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साधक गोपाल दा

– हरिवंश – मीडिया की खबरें बतातीं हैं कि आज समाज या सभ्यता कैसे दोराहे पर खड़े हैं? संकट से घिरे. असहाय स्थिति में. कोई रोशनी या पथ प्रदर्शक नहीं. मध्य सितंबर 09 में लगातार खबरें आयीं कि कैसे लोग अपने सगों की हत्या कर रहे हैं? बेटी ने दिल्ली में अपनी मां को मार […]

– हरिवंश –
मीडिया की खबरें बतातीं हैं कि आज समाज या सभ्यता कैसे दोराहे पर खड़े हैं? संकट से घिरे. असहाय स्थिति में. कोई रोशनी या पथ प्रदर्शक नहीं. मध्य सितंबर 09 में लगातार खबरें आयीं कि कैसे लोग अपने सगों की हत्या कर रहे हैं? बेटी ने दिल्ली में अपनी मां को मार डाला, मुक्ति पा कर शादी करने के लिए. हरियाणा में एक लड़की ने अपने परिवार के सात लोगों की हत्या कर दी, अपने प्रेमी से मिलकर.
ब्रिटेन में एक महिला ने अपनी मां को मार डाला. पटना में एक बच्चे का अपहरण हुआ , अपहरणकर्ता पड़ोसी था. एक नाना ने ही अपने नाती की हत्या कर दी. लखनऊ में भाई ने दोस्त से मिलकर बहन का अपहरण कर लिया. फिरौती मांगी, फिर हत्या करवा दी. ये सभी खबरें लगभग दो सप्ताह के अंदर या आसपास की हैं, जगह चाहे बिहार हो, या दिल्ली या उत्तरप्रदेश या हरियाणा या ब्रिटेन. प्रवृत्ति एक है. बढ़ती मानवीय क्रूरता की और मनुष्य के अंदर घटती आंतरिक संवेदनहीनता की.
आज की सभ्यता और संस्कृति का यही सबसे बड़ा संकट है. एक तरफ दुनिया विकसित हो रही है. रोज-रोज नयी-नयी टेक्नोलाजी आ रही है. मनुष्य को सुख और भोग देने के लिए.
दुनिया ग्लोबल विलेज बन रही है. दूसरी ओर मनुष्य होने के बुनियादी गुण घट रहे हैं. एक तरफ भौतिक उपलब्धि. भोग का संसार. दूसरी तरफ चरित्र का संकट. मूल्य का संकट. पर्यावरण संकट, दुनिया के अस्तित्व से जुड़ा पहलू अलग है. दुनिया के इस अंतर्विरोध की जड़ कहां है? क्या इसके बारे में कोई चिंतित है?
हां, इसे लेकर दुनिया के विभिन्न संगठनों, देशों में आवाज उठती रही है. लोग चिंतित भी हैं. पर प्रामाणिक आवाज की कमी है. यहीं आकर महर्षि अरविंद और मां दुनिया के मुक्तिदाता के रूप में दिखाई देते हैं. जब मानवीय मूल्य पर संकट कम थे. पर्यावरण के संकट से धरती उतनी खतरे में नहीं थी, तब महर्षि अरविंद और मां ने देखा कि दुनिया किस रास्ते जा रही है? दुनिया और मानवता पर क्या संकट आनेवाले हैं? इन महान ऋषियों ने पूरी मानवता और दुनिया के लिए अपना जीवन उत्सर्ग कर दिया. घोर तप-त्याग कर.
आध्यात्मिक साधना कर, महर्षि और मां ने बहुत पहले इस संकटग्रस्त सभ्यता और दुनिया को नयी राह दिखाई. नयी चेतना के राह पर चलने का. आध्यात्मिक पुनर्जागरण का. मनुष्य और दुनिया को बचाना है तो इस नयी चेतना की राह पर चलना ही पड़ेगा. यही एकमात्र रास्ता है.
आज इस राह के अप्रतिम और अनोखे राही हैं, साधक गोपाल दा. महर्षि अरविंदो सोसाइटी के इंटरनेशनल सेक्रेटरी. महर्षि अरविंद और मां की चेतना या रोशनी को दूर-दूर तक फैलाने में लगे हुए. गोपाल दा प्रचार-प्रसार के इस युग में चमक-दमक से दूर रह कर अपने काम में डूबे अनोखे कर्मयोगी. न कोई दिखावा, न तामझाम. वह विरले साधक हैं.
मौन रहकर, चुप रह कर. मां और महर्षि के संदेशों को दुनिया के कोने-कोने में फैलाने- ले जाने में जुटे हुए. गोपाल दा से मिलना तो रांची में हुआ, पर परिचय के वर्षों बाद एक बार पांडिचेरी जाना हुआ. उनका स्नेह, उनकी ऊर्जा, और अनवरत श्रम हम सबके लिए प्रेरक और पथ प्रदर्शक है. पांडिचेरी में ही उनसे जानने की कोशिश की, उनका अतीत? स्नेह से बार-बार जिज्ञासा के बाद थोड़ी-बहत चीजें उन्होंने बतायी. कैसे वह पहली बार असम से पांच जगहों पर ट्रेन और पानी जहाज पकड़ कर-बदल कर पांडिचेरी पहुंचे? उनकी पहली मुलाकात मां से कैसे हई? तब वह इंजीनियरिग के विद्यार्थी थे. उनमें बेचैनी थी, आध्यात्मिक राह पर जाने की.
