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सावधान!  कहीं आपका बच्चा घंटों मोबाइल से चिपक कर मनोरोगी तो नहीं बन रहा

Child Mental Health : इंटरनेट और सोशल मीडिया के चकाचौंध में बच्चे इस तरह की गलतियां कर रहे हैं, जो उन्हें अपराधी बना रही है और उनके पूरे जीवन को गर्त में लेकर जा रही हैं. पाॅर्न वीडियो के आदी आजकल 10 साल और उससे छोटे बच्चे भी हो रहे हैं, इसका उनके मानसिक स्वास्थ्य पर बहुत बुरा प्रभाव पड़ रहा है.

Crime By Child In India
बच्चों द्वारा किए गए अपराध

Child Mental Health : इन उदाहरणों से यह स्पष्ट है कि नाबालिग वह भी छह साल से 14–15 साल के बच्चों का यौन हिंसा के मामलों में संलिप्त होना बहुत बड़ी चिंता का विषय है. इस समस्या पर तत्काल ध्यान देने की जरूरत है, क्योंकि अगर इन समस्याओं पर समय रहते ध्यान नहीं दिया गया और इन्हें दरकिनार किया गया तो यह बच्चे समाज के लिए बड़ी चुनौती बन जाएंगे.

नाबालिग क्यों हो रहे हैं यौन हिंसा में शामिल?

नाबालिग बच्चे जिनकी आयु छह साल से 16 तक की है, वे अकसर यौन हिंसा के मामले में संलिप्त देखे जा रहे हैं, इसकी वजह उनका मानसिक स्वास्थ्य है. मानसिक स्वास्थ्य के बिगड़ने से वे लगातार इस तरह के एक्टिविटी को अंजाम को दे रहे हैं, जो उनके पूरे जीवन को प्रभावित कर सकता है.  सीआईपी(Central Institute of Psychiatry) रांची, झारखंड के मनोचिकित्सक डाॅ निशांत गोयल का कहना है कि आज अगर बच्चे यौन हिंसा जैसे मामलों में शामिल पाए जा रहे हैं, तो उसकी सबसे बड़ी वजह सोशल मीडिया और इंटरनेट है. आजकल के बच्चों को इसकी एक्सेस आसानी से मिल जाती है,जहां वे रील्स देखते हैं, फिल्म देखते हैं और भी कई सोशल साइट्‌स को देखते हैं, जहां इस तरह की चीजों को ग्लोरिफाई यानी महिमा मंडित करके दिखाया जाता है, जिसकी वजह से बच्चे भी उस काम को करना चाहते हैं. उनके कोमल मस्तिष्क पर यह बात फिट हो जाती है कि यह अच्छा काम है और इसे करना चाहिए. उनके अंदर novelty seeking  यानी कुछ नया करने की चाहत विकसित हो जाती है. हालांकि उन्हें यह पता नहीं होता है कि उनकी इस चाहत का परिणाम क्या होगा.

बचपन में यौन हिंसा का शिकार हुए बच्चे भी करते हैं यौन हिंसा

Child Abuse
बचपन-में-यौन-हिंसा

आसपास के माहौल का भी असर बच्चों पर पड़ता है और वे उसके कारण भी यौन हिंसा से जुड़े अपराध में शामिल हो जाते हैं. अगर उसके परिवार और दोस्तों के बीच इस तरह की घटनाएं होती हैं, तो उसका असर भी बच्चों पर पड़ता है.

एक और बड़ी वजह है जिसकी वजह से बच्चे इस तरह के अपराध करते हैं, वो है बचपन में उनके साथ एब्यूज होना. अगर कोई बच्चा खुद बचपन में यौन हिंसा का शिकार होता है या बार–बार उसके साथ इस तरह की घटना होती है, तो वह अपना फ्रस्ट्रेशन निकालने के लिए भी इस तरह की घटनाओं में शामिल होता है.

डाॅक्टर निशांत गोयल बताते हैं कि हमारे क्लिनिक में कई तरह के केस आते हैं, लेकिन उनकी चर्चा सार्वजनिक तौर पर संभव नहीं है, लेकिन यह बताया जा सकता है कि बच्चों में यौन हिंसा की घटनाएं लगातार बढ़ रही हैं और इन बच्चों को प्यार और काउंसिलिंग से ही इस दलदल से निकाला जा सकता है.

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बच्चों का बचपन कैसे बचाया जाए?

