Hindi Literature : समकालीन हिंदी उपन्यासों में स्त्री-स्वर, स्त्री-अनुभव और रचनात्मक विस्तार को रेखांकित करने के उद्देश्य से राजकमल प्रकाशन समूह ने ‘हिंदी उपन्यास का स्त्री वर्ष : भेंट, पाठ, चर्चा’ का आयोजन किया. दिसंबर की 3 तारीख की शाम दिल्ली के इंडिया इंटरनेशनल सेंटर में आयोजित इस कार्यक्रम में राजकमल प्रकाशन से प्रकाशित नौ स्त्री-कथाकारों के उपन्यास लेखकों को भेंट किये गये और उनके चुनिंदा अंशों की पाठ-प्रस्तुतियां दी गयीं.
रचनाकारों ने अपनी कृतियों की कथावस्तु से कराया परिचित
स्त्री-वर्ष में प्रकाशित रचनाकारों में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित लेखक अनामिका, जया जादवानी, वंदना राग, प्रत्यक्षा, सुजाता, सविता भार्गव और शोभा लिम्बू ने कार्यक्रम में अपनी कृतियों की कथावस्तु से परिचय कराया. वहीं अंतरराष्ट्रीय बुकर पुरस्कार से सम्मानित लेखक गीतांजलि श्री और साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित कथाकार अलका सरावगी ने रिकॉर्डेड वीडियो संदेशों के माध्यम से अपनी उपस्थिति दर्ज करायी. कार्यक्रम में अध्यक्ष की भूमिका में वरिष्ठ कथाकार मृदुला गर्ग उपस्थित रहीं और संचालन सुदीप्ति ने किया. इस दौरान तृप्ति जौहरी, अन्नु प्रिया, डॉ शुचिता, प्रियंका शर्मा और रैना तंवर आदि रंगकर्मियों ने नौ उपन्यासों से चयनित अंशों का पाठ किया.
मानवीय अनुभवों का अद्भुत विस्तार हैं ये उपन्यास
इस आयोजन के अध्यक्षीय वक्तव्य में मृदुला गर्ग ने सभी रचनाकारों को बधाई देते हुए कहा, यह आयोजन मेरे लिए यह एक ‘नवरस आयोजन’ है क्योंकि नौ स्त्री उपन्यासकारों ने अपने-अपने रस में डूबकर जो रचनाएं प्रस्तुत की हैं वे मानवीय अनुभवों का अद्भुत विस्तार दिखाती हैं. मैं मानती हूं कि उपन्यास भोगे हुए यथार्थ का नहीं, भुगते हुए यथार्थ से लिखा जाता है, क्योंकि जो यथार्थ आप भुगतते हैं, जरूरी नहीं है वह जैविक रूप से भुगतें-आप उसे आत्मिक रूप से, मानसिक रूप से, भावात्मक रूप से भुगतते हैं, उसी को आप लिखते हैं. कोई भी यथार्थ बिना कल्पना, दृष्टि और इच्छा के पूरा नहीं होता. जैसे ही लेखक कलम उठाता है, उसका अपना सच, उसका अपना नजरिया उसमें आ जाता है. किसी समाज के सच को केवल कुछ रचनाओं से नहीं समझा जा सकता, उसके लिए सैकड़ों उपन्यास पढ़ने पड़ते हैं. नौ स्त्री रचनाकारों का यह मंच एक शुरुआत भी है और एक महत्वपूर्ण संकेत भी.
ये हैं स्त्री वर्ष में प्रकाशित उपन्यास
सह-सा – गीतांजलि श्री
कलकत्ता कॉस्मोपॉलिटन : दिल और दरारें – अलका सरावगी
दूर देश के परिंदे – अनामिका
शीशाघर – प्रत्यक्षा
सरकफंदा – वंदना राग
इस शहर में इक शहर था – जया जादवानी
दरयागंज वाया बाज़ार फत्ते खां – सुजाता
जहाज पांच पाल वाला – सविता भार्गव
शुकमाया हांङमा – शोभा लिम्बू
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