FOSWAL LITERATURE FESTIVAL: दक्षिण एशिया के सात देशों- भारत, नेपाल, भूटान, श्रीलंका, मालदीव और बांग्लादेश के रचनाकारों का 66वां सार्क लिटरेचर फेस्टिवल दिल्ली में आयोजित हुआ. दिल्ली के एकेडमी ऑफ फाइन आर्ट्स एंड लिटरेचर सभागार में 9-12 नवंबर तक आयोजित इस चार दिवसीय साहित्यिक समागम ने दक्षिण एशियाई क्षेत्रीय सहयोग संगठन (सार्क) राष्ट्रों के बीच सांस्कृतिक एकता की मजबूत नींव रखी.
फाउंडेशन ऑफ सार्क राइटर्स एंड लिटरेचर (FOSWAL) द्वारा आयोजित इस शब्दों के उत्सव का मुख्य उद्देश्य साहित्य और कला के माध्यम से क्षेत्रीय संपर्क को नयी मजबूती देना था. नौ नवंबर को हुए उद्घाटन समारोह में साहित्य अकादमी के अध्यक्ष माधव कौशिक ने मुख्य अतिथि के रूप में शिरकत की. इस मौके पर कई नामचीन लेखकों को सार्क पुरस्कारों से सम्मानित किया गया. नेपाल के प्रो अभि सुबेदी, भारत के प्रो आशीष नंदी और माधव कौशिक को प्रतिष्ठित सार्क लाइफटाइम अचीवमेंट अवार्ड से सम्मानित किया गया. लेखन के क्षेत्र में उत्कृष्ट योगदान के लिए श्रीलंका की अनुराश्री, बांग्लादेश के कमरूल हसन और फरीदुर रहमान, नेपाल की लक्ष्मी माली, भारत के रामकृष्ण पेरुगु और मालदीव के इब्राहिम वहीद को सार्क साहित्य पुरस्कार प्रदान किये गये.
फोसवाल की अध्यक्ष और पद्मश्री से सम्मानित प्रसिद्ध लेखिका अजीत कौर ने अपने उद्घाटन वक्तव्य में एक मार्मिक बात कही. उन्होंने कहा, ‘हम सार्क क्षेत्र के लेखक और स्वप्नद्रष्टा हमेशा से यह मानते रहे हैं कि संस्कृति उन जख्मों पर मरहम लगाती है, जहां राजनीति विभाजन पैदा करती है. यह महोत्सव हमारी साझा मानवता को नये सिरे से परिभाषित करने का मंच है.’
साहित्यिक गोष्ठियों का दौर सोमवार, 10 नवंबर को शुरू हुआ. इस महोत्सव में कविता पाठ, कहानी-कथन और अकादमिक शोध पत्रों के कई महत्वपूर्ण सत्र आयोजित हुए. इन सत्रों में दक्षिण एशिया के प्रकाशन जगत में आ रहे नवीन परिवर्तनों पर विशेष चर्चा हुई. पड़ोसी देशों से आये प्रबुद्ध साहित्यकारों ने न केवल अपनी बेहतरीन रचनाएं साझा कीं, बल्कि क्षेत्रीय साहित्य के सामने खड़ी चुनौतियों और संभावनाओं पर भी खुलकर संवाद किया. इस साहित्यिक पर्व का समापन 12 नवंबर को एक भव्य महाअधिवेशन के साथ हुआ. इस सत्र में अनामिका, दिविक रमेश, देव शंकर नवीन, अरुण आदित्य और तजेंदर सिंह लूथरा जैसे हिंदी साहित्य के दिग्गजों ने अपनी कविता का जादू बिखेरा. यह शब्द-पर्व वाकई दक्षिण एशिया के जनमानस को साहित्य के एक अटूट धागे में पिरोने का एक सफल प्रयास बन रहा है, जहां सीमाओं की हर बाधा को शब्दों के पुल से पार किया जा रहा है.
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