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कभी देश की आवाज रही कांग्रेस, आज अपने नेताओं को सहेज नहीं पा रही, क्या है वजह?

Shashi Tharoor : अब कांग्रेस के बहुचर्चित नेता शशि थरूर के स्वर बागी हो गए हैं. उन्होंने यहां तक कह दिया है कि उनके पास विकल्प की कोई कमी नहीं है. आखिर क्यों देश को आजादी दिलाने वाली कांग्रेस पार्टी की ये हालात हो गई है कि कोई बड़ा नेता उसके साथ रहना नहीं चाहता. पार्टी सत्ता से पिछले तीन लोकसभा चुनाव से दूर है और इन वर्षों में उसके कई कद्दावर नेता जिनमें कपिल सिब्बल,गुलाम नबी आजाद और ज्योतिरादित्या सिंधिया जैसे नेता शामिल हैं, पार्टी का साथ छोड़ चुके हैं.

Shashi Tharoor : क्या कांग्रेस नेता शशि थरूर बागी हो गए हैं? यह सवाल इसलिए क्योंकि उन्होंने सोशल मीडिया में एक पोस्ट लिखा है, जिसमें उन्होंने कवि थॉमस ग्रे की कविता की पंक्ति ‘Where ignorance is bliss, ’tis folly to be wise’शेयर की है. कविता की इस पंक्ति के जरिए शशि थरूर कांग्रेस पार्टी को बड़ा संदेश देना चाहते हैं, जिसका अर्थ यह है कि अगर कुछ न जानना आपको खुश करता है तो ज्ञान की तलाश करना मूर्खता है. कविता की ये लाइन यह भी कहती है कि जानकारी न होने से चिंता कम हो सकती है और खतरनाक स्थितियों को गलत तरीके से स्वीकार किया जा सकता है. शशि थरूर का यह पोस्ट चर्चा में है क्योंकि उन्होंने इंडियन एक्सप्रेस के साथ बातचीत में यह भी कहा है कि अगर पार्टी को मेरी जरूरत नहीं तो मेरे पास विकल्प हैं, हालांकि मैं पार्टी के लिए हमेशा उपलब्ध हूं.

क्यों हो रही है शशि थरूर की आलोचना

शशि थरूर हमेशा अपने बिंदास व्यवहार और बयान के लिए जाने जाते हैं. उन्होंने केरल की एलडीएफ सरकार की प्रशंसा की और साथ ही पीएम मोदी के फ्रांस दौरे की भी प्रशंसा की, जिसके बाद उन्हें पार्टी के अंदर से ही आलोचनाओं का सामना करना पड़ रहा है. शशि थरूर ने यह भी कहा है कि कांग्रेस अगर अपनी कार्यशैली और विचार में परिवर्तन नहीं लाएगी तो उसको केरल में लगातार तीसरी बार भी विपक्ष में बैठना पड़ सकता है. उन्होंने अपनी कार्यशैली का उदाहरण देते हुए कहा कि तिरुवनंतपुरम में उनकी अपील पार्टी से ज्यादा है और लोग मुझे मेरे व्यवहार और बातों से पसंद करते हैं. पार्टी को भी अगर अपना वोट बैंक बढ़ाना है, तो कुछ अलग सोचना होगा.  

आखिर क्यों बड़े नेता कांग्रेस से लगातार हो रहे हैं दूर

Kapil-Sibal-And-Gulam-Nabi-Azad
कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद

2014 में जब कांग्रेस सत्ता से दूर हुई तो पार्टी में हार को लेकर मंथन हुआ, उस दौर में कई बड़े नेताओं ने पार्टी में परिवर्तन की मांग की, जिनमें कपिल सिब्बल और गुलाम नबी आजाद जैसे नेता प्रमुख तौर पर मुखर हुए. कांग्रेस अध्यक्ष पद को लेकर भी बात हुई, क्योंकि पार्टी लगातार चुनाव हार रही थी, लेकिन पार्टी की कमान गांधी परिवार के पास ही रही, चाहे पार्टी का अध्यक्ष कोई भी रहा हो. पार्टी की आम जनता के बीच छवि लगातार खराब होती गई और राहुल गांधी को जनता स्वीकार करने को तैयार नहीं दिखी. 2014 में 44, 2019 में 52 और 2024 में कांग्रेस 99 सीटों तक ही सीमित रही. वहीं देश के 28 राज्यों में से 21 पर बीजेपी और उसकी सहयोगी पार्टियों का राज है.कांग्रेस अपने बूते मात्र तीन राज्यों में शासन संभाल रही है. निश्चततौर पर यह स्थिति कांग्रेस पार्टी में परिवर्तन की मांग करती है. लेकिन तमाम उतार-चढ़ाव के बाद भी पार्टी अबतक गांधी परिवार के मोहपाश से निकल नहीं पाई है. उपेक्षा और मनमानी का आरोप लगाते हुए बड़े नेता पार्टी से दूर हुए और आज पार्टी हाशिए पर आ गई है. कई राज्यों में तो क्षेत्रीय पार्टियां कांग्रेस से मजबूत दिखती हैं. कांग्रेस ने आत्ममंथन करने की बजाय उन नेताओं से ही दूरी बना ली जो गांधी परिवार का विरोध कर रहे थे.

