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Indo Pacific Region Conflict : विदेश मंत्री एस जयशंकर ने जोहान्सबर्ग में ऑस्ट्रेलियाई और फ्रांसीसी विदेश मंत्रियों के साथ मुलाकात की और उनसे इंडो-पैसिफिक रीजन से जुड़े मुद्दों पर चर्चा की. विदेश मंत्री ने सोशल मीडिया में यह लिखा भी तीनों देशों के हित इंडो-पैसिफिक रीजन से जुड़े हैं. वे अभी जी-20 देशों के विदेश मंत्रियों की बैठक में शामिल होने के लिए जोहान्सबर्ग गए हुए हैं. यहां उन्होंने सीपीसी पोलित ब्यूरो के सदस्य और चीन के विदेश मंत्री वांग यी से भी मुलाकात की.
इंडो-पैसिफिक रीजन में चीन अपनी दादागीरी दिखाना चाहता है, जिसे देखते हुए भारत सहित अन्य कई देश जिनके हित यहां से जुड़े हैं, वे चीन को रोकना चाहते हैं. भारत और चीन के बीच वैसे भी विश्वास का अभाव है जिसे बहाल करने की कोशिश की जा रही है, वैसे में इंडो-पैसिफिक रीजन का मसला काफी अहम हो जाता है.
इंडो-पैसिफिक रीजन किसे कहते हैं?

इंडो-पैसिफिक रीजन एक बड़ा और विविधतापूर्ण क्षेत्र है. इंडो-पैसिफिक का अर्थ उस क्षेत्र से हैं जो हिंद महासागर क्षेत्र और पश्चिमी प्रशांत क्षेत्र को जोड़ता है यानी यह हिंद महासागर और प्रशांत महासागर के बीच का समुद्री क्षेत्र है. जिसमें पूर्वी एशिया और दक्षिण पूर्व एशिया के समीपवर्ती समुद्र शामिल हैं.इसमें दक्षिण चीन सागर भी आता है.यह क्षेत्र समुद्री भूगोल पर आधारित है,यह क्षेत्र व्यापार मार्ग के नजरिए के काफी महत्वपूर्ण है और यह घनी आबादी वाला क्षेत्र है. हाल के वर्षों में यह क्षेत्र सैन्य भूमिका निभाने वाले क्षेत्र के रूप में काफी चर्चित हो गया है. इंडो-पैसिफिक रीजन यानी हिंद-प्रशांत क्षेत्र में विश्व के भू क्षेत्र का 44 प्रतिशत हिस्सा है और विश्व की जनसंख्या का 65 इसी क्षेत्र में निवास करता है.
इंडो-पैसिफिक रीजन का विवाद क्या है?
इंडो पैसिफिक रीजन में विवाद तब शुरू हुआ है जब चीन ने यहां अपने सामरिक शक्ति बढ़ानी शुरू कर दी है और अपनी दादागीरी दिखाते हुए दक्षिण चीन सागर पर अपना पूर्ण आधिपत्य बताया शुरू कर दिया है. उसके पहले तक इस क्षेत्र को लेकर कोई विवाद नहीं था. इंडो पैसिफिक रीजन में भारत, चीन और पाकिस्तान के बीच सीमा विवाद के अतिरिक्त दक्षिण चीन सागर में चीन, ताइवान,वियतनाम, मलेशिया, फिलीपींस और ब्रुनेई जैसे देश भी आपस में उलझ रहे हैं.जिसकी वजह से क्षेत्र में तनाव बढ़ रहा है और समुद्री व्यापार मार्ग पर खतरा भी उत्पन्न हो गया है. दरअसल पूरा विवाद समु्द्र पर अधिकार को लेकर है, अगर यह विवाद बढ़ा तो व्यापार मार्ग प्रभावित होगा और देशों के बीच तनाव और बढ़ेगा. सबसे बड़ी और महत्वपूर्ण बात यह है कि विश्व का 40 प्रतिशत से अधिक व्यापार इसी क्षेत्र से होता है. वहीं भारत का लगभग 80 प्रतिशत व्यापार इसी रीजन से होता है. अगर इस क्षेत्र में तनाव बढ़ा तो विश्व के कई देश प्रभावित होंगे.
