदान का गहरा संदेश
गुरु तेग बहादुर जी जानते थे कि उनका बलिदान सिर्फ एक जीवन का अंत नहीं होगा—यह पूरी जनता में हिम्मत और एकता जगाएगा. वे चाहते थे कि लोग जाति, पंथ, संप्रदाय और भेदभाव से ऊपर उठकर अपनी सांस्कृतिक और आध्यात्मिक विरासत को मजबूत करें. उनका बलिदान उन दिनों बेहद महत्वपूर्ण था, जब हिंदू समाज एकजुट नहीं था और कई पंथों में बंटा हुआ था. ऐसे विखंडन ने भारत को बार-बार बाहरी आक्रमणों के सामने कमजोर बनाया था. लेकिन गुरु तेग बहादुर जी ने दिखाया कि सत्य और धर्म की रक्षा के लिए खड़े होने वाला एक व्यक्ति भी पूरे समाज को जागृत कर सकता है.
आज की पीढ़ी के लिए प्रेरणा
गुरु तेग बहादुर जी का जीवन और बलिदान आज के युवाओं के लिए बहुत बड़ा संदेश है:
- सत्य और न्याय के पक्ष में डटे रहो.
- कमजोरों की मदद करो और अत्याचार के खिलाफ आवाज उठाओ.
- अपनी संस्कृति और विरासत का सम्मान करो.
- धर्म और आस्था व्यक्तिगत अधिकार हैं—इन्हें जबरन नहीं बदला जा सकता.
- कभी भी अन्याय के आगे मत झुको.
आज की पीढ़ी को साहिब जी का संदेश
आज की पीढ़ी के लिए गुरु तेग बहादुर साहिब जी का बलिदान बेहद स्पष्ट संदेश प्रेषित करता है- ‘सत्य के साथ खड़े रहो, कमजोरों की रक्षा करो, अपनी सास्कृतिक विरासत का सम्मान करो, अपनी आस्था पर निष्ठ रहो और अन्याय के सामने कभी न झुको.”

