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जन्माष्टमी व्रत से आती है समृद्धि

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्स्व है. जन्माष्टमी भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी इसे पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं. नंद के घर आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की… मंदिरों में यह गान इतना अदभूत होता है कि रोम-रोम कृष्ण के नाम पर नाच उठता है. कृष्ण हिंदू धर्म […]

श्रीकृष्ण जन्माष्टमी भगवान श्रीकृष्ण का जन्मोत्स्व है. जन्माष्टमी भारत में ही नहीं, बल्कि विदेशों में बसे भारतीय भी इसे पूरी आस्था व उल्लास से मनाते हैं. नंद के घर आनंद भयो, जय कन्हैया लाल की… मंदिरों में यह गान इतना अदभूत होता है कि रोम-रोम कृष्ण के नाम पर नाच उठता है.
कृष्ण हिंदू धर्म के एक ऐसे देवता हैं, जिन्हें अलग-अलग रूपों में पूजा गया है. कभी उन्होंने बाल रूप में भक्तों का दिल मोह दिया, तो कभी गीता का उपदेश देकर जीवन को एक सार्थक दिशा दी. जन्माष्टमी के रूप में उनके भक्त भगवान श्रीकृष्ण के जन्म का उत्सव मनाते हैं.
मान्यता है कि श्रीकृष्ण का जन्म भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि में हुआ था. स्मार्त संप्रदाय के अनुसार इस साल जन्माष्टमी 14 अगस्त को मनायी जायेगी, वहीं वैष्णव संप्रदाय की ओर से 15 अगस्त को जन्माष्टमी का त्योहार मनाया जायेगा. हिन्दुओं के लिए जन्माष्टमी के त्योहार का बहुत महत्व है.
जन्माष्टमी को भगवान श्रीकृष्ण के जन्मोत्सव के रूप में मनाया जाता है. श्रीकृष्ण को धरती पर भगवान विष्णु का आठवां अवतार माना गया है. हिन्दू कैलेंडर के अनुसार ऐसा कहा जाता है कि श्रीकृष्ण का जन्म श्रावण मास के आठवें दिन यानि अष्टमी पर मध्यरात्रि में हुआ था. वैसे तो पूरे भारत में ही जन्माष्टमी बड़ी धूम-धाम से मनायी जाती है, लेकिन भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि वृन्दावन में इस पर्व की अलग ही रौनक देखने को मिलती है. श्रीकृष्ण के जन्म और दुश्मनों पर विजय प्राप्त करने से लेकर कई अन्य कथाएं हैं जो बेहद ही प्रसिद्ध हैं और जिन्हें आज भी पंसद किया जाता है. जन्माष्टमी के महत्व का अंदाजा इसी बात से लगाया जा सकता है कि इसके व्रत को ‘व्रतराज’ कहा जाता है.
मान्यता है कि इस एक दिन व्रत रखने से कई व्रतों का फल मिल जाता है. अगर भक्त पालने में भगवान को झुला दें, तो उनकी सारी मनोकामनाएं पूरी हो जाती हैं. शास्त्रों के अनुसार इस दिन वृष राशि में चंद्रमा व सिंह राशि में सूर्य था. इसलिए श्री कृष्ण के जन्म का उत्सव भी इसी काल में ही मनाया जाता है. लोग रातभर मंगल गीत गाते हैं और भगवान कृष्ण का जन्मदिन मनाते हैं. इस दिन श्रीकृष्ण की पूजा करने से संतान प्राप्ति ,आयु तथा समृद्धि की प्राप्ति होती है. श्रीकृष्ण जन्माष्टमी का पर्व मनाकर हर मनोकामना पूरी की जा सकती है.
एक कथा के अनुसार मथुरा में कंस नाम का निर्दयी राजा राज करता था. उसकी प्रजा उससे प्रसन्न नहीं थी. कंस की एक छोटी बहन थी जिसका नाम राजकुमारी देवकी था, जिसे वह बहुत प्यार करता था.
