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Book Review : ‘आसक्त की प्रेमिकाएं अपना अंतिम प्रेम जीती हैं और फिर प्रेम, प्रीत, इश्क, मुहब्बत जैसे असंख्य शब्दों को अपसे हाथ से सदा के लिए किसी निष्ठुर माटी में दफन कर देती हैं.’
‘मुझे आपमें और बेटी में एक को चुनना था, मैंने बेटी को चुना. मैंने झूठे अहंकार और गैरबराबरी की वकालत करती सामाजिक मान्यताओं के बदले नई सोच, समानता और मनुष्यता को चुना. स्वीटी का पति आपके लिए मुसलमान है मगर मेरे और स्वीटी के लिए एक मनुष्य.’
‘दृगा लिखती है.
दृगा गांव आई है. गांव, अपने पति के घर
दिन भर बैठे–बैठे किताब पलटती है. कलम तोड़ती है, कागज काला करती है. कामचोर कहीं की…
सास कहे. पति सुन बैठ–बैठ मुस्काए’
‘उसे हर स्त्री से प्रेम था.
हर स्त्री को उससे छांव मोलना पसंद था.
हर स्त्री को उसके नाम की उलाहना सुनना पसंद था.
हर स्त्री बारिश के आने से पहले उससे मिलना चाहती थी.’
ये चार रोचक प्रसंग चार कहानियों से लिए गए हैं. कहानियों के इन पैराग्राफ पर नजर डालें तो आपका महसूस होगा कि कथाकार ने कितनी साफगोई से इसे बुना है. हर शब्द महत्वपूर्ण है और दिल–दिमाग को झकझोरने वाला. कहीं से भी कोई अतिरिक्त शब्द नहीं जितने की जरूरत है उतने ही हैं. ये सभी प्रसंग युवा कथाकार और कवयित्री अनामिका अनु के नए कथा संग्रह ‘येनपक कथा और अन्य कहानियांं’ से लिया गया है.
अनामिका अनु का पहला कहानी संग्रह
मैं आपको यह बताना चाहती हूं कि अनामिका अनु की यह पहली किताब है और इस पहली किताब में ही वो इतना प्रभाव छोड़ती हैं कि आगे उन्हें पढ़ने का इंतजार रहेगा. चूंकि अनामिका अनु एक कवयित्री हैं, तो उनकी कई कहानियां कविताओं सी लगती हैं. जैसे दृगा लिखती है. अनामिका अनु ने पुस्तक के प्रस्तावना में बताया है कि उनके लिए यह कहानी संग्रह अधूरी पंक्तियों और चूक गए शब्दों की कहानियां है. निसंदेह अधूरी पंक्तियां मारक होती हैं और अनामिका की कहानियां इस बात को साबित करती हैं.
अनामिका का यह पहला कथा संग्रह उन्हें कथाकारों की भीड़ में अलग से खड़ा करता है. उनकी कहानियों के संवाद में जो पैनापन है, वह झकझोरता है. सच के इतने करीब कि लगता है अरे, मेरा तो इससे साक्षात्कार हुआ है. चाहे बेटियों से छुपाकर बहू–बेटों को दूध पिलाना हो, या स्वीटी के लिए मां–बाप का प्रेम. सबकुछ अकाट्य सत्य.
कहानियों में देशज शब्दों का भरपूर प्रयोग
इस कहानी संग्रह की खासियत यह भी है कि इसमें देशज शब्दों का बखूबी प्रयोग हुआ है. भुकभुकाना, जाफरी, नकमुनिया. बिहार की स्थानीय भाषा के शब्दों का प्रयोग भी कहानी संग्रह में दिखता है, जो यह बताने के लिए काफी है कि अनामिका अनु का संबंध बिहार से है.
येनपक कथा, जिसे टाइटल स्टोरी कहा जा सकता है, वह लोककथा के तर्ज पर लिखा गया है और दिल को छूता है. जिस बारीकी से लेखिका ने कहानियों को परोसा है, कहना मुश्किल लगता है कि यह उनका पहला संग्रह है. कहानियों में नदी से प्रवाह है, जो पढ़ने वाले को बहाकर प्रारंभ से अंत तक लेकर जाता है. इस कहानी संग्रह के लिए अनामिका अनु साधुवाद की पात्र हैं. कुल 18 कहानियां इस संग्रह में हैं.
अनामिका अनु बिहार के मुजफ्फरपुर जन्मी हैं और केरल में रहती हैं. इन्हें 2020 में भारत भूषण अग्रवाल पुरस्कार भी मिल चुका है. इंजीकरी और यारेख इनकी प्रमुख रचनाएं हैं. मंजुल पब्लिशिंग हाउस ने इसका प्रकाशन किया है. किताब की साइज हाथ में फिट बैठती है और फाॅन्ट भी सुंदर है, जो पढ़ने का आनंद देते हैं. बीच–बीच में सजीव रेखाचित्र का प्रयोग भी सुंदर है. कुल मिलाकर येनपक कथा अपने नाम के अनुरूप अनोखा संग्रह है और इसे पढ़ा जाना चाहिए.
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