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India US Relations : भारत और रूस को हमने सबसे गहरे और सबसे अंधकारमय चीन के हाथों खो दिया. यह बयान अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने शुक्रवार को ट्रूथ सोशल मीडिया पर पोस्ट करके दिया. लेकिन 24 घंटे से भी कम समय में उन्होंने यूटर्न मारा और कहा कि वे और प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी बहुत अच्छे मित्र है और हमेशान रहेंगे. भारत और अमेरिका के संबंधों को लेकर चिंता करने की कोई जरूरत नहीं है, बस हाल में कुछ ऐसी बातें हुईं हैं, जो उन्हें पसंद नहीं हैं.
अमेरिकी राष्ट्रपति के इस बयान पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने अपनी प्रतिक्रिया दी है और कहा है कि वे राष्ट्रपति ट्रंप की भावनाओं और हमारे संबंधों के सकारात्मक मूल्यांकन की हम तहे दिल से सराहना करते हैं और उनका पूर्ण समर्थन करते हैं. पीएम ने एक्स पर पोस्ट किया कि भारत और अमेरिका के बीच एक अत्यंत सकारात्मक और दूरदर्शी वैश्विक रणनीतिक साझेदारी है. भारत–अमेरिका के बीच वर्तमान समय में किस तरह के संबंध हैं ये प्रधानमंत्री मोदी और अमेरिकी राष्ट्रपति ट्रंप के बयानों से साफ है.
किस ओर जा रहा है भारत–अमेरिका संबंध
भारत–अमेरिका संबंधों पर गहरी नजर रखने वाले लोग ये कह रहे हैं कि अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप ने जिस तरह की कूटनीति का प्रयोग इन दिनों वैश्विक संबंधों में किया है, खासकर भारत के साथ वह कहीं से भी उचित नहीं है. एक ओर तो अमेरिका खुद को भारत का मित्र राष्ट्र बताता है, वहीं दूसरी ओर पहले 25 प्रतिशत और फिर रूस से तेल खरीदने को लेकर जिस तरह 50 प्रतिशत टैरिफ लगाता है, उसे कहीं से भी तर्कसंगत नहीं ठहराया जा सकता है.
साउथ एशियन यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर धनंजय त्रिपाठी ने प्रभात खबर के साथ बातचीत में कहा कि शुक्रवार और फिर शनिवार को जिस तरह के बयान सामने आए हैं, उसे सकारात्मक तरीके से लिया जाना चाहिए. हालांकि हालिया दिनों में सबकुछ नकारात्मक ही रहा था, लेकिन ठीक है ‘बीती ताहि बिसार दे, आगे की सुध ले’ के तर्ज पर हमें आगे का देखना चाहिए. रूस से तेल खरीदने के नाम पर जो टैरिफ लगाया गया है, उसे अविलंब वापस लिया जाना चाहिए और ट्रेड डील पर बातचीत आगे बढ़ानी चाहिए.
भारत में अमेरिका को लेकर विश्वास घटा है

अमेरिकी मीडिया इस बात को कवर कर रहा है कि राष्ट्रपति ट्रंप ने दबावपूर्ण राजनीति की वजह से भारतीयों में अमेरिका के प्रति अविश्वास बढ़ा है. न्यूयार्क टाइम्स में छपे एक एनालिसिस में यह बात कही गई है कि ट्रंप की दबावपूर्ण राजनीति की वजह से भारत जैसा लोकतांत्रिक देश चीन की ओर झुक रहा है.
यह ट्रंप के नीतियों की नीतियों की खराबी है. यह एनालिसिस किया है ल्यूक ब्रॉडवाटर, जो द न्यूयार्क टाइम्स के लिए व्हाइट हाउस को कवर करते हैं, उनके साथ एनालिस्ट हैं डेविड ई सेंगर. सेंगर ट्रंप प्रशासन और राष्ट्रीय सुरक्षा से जुड़े कई मुद्दों को कवर करते हैं. इस एनालिसिस में यह बात कही गई है कि राष्ट्रपति ट्रंप की कुछ दबाव की रणनीतियां उल्टी पड़ गई हैं, जिससे संभावित सहयोगी चीन के पाले में जा रहे हैं.
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इस आलेख में यह बताया गया है कि किस तरह जब 20 जनवरी को भारत के विदेश मंत्री राष्ट्रपति ट्रंप के शपथ ग्रहण समारोह में अग्रिम पंक्ति में बैठे थे. जो इस बात का संकेत था कि भारत–अमेरिका संबंध कितने मजबूत हो चुके हैं, लेकिन कुछ ही महीनों में ट्रंप सार्वजनिक रूप से इस बात पर अफसोस जताते हैं कि भारत ने उन्हें वाशिंगटन के रणनीतिक प्रतिद्वंद्वी चीन के साथ गले लगाने के लिए छोड़ दिया है.
ट्रंप पर कितना भरोसा करे भारत ?
भारत और चीन के संबंधों में जिस तरह की तल्खी कुछ ही महीनों में आई है, उसे देखते हुए आम भारतीय यह समझना चाहता है कि शनिवार को जिस तरह डोनाल्ड ट्रंप ने यू टर्न मारा है, उसपर कितना भरोसा किया जाना चाहिए. क्या यह संभव है कि ट्रंप भारत के प्रधानमंत्री के साथ अपनी दोस्ती की बात पर कायम रहेंगे? इस बारे में बात करते हुए प्रो धनंजय त्रिपाठी कहते हैं कि देखिए, अमेरिका में आजतक ऐसा कोई राष्ट्रपति नहीं हुआ था, जिसके बयानों में इतना विरोधाभास हो. वे आज क्या कहेंगे और फिर कल जाकर क्या कहेंगे, यह बता पाना किसी भी एनालिस्ट के लिए संभव नहीं है. वे निहायत ही अनप्रिडिक्टेबल हैं.
बावजूद इसके यह उम्मीद की जानी चाहिए कि डोनाल्ड ट्रंप एक विश्वासी मित्र की तरह आचरण करेंगे और सबसे पहले तो जो गैरजिम्मेदाराना टैरिफ भारत पर लगाया गया है, उसे हटाएंगे और फिर आगे की बातचीत करेंगे.
क्या ट्रंप की नीतियां विश्व को ध्रुवीकरण की ओर ले जा रही है?

ट्रंप की अमेरिका फर्स्ट नीति की वजह से वैश्विक राजनीति डगमगा गई है. पूरे विश्व में एंटी अमेरिका की लहर है, यह बात अमेरिका के एनालिस्ट कह रहे हैं. ट्रंप की सहयोगी निकी हेली ने भी यह कहा था कि अमेरिका को चाहिए कि वह भारत जैसे लोकतांत्रिक देश को अपने साथ रखे. चीन के साथ मुकाबले के लिए यह बहुत जरूरी है.
लेकिन ट्रंप लगातार मनमानी कर रहे हैं, जिसकी वजह से एससीओ समिट से ध्रुवीकरण के संकेत मिले हैं. प्रो धनंजय त्रिपाठी कहते हैं कि यह ट्रंप प्रशासन पर निर्भर करता है कि वे विश्व को किस ओर धकेलना चाहते हैं, अगर वे यही चाहते हैं कि विश्व में ध्रुवीकरण हो, तो होगा.
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