शशि थरूर को पार्टी खोना नहीं चाहेगी, लेकिन इसके लिए कड़े कदम उठाने होंगे : रशीद किदवई

Shashi Tharoor
शशि थरूर

वरिष्ठ पत्रकार रशीद किदवई ने प्रभात खबर से बात करते हुए बताया कि मुझे नहीं लगता कि शशि थरूर ने जो कुछ सोशल मीडिया में लिखा है, उसका संबंध किसी भी तरह से पार्टी छोड़ने से है. उन्होंने केरल की राजनीति को लेकर यह टिप्पणी की है. केरल में अगले साल विधानसभा चुनाव होने वाले हैं और मुख्यमंत्री पद के लिए केसी वेणुगोपाल और शशि थरूर के बीच कंपीटिशन है. शशि थरूर की टिप्पणी राजनीतिक पैंतरेबाजी से अधिक कुछ भी नहीं है. सोशल मीडिया और मीडिया में जिस तरह की खबरें शशि थरूर को लेकर चल रही हैं, वे खबरें सच्चाई से दूर हैं. उन खबरों को प्रचारित किया जा रहा है. लेकिन यह भी एक कटु सत्य है कि जो लोग शशि थरूर  के खिलाफ दुष्प्रचार कर रहे हैं, उनपर लगाम कसी जानी चाहिए. शशि थरूर जैसे नेता कांग्रेस के लिए एसेट हैं, मुझे नहीं लगता कि पार्टी उन्हें खोना चाहेगी. जहां तक बात बड़े नेताओं के कांग्रेस छोड़कर जाने की है, तो वे क्षुब्ध होकर पार्टी से गए हैं और पार्टी के अंदर कुछ लोग इस तरह के हैं, जो उन्हें पार्टी में रोककर रखने में बाधा बने हैं, जितना जल्दी पार्टी इस बात को समझेगी उसे नुकसान कम होगा.

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कांग्रेस के पतन की वजह 

देश को आजादी दिलाने वाली कांग्रेस पार्टी अब आम जनता से और उनके मुद्दों से दूर हो गई है. आम जनता को अब यह महसूस नहीं होता है कि कांग्रेस उनकी पार्टी है. चुनाव के वक्त भी कांग्रेस उन मुद्दों को जनता के पास लेकर नहीं जा पाई जिसपर वोट मिलते हैं.

कांग्रेस की छवि हिंदू विरोधी की बनी

पार्टी के अंदरुनी बैठकों में यह बात भी सामने आ चुकी है कि कांग्रेस ने अपनी छवि हिंदू विरोधी की बना ली है और बीजेपी हिंदुओं की पार्टी के रूप में अपनी मजबूत पकड़ बना चुकी है. इस परिस्थिति में कांग्रेस कोई ऐसा मुद्दा देश के सामने नहीं रख पाती, जो बीजेपी की इस पकड़ को ढीली करे. कांग्रेस की छवि अल्पसंख्यकों की हितैषी की बन चुकी है और पार्टी ने 2014 से अबतक इसे बदलने के लिए मंदिरों में पूजा करने के अलावा कुछ नहीं किया है.

बीजेपी विरोध के अलावा कांग्रेस के पास मुद्दा नहीं

जब से कांग्रेस सत्ता से दूर हुई है वह बीजेपी विरोध के अलावा कोई ठोस मुद्दा लेकर सामने नहीं आती है.सदन में भी बीजेपी सरकार को घेर नहीं पाती है.कांग्रेस के पास कोई ऐसा नेता भी नहीं है, जो संसद में विपक्ष की आवाज को बुलंद करे और आम जनता की आवाज बने. 

पीएम मोदी को टक्कर देने के लिए कांग्रेस में नेता नहीं

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने 2014 से 2024 तक में अपनी छवि में काफी बदलाव कर लिया है. वे एक सर्वमान्य नेता बन चुके हैं, जबकि राहुल गांधी की छवि अभी भी एक जिम्मेदार नेता की नहीं बन पाई है. राहुल गांधी की भारत जोड़ो यात्रा से पार्टी को और राहुल की छवि को जरूर कुछ लाभ हुआ, लेकिन वे मोदी की ताकतवर शख्सीयत को टक्कर देने के लिए काफी नहीं था.

गांधी परिवार का जादू अब खत्म

राजीव गांधी के बाद गांधी परिवार का जादू आम जनता के बीच से खत्म हो गया है. सोनिया गांधी के बाद राहुल और प्रियंका गांधी से आम जनता अपना कनेक्ट नहीं बना पाई और ना ही राहुल और प्रियंका ने इसके लिए बहुत प्रयास किया. वे इस भ्रम में रहे कि जनता पर गांधी परिवार का जादू हमेशा चलेगा. दूसरी ओर बीजेपी ने गांधी परिवार के तिलिस्म को तोड़ने की हर संभव कोशिश कोशिश की.

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