Yogi Adityanath On Mandir-Masjid Debate : उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने मथुरा विवाद पर एक बार फिर बात की है और उन्होंने यह कहा कि हम इस मसले पर कोर्ट के आदेश का पालन कर रहे हैं, वरना वहां अबतक बहुत कुछ हो गया होता. उन्होंने यह भी कहा कि मथुरा भगवान श्रीकृष्ण की जन्मभूमि है और इसमें किसी को कोई शक नहीं होना चाहिए. एएनआई की संपादक स्मिता प्रकाश के साथ बातचीत में उन्होंने यह भी कहा कि संभल में 54 इस तरह के स्थान मिल चुके हैं, जहां मंदिर था और हम हर उस जगह को तलाशेंगे, जहां कभी मंदिर रहा था.
क्या है मथुरा का विवाद?
हिंदुओं के धार्मिक मान्यताओं के अनुसार भगवान श्रीकृष्ण का जन्म मथुरा में हुआ था. उस वक्त मथुरा के राजा कंस थे और उन्होंने भगवान श्रीकृष्ण की मां देवकी और उनके पति वसुदेव को कारागार में डाल रखा था. भगवान श्रीकृष्ण का जन्म उसी कारागार में हुआ था, इसलिए इस कारागार और स्थान का धार्मिक और ऐतिहासिक महत्व है.हिंदू पक्ष की ओर से ऐसा दावा किया जाता है कि श्रीकृष्ण जन्मस्थान पर केशव देव मंदिर स्थित था, जिसे 1669 में मुगल सम्राट औरंगजेब ने तुड़वाया दिया था और वहां पर शाही ईदगाह मस्जिद बनवाया था. हालांकि मुस्लिम पक्ष हिंदुओं के इस दावे को स्वीकार नहीं करता है. हालांकि 2024 में डाले गए आरटीआई में यह बताया गया है कि अंग्रेजों के 1920 के गजट में इस बात का जिक्र है कि जहां अभी मस्जिद है, वहां पहले केशव मंदिर हुआ करता था, जिसे तोड़कर मंदिर बनाया गया है. यह जानकारी आगरा के पुरातत्व विभाग ने दी है. मथुरा में शाही ईदगाह मस्जिद का निर्माण 17वीं शताब्दी में औरंगजेब के शासनकाल में हुआ है.
श्रीकृष्ण जन्मस्थान से जुड़ा विवाद अदालत के समक्ष कब आया?

हिंदू पक्ष का यह दावा है कि भगवान श्रीकृष्ण से जुड़े इस स्थान का पूरा स्वामित्व उनके पास होना चाहिए. यह पूरा इलाका 13.37 एकड़ भूमि का है. वर्तमान में हिंदुओं के कब्जे में 10.9 एकड़ भूमि है, जबकि मुसलमानों के पास 2.47 एकड़ भूमि है. इस भूमि को लेकर विवाद काफी पुराना है, लेकिन 1935 में यह मामला औपचारिक रूप से सामना आया, जब हिंदू संगठनों ने पूरे श्रीकृष्ण जन्मभूमि पर दावा किया और अंग्रेज सरकार से इस मसले में हस्तक्षेप की मांग की. उसके बाद कई बार यह मामला कोर्ट के सामने आया और आज भी यह केस कोर्ट के सामने ही विचाराधीन है. जानिए कब-कब श्रीकृष्ण जन्मभूमि का मामला कोर्ट तक पहुंचा-
- 1935 में श्रीकृष्ण जन्मभूमि का विवाद पहली बार कानूनी रूप से सामने आया और हिंदू संगठनों ने पूरे क्षेत्र पर अधिकार को लेकर दावा ठोका और ब्रिटिश सरकार से हस्तक्षेप की मांग की.
- 1944 में हिंदू महासभा और अन्य धार्मिक संगठनों ने बनारस के राजा से यह भूमि खरीदी और श्रीकृष्ण जन्मभूमि ट्रस्ट की स्थापना की.
- 1968 में हिंदू और मुस्लिम पक्ष के बीच समझौता हुआ और भूमि का बंटवारा हुआ और विवादित इलाके की कुछ भूमि को मस्जिद के लिए छोड़ दिया गया.
- 1991 में देश में भारत सरकार ने प्लेसेस ऑफ वर्शिप एक्ट लागू किया, जिसमें यह प्रावधान है कि देश में 15 अगस्त 1947 से जो धार्मिक स्थल जिस रूप में थे, वे उसी रूप में रहेंगे. इस एक्ट में अयोध्या को शामिल नहीं किया गया था. अब मुस्लिम पक्ष इसी कानून का हवाला देता है और हिंदू पक्ष के दावे को खारिज करता है.
- 2020 में हिंदू पक्ष मथुरा कोर्ट पहुंचा और भव्य श्रीकृष्ण मंदिर के पुनर्निर्माण की मांग करते हुए मुसलमानों से वह जगह खाली करवाने की बात कही.यह याचिका अधिवक्ता रंजना अग्निहोत्री ने दाखिल की.
- 2024 में इलाहाबाद हाईकोर्ट हिंदू पक्ष की याचिका पर सुनवाई के लिए राजी हो गया है और अभी यह मामला कोर्ट में है.
क्या मंदिर को तोड़े जाने के कोई ऐतिहासिक प्रमाण मौजूद हैं?
कई इतिहासकारों ने जिनमें ऑड्रे ट्रुश्के भी शामिल हैं, उन्होंने अपनी किताब Aurangzeb: The Man and the Myth में बताया गया है कि औरंगजेब ने सभी हिंदू मंदिरों पर हमला किया हो, यह सच नहीं है. उसने विशिष्ट या बड़े हिंदू मंदिरों को निशाना बनाया और बाकियों को छोड़ दिया था. इस लिहाज से यह संभावना बनती है कि औरंगजेब ने मथुरा के केशव मंदिर को तुड़वाया हो. प्रसिद्ध इतिहासकार जदुनाथ सरकार ने अपनी किताब A SHORT HISTORY OF AURANGZIBВ में लिखा है कि औरंगजेब ने किसी हिंदू मंदिर को तो निर्माण की अनुमति दी और ना ही मरम्मत की. उसने 1669 में काफिरों के सभी मंदिरों को तोड़ने की इजाजत दी थी.
Also Read : Aurangzeb Tomb Nagpur : ओडिशा के मंदिरों पर थी औरंगजेब की नजर, आज उसके कब्र पर मचा बवाल
Delimitation : लोकसभा चुनाव 2029 में सीटों की संख्या बढ़ने से डर क्यों रहे हैं एमके स्टालिन?
सावधान! कहीं आपका बच्चा घंटों मोबाइल से चिपक कर मनोरोगी तो नहीं बन रहा
विभिन्न विषयों पर एक्सप्लेनर पढ़ने के लिए क्लिक करें