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Chandra Grahan 2025: मानव शरीर और ब्रह्मांड, चंद्रग्रहण का गहरा संबंध

Chandra Grahan 2025: भारतीय दर्शन में मानव शरीर को ब्रह्मांड का अंश माना गया है. ‘यत् पिंडे तत् ब्रह्माण्डे’ की परिभाषा इस रहस्य को उजागर करती है. सूर्य-विवेक और चंद्रमा-मन की प्रवृत्तियां जीवन को प्रभावित करती हैंयजानें चंद्रग्रहण का मानव जीवन और ब्रह्मांड से गहरा आध्यात्मिक व खगोलीय संबंध.

सलिल पांडेय, मिर्जापुर

Chandra Grahan 2025: मानव शरीर ब्रह्मांड का अंश है. विद्वानों ने इसको परिभाषित करते हुए ‘यत् पिंडे तत् ब्रह्माण्डे’ वाक्य का प्रयोग किया है. इसका अर्थ है कि ब्रह्मांड में जितने जीव-जंतु और पदार्थ हैं, वह सभी मानव पिंड में विद्यमान है. खगोल शास्त्र के अनुसार सूर्य, चन्द्रमा, तारे आकाशीय पिंड हैं. पृथ्वी भी ब्रह्मांड का पिंड है. इतना ही नहीं ब्रह्मांड में विविध प्रकार के जीव-जंतु हैं. सबका अंश कहीं न मनुष्य तन से जुड़ा है. इसे मनुष्य तन में स्थित मन की प्रवृत्तियों से समझा जा सकता है. धरती पर जानवर भी हैं. यदि मनुष्य का मन हिंसक प्रवृति का हो जाता है तब उसकी तुलना जानवर से होने लगती है ओर यदि वह उच्च स्तर का का आचरण करता है तब उसे देवता कहा जाता है. भारतीय मनीषियों ने अंतरिक्ष में स्थित ग्रहों को ईश्वर मानकर उसकी पूजा भी की जाती है. इसमें सर्वाधिक महत्व सूर्य और चन्द्रमा को दिया गया है. भारतीय पंचांग में काल का विभाजन सौर वर्ष और चन्द्र वर्ष के रूप में किया है. सूर्य एक माह में राशि परिवर्तन तो चन्द्रमा को ढाई दिन में राशि परिवर्तन करता है. इसी के चलते लगभग तीन वर्षों में पुरुषोत्तम मास (अधिक मास) की अवधि निर्धारित है.

ब्रह्मांडीय ग्रहण और मानव जीवन का प्रतीकात्मक अर्थ

इस प्रकार ब्रह्मांड की गतिविधियों की तरह मनुष्य की भी गतिविधियां हैं. अंतरिक्ष में दो तरह के ग्रहण लगते हैं. गतिमान ब्रह्मांड में चन्द्र ग्रहण उस वक्त लगता है जब चन्द्रमा और सूर्य के बीच पृथ्वी आ जाती है और सूर्यग्रहण के दौरान चन्द्रमा और पृथ्वी के बीच सूर्य आ जाता है.

अब से कुछ ही घंटों में लगेगा साल का अंतिम चंद्रग्रहण

आज 7 सितंबर 2025 की रात को यह खगोलीय घटना घटित होगी, जो लगभग साढ़े तीन घंटे तक जारी रहेगी.

Chandra Grahan 2025: गृहस्थों के लिए ग्रहण काल में उपवास का नियम 

विवेक और प्रवृत्तियों का संतुलन : जीवन में ग्रहण से मुक्ति का मार्ग

इस दृष्टि से मानव के जीवन पर गहराई से दृष्टि डाली जाए तो मानव शरीर धरती की तरह है. इस शरीर में जल भी है तो थल और वन भी है. विविध श्लोकों में ‘जले-थले और वने-रणे निवासिनीं भजामि विन्ध्यवासिनीं’ के जरिए मातृशक्ति की आराधना की गई है. अंतरिक्ष के ग्रहों को मनुष्य के शरीर में देखा जाए तो मनुष्य का विवेक सूर्य है और उसकी प्रवृत्तियां चन्द्रमा हैं. विवेक ऐसा सूर्य है जिसके उदित रहने पर व्यक्ति का प्रकाश चतुर्दिक फैलता है. जबकि मन की प्रवृत्तियां उज्ज्वल स्वरुप की होती हैं तो चन्द्रमा के शुक्ल पक्ष और नकारात्मक होती हैं तो कृष्ण पक्ष की तरह अंधकारमय जीवन की ओर ले जाती है. शरीर को ही महत्व देने पर विवेक का सूर्य गौण होने लगता है.ऐसी स्थिति में जीवन में सूर्यग्रहण की नौबत आ जाती है. क्योंकि मन की प्रवृत्तियाँ भारी हो जाती हैं जिसके चलते विवेक का सूर्य महत्वहीन हो जाता है. इसी तरह विवेक जागृत होने पर मन की कामनाएं महत्वहीन होने लगती हैं. इसलिए मनुष्य को चाहिए कि वह जीवन में सन्तुलन बनाने के लिए विवेक के सूर्य और मन की प्रवृत्तियों में सन्तुलन बनाए रखे ताकि ग्रहण में पड़ने वाले दुष्प्रभावों से शरीर रूपी पृथ्वी पर विपरीत असर न पड़ने पाए.

Shaurya Punj
Shaurya Punj
रांची के सेंट जेवियर्स कॉलेज से मास कम्युनिकेशन में स्नातक की डिग्री प्राप्त करने के बाद मैंने डिजिटल मीडिया में 14 वर्षों से अधिक समय तक काम करने का अनुभव हासिल किया है. धर्म और ज्योतिष मेरे प्रमुख विषय रहे हैं, जिन पर लेखन मेरी विशेषता है. हस्तरेखा शास्त्र, राशियों के स्वभाव और गुणों से जुड़ी सामग्री तैयार करने में मेरी सक्रिय भागीदारी रही है. इसके अतिरिक्त, एंटरटेनमेंट, लाइफस्टाइल और शिक्षा जैसे विषयों पर भी मैंने गहराई से काम किया है. 📩 संपर्क : [email protected]

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