कंस ने अपनी बहन देवकी की शादी वासुदेव के साथ करा दी, अचानक आकाश से एक भविष्यवाणी हुई कि देवकी का आठवां पुत्र उसकी मृत्यु का कारण होगा. यह सुनने के बाद क्रूर कंस ने अपनी बहन देवकी और वासुदेव को बंदी बना लिया और दोनों को कई सालों के लिए कारागार में डाल दिया गया. इन सालों में कंस ने देवकी द्वारा जन्म दी गयी छह संतानों का वध कर दिया. हालांकि कंस को देवकी की सातवीं संतान के बारे में बताया गया कि उसका गर्भपात हो गया, लेकिन वे रहस्यमय ढंग से वृंदावन की राजकुमारी रोहिणी के गर्भ में स्थानांतरित कर चुके थे, जो बड़े होकर भगवान कृष्ण के भाई बलराम बने. वहीं श्रीकृष्ण के जन्म के वक्त भगवान निर्देशानुसार वासुदेव कृष्ण को नंद और यशोदा के पास वृंदावन ले गये थे.
उस दिन बहुत भयानक तूफान और बारिश थी . वासुदेव ने श्रीकृष्ण को एक टोकरी में अपने सिर पर रखकर नदी पार की. इस दौरान शेषनाग ने श्रीकृष्ण की बारिश से रक्षा की. वासुदेव ने कृष्ण को नंद को सौंप दिया और वहां से एक बच्ची के साथ लौट आये जिसका जन्म भी उसी दिन हुआ था. इसके बाद जब कंस ने इस बच्ची को मारने की कोशिश की तो यह बच्ची देवी स्वरूप हवा में उड़ गयी और फिर से कंस को उसकी मृत्यु को लेकर चेतावनी सुनायी दी. कुछ सालों बाद श्रीकृष्ण ने कंस का वध किया और मथुरा एक बार फिर खुशहाल राज्य बन गया.
इस दिन भगवान श्रीकृष्ण के भक्त पूरी विधि-विधान के साथ उपवास करते हैं. वे जन्माष्टमी से एक दिन पहले सिर्फ एक बार ही भोजन करते हैं. व्रत वाले दिन सभी भक्त पूरे दिन का उपवास करने का संकल्प लेते हैं और अगले दिन अष्टमी तिथि खत्म होने के बाद अपना व्रत तोड़ते हैं.
जन्माष्टमी के दिन भगवान श्रीकृष्ण का दूध, जल और घी से अभिषेक किया जाता है. भगवान को भोग चढ़ाया जाता है. व्रत वाले दिन भक्त अन्न का सेवन नहीं करते, इसकी जगह फल और पानी लेते हैं जिसे फलाहार कहा जाता है. जन्माष्टमी के मौके पर मंदिरों में अलग ही रौनक देखने को मिलती है. सूर्यास्त के बाद मंदिरों में भजन-कीर्तन का आयोजन किया जाता है. वहीं जिन लोगों का व्रत होता है वह मध्यरात्रि के बाद अपना उपवास तोड़ते हैं.
जन्माष्टमी के दिन पूजा के लिए भगवान श्रीकृष्ण की मूर्ति को भी स्थापित किया जाता है. इस दिन उनके बाल रूप के चित्र को स्थापित करने की मान्यता है. जन्माष्टमी के दिन बालगोपाल को झूला झुलाया जाता है.
मान्यता है कि जन्माष्टमी के दिन बाल श्रीकृष्ण को स्तनपान कराती देवकी की मूर्ति या तस्वीर स्थापित करना शुभ होता है. जन्माष्टमी के दिन सभी मंदिर रात बारह बजे तक खुले होते हैं. बारह बजे के बाद कृष्ण जन्म होता है और इसी के साथ सब भक्त चरणामृत लेकर अपना व्रत खोलते हैं.स्कंद पुराण के मुताबिक जो मनुष्य जानते हुए भी इस दिन व्रत नहीं रखता, वह जंगल में सृप होता है, लेकिन जो व्यक्ति विधि के अनुसार और पूरी आस्था के साथ इस दिन व्रत रखते हैं, उनके पास हमेशा लक्ष्मी स्थिर रहती है और बिगड़ते काम बन जाते हैं.
जन्माष्टमी के अगले दिन को ‘नंद उत्सव’ के रूप में मनाया जाता है, इस दिन भगवान को 56 तरह के खाद्य पदार्थ चढ़ाये जाते हैं जिसे छप्पन भोग कहा जाता है. भगवान को भोग लगने के बाद इसे सभी लोगों में बांटा जाता है. ऐसा कहा जाता है कि छप्पन भोग में वही व्यंजन होते हैं जो भगवान श्री कृष्ण को पंसद थे.

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