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पुत्र की दीर्घायु के लिए किया जिउतिया व्रत, सोमवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हुआ, बुधवार को पारण के साथ होगा संपन्न
पुत्र के दीर्घायु के लिये महिलाओं ने मंगलवार को जीवित पुत्रिका जिउतिया व्रत किया. महिलाओं ने चौबीस घंटे का निर्जला उपवास रख अपने संतान के दीर्घायु होने की कामना की. इस कठिन व्रत की शुरूअात सोमवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हुअा अौर बुधवार को पारण के साथ संपन्न होगा. सुबह से ही गंगा घाटों […]
पुत्र के दीर्घायु के लिये महिलाओं ने मंगलवार को जीवित पुत्रिका जिउतिया व्रत किया. महिलाओं ने चौबीस घंटे का निर्जला उपवास रख अपने संतान के दीर्घायु होने की कामना की. इस कठिन व्रत की शुरूअात सोमवार को नहाय-खाय के साथ शुरू हुअा अौर बुधवार को पारण के साथ संपन्न होगा.
सुबह से ही गंगा घाटों पर महिलाओं की भीड़ रही. गंगा स्नान करने के बाद महिलाओं ने बिना अन्न-जल ग्रहण किये शाम को पूजा पाठ कर पुत्र की सलामती के लिए भगवान से प्रार्थना की. संतान के दीर्घायु के लिए माताओं ने जीवित पुत्रिका भगवान के कुश की आकृति बना कर सामूहिक पूजा-पाठ किया.
इसके बाद जिउतिया का व्रत कथा सुन संतान की सलामती की दुआ मांगी. पुराणों के अनुसार कुश की आकृति बना कर पूजा करने से सौभाग्य एवं वंश की बढ़ोतरी होती है. वहीं जितबंधन के धारण करने से लोगों को कई प्रकार की विपत्तियों से भी मुक्ति मिलती है.
पंडित राकेश झा के अनुसार सतयुग में सत्यवान एवं सत्य वचन बोलने वाला जिउतवाहक नामक राजा ससुराल में रहा करता था. गरुड़ वहां प्रत्येक दिन आकर गांव के बच्चे को अपना आहार बनाया करता था.
सूर्य वंश में जन्मे शालिवाहन का पुत्र राजा जिमूतवाहन महिलाओं के रोने से काफी दुखी थे. राजा ने बच्चों के बदले पक्षी राज गरुड़ को अपना तन आहार स्वरूप सौंप दिया. पक्षी राज गरुड़ को राजा ने जैसे ही अपना दायां अंग खाने को दिया कि गरुड़ प्रसन्न हो गये तथा राजा को वर मांगने को कहा. तभी से संतान की सलामती के लिये आश्विन शुक्ल की अष्ठमी तिथि पर जिउतिया का व्रत करने का विधान है.
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