जो पक्षिप्रवर गरूड़ पर आरूढ़ होती हैं,उग्र कोप और रोद्रता से युक्त रहती हैं तथा चन्द्रघण्टा नाम से विख्यात हैं, वे दुर्गा देवी मेरे लिये कृपा का विस्तार करें.
आदिशक्ति सीताजी-3
श्रीरामचरितमानस के बालकाण्ड में गोस्वामी जी ने सीताजी के सौन्दर्य का वर्णन करते हुए कहते हैं-संसार में ऐसी कोई भी स्त्री नहीं है, जिसके साथ सीताजी के सौन्दर्य की उपमा दी जा सके. सरस्वती, लक्ष्मी,पार्वती भी किसी- न- किसी दोष से ग्रस्त हैं. कवि के समक्ष एक विकट प्रश्न है कि अन्ततः सीता जी की उपमा किससे दी जाए,
कवि द्वारा लगायी गयी शर्त के अनुसार यदि लक्ष्मी की उत्पत्ति नये ढंग से हो तो भी सीता जी से समता देने में उसे संकोच होगा-
जौं पटतरिअ तीय सम सीया । जग असि जुबति कहाँ कमनीया ।।
गिरा मुखर तन अरध भवानी । रति अति दुखित अतनु पति जानी ।।
विष बारूनी बंधु प्रिय जेही । कहिअ रमासम किमि वैदेही ।।
जौं छबि सुधा पयोनिधि होई । परम रूपमय कच्छपु सोई ।।
सोभा रजु मंदरू सिंगारू । मथै पानि पंकज निज मारू ।।
एहि बिधि उपजै लच्छि जब सुंदरता सुख मूल ।
तदपि सकोच समेत कवि कहहिं सीय समतूल ।।
सीता जी का सौन्दर्य ऐश्वर्यमूलक है. यही शक्ति की महिमा भी है. इस अनिन्द सौन्दर्य में मोह की वासना की गंध तक नहीं है. जहां सामान्य सौन्दर्य के ध्यान करने से मोह और वासना की उत्पत्ति होती है,वहां जगदम्बा सीता जी का ध्यान निर्मलमति प्रदायक है. (क्रमशः)
– प्रस्तुतिः डॉ.एन.के.बेरा