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चीन की मनमानी से इंडो पैसिफिक रीजन में बढ़ेगा तनाव : डाॅ धनंजय त्रिपाठी

राजनीतिक विश्लेषक डाॅ धनंजय त्रिपाठी बताते हैं कि इंडो पैसिफिक रीजन में चीन लगातार अपनी पैठ बढ़ा रहा है. वह यह दावा करता है दक्षिण चीन सागर पर सिर्फ उसका अधिकार है. वह इस इलाके में अपनी सेना की ताकत को भी लगातार बढ़ा रहा है. अपनी मनमानी का प्रदर्शन करते हुए उसने स्थायी मध्यस्थता न्यायालय के फैसले को भी मानने से इनकार कर दिया है. वह कई आपत्तिजनक मैप भी पेश करता है जिसमें उसने वियतनाम और फिलीपींस के कुछ क्षेत्रों को अपना बताया है. उसकी इस मनमानी से विश्व के अन्य देशों में हलचल है, क्योंकि इंडो-पैसिफिक रीजन विश्व का प्रमुख समुद्री मार्ग है, जिसके जरिए 40 प्रतिशत से अधिकार व्यापार होता है. ऐसे में अगर कोई देश इस रीजन पर अपना आधिपत्य जमाना चाहेगा, तो अन्य देशों को दिक्कत होगी ही. जब शीत युद्ध का काल था, उस वक्त भी ट्रेड रूट को किसी तरह नहीं बदला गया था और ना ही किसी ने इसमें बाधा पहुंचाने की कोशिश की थी. चीन की मनमानी भारत के लिए भी बड़ी चिंता विषय है इसलिए यह मसला बहुत महत्वपूर्ण है.
इंडो पैसिफिक रीजन को एशिया पैसिफिक रीजन क्यों कहता है चीन
डाॅ धनंजय त्रिपाठी कहते हैं चीन इंडो पैसिफिक रीजन को एशिया पैसिफिक रीजन कहता है, इसके पीछे वजह है सिर्फ उसकी विचारधारा. वह अपना प्रभुत्व दिखाने के लिए इस तरह की शब्दावली का प्रयोग करता है, जबकि इस शब्दावली से क्षेत्र की भौगोलिक स्थिति में कोई बदलाव नहीं होता है. भारत के साथ चीन के संबंध हमेशा से सवालों के घेरे में रहे हैं और इंडो-पैसिफिक कहने से भारत के साथ संबंध जुड़ता है, यही वजह है कि वह एशिया-पैसिफिक शब्दावली का प्रयोग करता है. इंडो-पैसिफिक रीजन का नामकरण जर्मन भू-राजनीतिज्ञ कार्ल हौशोफर ने 1920 में किया था, बावजूद चीन इसे अस्वीकार करता है.
इंडो-पैसिफिक रीजन में भारत का महत्व और भूमिका
भारत यह चाहता है कि इंडो पैसिफिक रीजन में किसी देश का आधिपत्य ना हो,लेकिन इस क्षेत्र में भारत की अनदेखी भी नाकाबिले बर्दाश्त है. भारत के लिए यह क्षेत्र व्यापार मार्ग और ऊर्जा का स्रोत है, ऐसे में अगर चीन यहां दादागीरी करेगा, तो भारत उसे कतई बर्दाश्त नहीं करने वाला है. भारत की विदेशी नीति इस बात को स्पष्टत: बताती है. चीन के लिए यह मार्ग बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि मलक्का जलडमरूमध्य के जरिए ही वह यूरोप तक अपना माल पहुंचाता है. अगर भारत इस मार्ग को अवरुद्ध कर दे, तो उसके लिए बड़ी मुसीबत हो सकती है, इसलिए इस रीजन में भारत के प्रभाव को चीन नकार नहीं सकता है. मलक्का जलडमरूमध्य यानी मलक्का स्ट्रेट से अंडमान सागर मात्र 200 किलोमीटर दूर है.
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