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पूरबी गीतन के सम्राट महेंद्र मिसिर जयंती पर याद आइल ऊ अमर गीत, ‘अंगुरी में डंसले बिआ नगिनिया ए…

Mahendra Mishra: महेंद्र मिसिर भोजपुरी गीत-संगीत के एक अनमोल रतन रहलें. आजु के दिने उ जन्मल रहले आ भोजपुरी ठाट के हीरो बनके अमर हो गइलें. महेंद्र मिसिर के गीत में जनजीवन के हर रंग झलकत रहे. प्रेम, विरह, संघर्ष आ समाज के सच्चाई. उ न सिर्फ बढ़िया गायक रहलें बल्कि उम्दा गीतकार आ संगीतकार भी रहलें.

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Mahendra Mishra: कलकत्ता के एक रंगमहल में, जब मशहूर तवायफ सोनाबाई गा रहल रहली- “माया के नगरिया में लागल बा बजरिया, ए सुहागिन सुन हो…” सभा में बैठे लोग उनकर आवाज़ सुनके झूम रहल रहले. गीत खतम भइते लोग ताली बजावत एक-एक कर निकल गइल, लेकिन एगो व्यक्ति अबहियों ओहिजे बइठल रहे.

सोनाबाई पूछली, “का बात बा, सभे चल गइल, रउरा अभी काहे बइठल बानी?”ओह आदमी के जवाब मिलल- “रउरा के आवाज़ मधुर बा, सुर भी बढ़िया बा, लेकिन आरोह-अवरोह के कमी बा.” सोनाबाई के ई बात सुनके अचरज भइल. उनकर अब तक के सफर में कवनो श्रोता उनकर गवनई पर सवाल नइखे उठवले. फिर उ व्यक्ति तानपूरा उठाके ऊहे गीत अपन अंदाज में गावे लागल. आवाज़ में गहराई, सुर में आरोह-अवरोह के बहार आ आलाप के जादू सुनके सोनाबाई चकित हो गइली. जब पूछली, “रउरा के हई?” तब उ आदमी हल्के मुस्कान देके कहले- “ई गीत महेंदर मिसिर के लिखल ह. आ महेंदर मिसिर हम हईं.” ई सुनते ही सोनाबाई उनका गोड़ पर गिर गइली. महेंद्र मिसिर भोजपुरी गीत-संगीत के एक अनमोल रतन रहलें. आजु के दिने उ जन्मल रहले आ भोजपुरी ठाट के हीरो बनके अमर हो गइलें.

महेंदर मिसिर के जन्म आ संगीत यात्रा

महेंदर मिसिर के जन्म 16 मार्च 1865 के बिहार के छपरा जिला के मिश्रौलिया गाँव में भइल रहे. उनका परिवार में संगीत के माहौल रहे, लेकिन गरीबी भी साथे रहे. पढ़ाई-लिखाई पारंपरिक गुरुकुल में भइल, लेकिन मन संगीत में लागल रहे.

पूरबी संगीत के पहचान

महेंदर मिसिर के भजन, कीर्तन, निर्गुण, ठुमरी, दादरा, खेमटा, कजरी आ ग़ज़ल में महारत हासिल रहे. लेकिन, सबसे बेसी प्रसिद्धि ऊ पूरबी गीतन के जनक के रूप में पवले. पूरबी गीत पहिले से रहे, लेकिन एकरा के जन-जन तक पहुँचावे के काम महेंदर मिसिर कइले. आज भोजपुरी लोकसंगीत में पूरबी आ महेंदर मिसिर एक दोसरा के पर्याय बन गइल बा.

भिखारी ठाकुर के गुरु

लोकनाटक के महान हस्ती भिखारी ठाकुर भी महेंदर मिसिर के शिष्य रहले. भले ही भिखारी ठाकुर खुल के एकर जिक्र ना कइले, लेकिन लोककथन में ई मान्यता बा कि उनका कई रचनाएँ महेंदर मिसिर से प्रेरित रहली.भिखारी ठाकुर के प्रसिद्ध नाटक ‘बिदेसिया’ भी महेंदर मिसिर के गीत ‘टुटही पलानी’ से प्रेरित मानल जाला.

तवायफन के गुरु आ भोजपुरी संगीत के संरक्षक

कलकत्ता, बनारस आ मुज़फ्फरपुर के कई तवायफ महेंदर मिसिर के आपन गुरु मानत रहली. उनकर गीत सभे गावत रहे. भोजपुरी के हर कोना में उनकर रचना बजत रहे.

स्वतंत्रता संग्राम में योगदान

महेंदर मिसिर के समय गांधीजी के स्वतंत्रता संग्राम चरम पर रहे. ऊ भी क्रांतिकारियन के मदद कइले. उनका घर क्रांतिकारियन के गुप्त ठिकाना रहे, जहाँ गीत-संगीत के महफिल भी सजत रहे. ऊ अंग्रेजन के आर्थिक नुकसान पहुँचे खातिर नकली नोट छापे के मशीन से नकली नोट छापलें, जे ब्रिटिश सरकार के भारी क्षति पहुँचवलस.

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