बच्चों का मानसिक स्वास्थ्य अगर बिगड़ जाए, तो उनकी पढ़ाई, खान–पान, व्यवहार सबकुछ बदल जाता है. वे स्कूल जाने से बचने लगते हैं, कोशिश करते हैं कि किसी से बातचीत ना करें, अकेले पड़े रहें. उनका यह व्यवहार उनके व्यक्तित्व विकास में बहुत बड़ी बाधा है. रांचीं की प्रसिद्ध मनोविज्ञानी डाॅ भूमिका सच्चर बताती हैं कि इंटरनेट और बच्चों की सही पैरेंटिंग ना होने की वजह से बच्चे मानसिक रोगी हो रहे हैं और कई तरह के एंटी सोशल बिहेवियर में शामिल हो रहे हैं. कई बार वे गंभीर अपराध भी कर जाते हैं. इस स्थिति में मां–बाप भी बहुत परेशान होते हैं. हमारे पास लगभग रोज इस तरह के केस आते हैं, जिसमें पैरेंट्‌स यह शिकायत लेकर आते हैं कि बच्चा पढ़ नहीं रहा है, ज्यादा से ज्यादा समय मोबाइल में व्यस्त रहता है. ऐसे बच्चों को सही पैरेंटिंग और काउंसलिंग से ठीक किया जा सकता है. जब कोई बच्चा हमारे पास आता है, तो हम उसकी स्कैनिंग करते हैं और उसके बाद उसे थेरेपी देते हैं, अगर ज्यादा जरूरत होती है, तब ही उसे दवा दी जाती है, वैसे ज्यादातर बच्चे काउंसिलिंग से ही ठीक हो जाते हैं.

हर उम्र के बच्चों में अलग होती है यौन हिंसा करने की प्रवृत्ति 

Confusion In Children
बच्चों-में-अपराध

जो बच्चे यौन हिंसा के मामलों में शामिल होते हैं, उनकी प्रवृत्ति अलग तरह की होती है. कुछ बच्चों को यह भी पता नहीं होता है कि वे जो कर रहे हैं वह एक तरह का अपराध भी है, लेकिन कुछ बच्चे अपने कृत्य पर शर्मिंदा भी होते हैं और यह मानते हैं कि उन्होंने यह किया है, लेकिन क्यों किया इसका जवाब उनके पास नहीं होता है. रांची के मनोचिकित्सक डाॅ पवन वर्णबाल बताते हैं कि हर बच्चा अलग तरह से बिहेव करता है. 6–8 साल तक का बच्चा उस तरह की हरकत नहीं करता, जैसा कि 12–13 साल का बच्चा करता है, क्योंकि उसकी बहुत छोटी होती है. लेकिन 12–13 के बच्चों में प्यूबर्टी यानी यौवन आने लगता है कि इसलिए वे अपने से छोटे बच्चों के साथ यौन व्यवहार कर खुश होना चाहते हैं. उनके शारीरिक बनावट में हुए परिवर्तन भी उन्हें भ्रमित करते हैं. यहां गौर करने वाली बात यह है कि वे घर में इस तरह का आचरण नहीं करते बल्कि बाहर करते हैं. वहीं 14 से 17 साल तक के बच्चे अपने आसपास के माहौल और परिवार के वातावरण से प्रभावित होते हैं. इन बच्चों को मानसिक रूप से स्वस्थ करने के लिए काउंसिलिंग और दवाई दोनों की जरूरत होती है. जो बच्चा ज्यादा अग्रेसिव है, उसे मूड स्टेबलाइजर की सख्त जरूरत होती है. अधिकतर बच्चे डाॅक्टर के पास आकर शर्म महसूस करते हैं और कुछ भी बताने से इनकार करते हैं, लेकिन उनका कई तरह से इलाज करके मसले को समझा जाता है.

ब्रेन में डिसआर्डर की वजह से भी बच्चे बनते हैं मानसिक रोगी

कई बच्चों में मानसिक रोग उसके ब्रेन की बनावट की वजह से भी होता है और इसे ठीक करने के लिए दवा की जरूरत होती है. न्यूरोट्रांसमीटर के असामान्य असंतुलन की वजह से भी बच्चे गंभीर रूप से मानसिक रोग का शिकार बनते हैं. इसकी समझ माता–पिता को नहीं होती है. उन्हें लगता है कि बच्चा असामान्य व्यवहार कर रहा है, ऐसे में उन्हें अविलंब डाॅक्टर की जरूरत होती है.

इंटरनेट और अकेलापन बच्चों को बना रहा मानसिक रोगी

सरला बिरला पब्लिक स्कूल की वरिष्ठ शिक्षिका मुक्ति शाहदेव बताती हैं कि बच्चों में मानसिक समस्या पहले भी रहती थीं, लेकिन मोबाइल ने इस समस्या को बहुत बड़ा बना दिया है. बच्चों में आक्रामकता आज सबसे बड़ी समस्या है इसके अलावा भी कई अन्य समस्याएं नजर आती हैं. हम हर पैरेंट्‌स मीटिंग में अभिभावकों से कहते हैं कि बच्चों को मोबाइल से दूर करें और उनके साथ समय बीताएं. आजकल की जीवनशैली में माता–पिता बच्चों को क्वालिटी टाइम नहीं देते हैं और उन्हें जंक फूड और गैजेट  इसकी भरपाई करने के लिए देते हैं, यह बहुत बड़ी समस्या है. बच्चों को लैंगिक शिक्षा की भी सख्त जरूरत है, ताकि वे चीजों को समझ सकें और गलत जगह से आधी–अधूरी जानकारी ना एकत्र करें.

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