इस संसार में प्रत्येक आस्तिक को मनुष्य जीवन की गरिमा और जिम्मेवारी समझनी चाहिए तथा उसी के अनुरूप अपने चिंतन तथा कर्त्तव्य का निर्धारण करना चाहिए. उसे अपनी विशेषताओं का उपयोग इसी महान प्रयोजन के लिए करना चाहिए. जीवन दर्शन की यह उत्कृष्ट प्रेरणा ईश्वर विश्वास के आधार पर ही मिलती है. जीवन क्या है, क्यों है, उसका लक्ष्य एवं उपयोग क्या है?
इन प्रश्नों का समाधान मात्र आस्तिकता के साथ जुड़ी हुई दिव्य दूरदर्शिता के आधार पर ही मिलता है. इसी प्रेरणा से प्रेरित मनुष्य संकीर्ण स्वार्थपरता से, वासना, तृष्णा के भव-बंधनों से छुटकारा पाकर आत्मनिर्माण, आत्मविस्तार व आत्मविकास की ओर अग्रसर होता है. यदि आस्तिकता का सही स्वरूप समझा जा सके और जीवन-दर्शन के साथ उसे ठीक प्रकार से जोड़ा जा सके, तो निश्चय ही मनुष्य में देवत्व का उदय हो जाता है और धरती पर स्वर्ग का अवतरण संभव हो सकता है. यही तो ईश्वर द्वारा मनुष्य सृजन का एकमात्र उद्देश्य है.
सृष्टि के सभी प्राणी एक पिता के पुत्र होने के नाते सहोदर हैं और परस्पर एक-दूसरे का प्रेम, स्नेह, सहयोग, समर्थन पाने के अधिकारी हैं. आस्तिकता यही मान्यता अपनाने के लिए प्रत्येक विचारशील मनुष्य को प्रेरणा देती है.
– पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य