वह प्रतिभाशाली छात्र रहे. इंजीनियरिंग के. चाहते तो निजी संसार-परिवार बसा कर सुख से रह सकते थे. आत्मलीन. अपने में डूबे हुए. पर उन्हें तो समाज और दूसरों के लिए जीना था. कर्म करना था. पांडिचेरी में मां से मुलाकात और पहली पांडिचेरी यात्रा ने गोपाल दा का जीवन ही बदल दिया. निजी परिवार, सुख-दुख से ऊपर उठकर वह मां और महर्षि के काम में रम गये. 140 से अधिक देशों की यात्रा की.
महर्षि-मां के संदेशों के प्रसारण के लिए. संस्था बनाने के लिए. तब उन्होंने बताया था कि ढाका में कैसे उन्हें सहयोग मिला. ढाका में वह किसी को जानते नहीं थे. न रहने-खाने की व्यवस्था थी. न कोई परिचय था. अपरिचय के समुद्र में छलांग . पर एयरपोर्ट पर ही एक आदमी मिल गया. उसने हर मदद की. इसी तरह वह कई देशों में बिना पैसे और पहचान के पहुंचे? फिर संपर्क का जाल बना और अरविंदो सोसाइटी का गठन उन देशों में हुआ.
अगर आप पूछेंगे, बिना संसाधन और परिचय के यह कैसे संभव हुआ? अंतरराष्ट्रीय स्तर पर अरविंद आश्रम का ताना-बाना? वह तुरंत बोलेंगे, यह महर्षि और मां की कृपा है. पर उन्हें करीब से जानने वाले वाकिफ है कि खुद गोपाल दा की ऊर्जा और दृष्टि ने कैसे चमत्कार दिखाया है. मां के सुझाव के अनुसार ही वह अरविंदो सोसाइटी के इंटरनेशनल सेक्रेटरी बनाये गये.
महर्षि और मां के साहित्य पर जिस तरह गोपाल दा बोलते हैं, उन्हें कोट करते हैं, उससे लगता है कि महर्षि साहित्य उन्हें कंठस्थ है. आधुनिक संदर्भों में महर्षि और मां की जिस तरह वे व्याख्या करते हैं, उनके कथन हूबहू सुनाते हैं, वह असाधारण है.
उनमें अनोखा साहस है. अनजान रास्ते पर चलने का. लगातार कुछ नया करने का. विभिन्न संस्कृतियों, नये देशों में जाने का. प्रतिकूल परिस्थितियों में भी अपने काम में डटे रहने का. बिना थके पूरी दुनिया में लगातार घूमने का. अपने आस-पास के लोगों से निरंतर संपर्क में रहने का. एक-एक काम को याद रखने का. सिस्टम के अनुसार करने-कराने का.
उनका व्यक्तित्व ऐसा क्यों है? वह गहरे आध्यात्मिक साधक हैं. अपनी आंतरिक शक्ति छिपाते हैं. सार्वजनिक नहीं करते. पर उनमें आध्यात्मिक ऊर्जा है. लंबे दिनों बाद मिलने पर कई बार वह उल्लेख करते हैं, ध्यान में देखा, तुम्हारे साथ यह बात थी? वह बात सही होती है.
यह भी कभी-कभार बताते हैं कि क्या तुम इस प्रसंग में परेशानी में थे? ध्यान में यह चीज झलकी. और वह सच होता है. ध्यान, त्याग और साधना ने उन्हें अलौकिक शक्ति दी है, पर वह दुनिया की नजर से छुपाकर रहते हैं. उन्हें देखकर लगता है, ‘ए मैन विथ मिशन’. भीड़ हो, फिर भी वो हरेक से अलग-अलग इस तरह मिलते हैं, मानो वही उनका प्रिय हो. आत्मीय हो. नयी मानवता, नयी सुबह के लिए वह काम कर रहे हैं. महर्षि के संदेशों को फैलाकर.
गोपाल दा का जीवन समाज के लिए धरोहर है. जब समाज में आत्मकेंद्रित होकर या सिर्फ अपने लिए जीने की ललक बढ़ रही हो, तब कोई व्यक्ति कैसे समाज के लिए जीता है? मानवता और दुनिया के लिए जीता है? इसके उदाहरण हैं गोपाल दा. उन्हें जानना और समझना क्यों जरूरी है? उनका जीवन इस रूप में समाज के लिए संदेश है कि आज भी ऐसे लोग हैं, जो दूसरों के लिए ही जीते हैं.
भारतीय संस्कृति में बहुत पहले कहा गया था कि यह मेरा है, वह तुम्हारा है, ऐसा सोचनेवाले संकीर्ण मन के छोटे लोग होते हैं. उदार चरित्रवालों के लिए तो पूरी वसुधा (दुनिया, धरती) ही कुटुंब है. गोपाल दा ऐसे ही इंसान हैं, जो पूरी दुनिया को परिवार मान कर जीते हैं. कर्म करते हैं.
दिनांक : 23-09-09

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