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शारदीय नवरात्र पांचवां दिन : ऐसे करें मां स्कंदमाता की पूजा, पढ़े ये मंत्र

जो नित्य सिंहासन पर विराजमान रहती हैं तथा जिनके दोनों हाथ कमलों से सुशोभित होते हैं, वह यशस्विनी दुर्गादेवी स्कंदमाता सदा कल्याणदायिनी हों. आदिशक्ति सीताजी-5 सीताजी की महिमा उनके विवाह के समय दिखायी पड़ती है. बरात के आगमन पर जनकपुर में अपने पिता का मान-सम्मान रखने के लिए और श्रीरघुनंदन की मर्यादा के अनुकूल कुछ […]

जो नित्य सिंहासन पर विराजमान रहती हैं तथा जिनके दोनों हाथ कमलों से सुशोभित होते हैं, वह यशस्विनी दुर्गादेवी स्कंदमाता सदा कल्याणदायिनी हों.
आदिशक्ति सीताजी-5
सीताजी की महिमा उनके विवाह के समय दिखायी पड़ती है. बरात के आगमन पर जनकपुर में अपने पिता का मान-सम्मान रखने के लिए और श्रीरघुनंदन की मर्यादा के अनुकूल कुछ कार्य उन्होंने परोक्ष रूप से किये –
जानी सियँ बरात पुर आई।
कछु निज महिमा प्रगटि जनाई।।
हृदयँ सुमिरि सब सिद्धि बोलाई। भूप पहुनई करन पठाई ।।
सभी सिद्धियों को बुलाकर वह उन्हें राजा दशरथ के स्वागत के लिए भेजती हैं. श्रीरघुवर सियाजी की महिमा जानकर मन-ही-मन प्रसन्न होते हैं-
सिय महिमा रघुनायक जानी ।
हरषे हृदयँ हेतु पहिचानी ।।
श्रीरामचरितमानस की आराध्या सीताजी जन्म-जन्मान्तर से सृष्टि-स्थिति-प्रलय के समय सदा श्रीरामजी को सुख-शांति और प्रेरणा देने के लिए उनके साथ रहती हैं. यही कारण है कि वनगमन के समय श्रीरामजी के वन की विभीषिका का वर्णन करते हुए सीताजी को श्रीअवध में ही रहने के लिए बार-बार उत्प्रेरित करने पर भी सीताजी वन में जाती हैं. सीताजी को श्रीराम के बिना स्वर्ग का सुख भी व्यर्थ प्रतीत होता है-
प्राननाथ करूनायतन सुंदर सुखद सुजान ।
तुम्ह बिनु रघुकुल कुमुद बिधु सुरपुर नरक समान ।।
पतिव्रता नारी के लिए पति की सेवा ही सब सुखसार है. इसलिए सीताजी कहती हैं-
वन दुख नाथ कहे बहुतेरे । भय विषाद परिताप वनेरे ।।
प्रभु वियोग लवलेस समाना । सब मिलि होहिं न कृपानिधाना ।।
सीताजी सदा श्रीराम की सेवा से संतुष्ट होना चाहती हैं. पातिव्रत-धर्म का अनन्य उदाहरण है—
मोहि भग चलत न होइहि हारी । छिनु छिनु चरण सरोज बिहारी ।।
सबहिं भाँति पिय सेवा करिहौं । मारग जनित सकल श्रम हरिहौं ।।
इस तरह श्रीरामजी श्रीसीताजी का अपने प्रति प्रगाढ़ प्रेम देखकर उन्हें वन ले जाने के लिए तैयार हो जाते हैं.
(क्रमशः)
प्रस्तुति : डॉ एनके बेरा

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