31.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

Delimitation : लोकसभा चुनाव 2029 में सीटों की संख्या बढ़ने से डर क्यों रहे हैं एमके स्टालिन?

Delimitation : 2029 का लोकसभा चुनाव बीजेपी परिसीमन आयोग की रिपोर्ट आने के बाद ही लड़ने के मूड में है और इसके लिए तैयारी शुरू हो गई है. स्वाभाविक भी है क्योंकि 1973 में भारत की जनसंख्या लगभग 55 करोड़ थी जो 2025 में 146 करोड़ हो जाने का अनुमान है, लेकिन उस लिहाज से लोकसभा की सीटें नहीं बढ़ी हैं. महिलाओं को लोकसभा में 33% आरक्षण देने के प्रति भी मोदी सरकार प्रतिबद्ध है और इसके लिए भी परिसीमन जरूरी माना जा रहा है.

Delimitation : नई शिक्षा नीति के बाद तमिलनाडु के मुख्यमंत्री एमके स्टालिन ने परिसीमन पर सवाल खड़े किए हैं और उन्होंने पांच मार्च को इस मसले पर सर्वदलीय बैठक बुलाए जाने की मांग की है. उन्होंने कहा है कि परिसीमन की प्रक्रिया दक्षिण भारत के सिर पर लटकती तलवार है. हालांकि गृहमंत्री अमित शाह ने उन्हें और अन्य दक्षिणी राज्यों को आश्वस्त किया है कि किसी भी राज्य से एक भी सीट नहीं छीनी जाएगी और अगर परिसीमन के बाद सीटों में बढ़ोतरी होगी, तो दक्षिण के राज्यों को भी उसमें से हिस्सा मिलेगा. लेकिन यहां बड़ा सवाल यह है कि आखिर एम के स्टालिन बेचैन क्यों है? केंद्र सरकार की नीतियों से आखिर उनका क्या अहित होने वाला है, जिससे वे परेशान हैं?

क्या है परिसीमन जिसकी हो रही है चर्चा?

परिसीमन का अर्थ है- लोकसभा और विधानसभाओं के लिए प्रत्येक राज्य में सीटों की संख्या और  निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाएं तय करने की प्रक्रिया.परिसीमन का काम एक उच्चाधिकार निकाय यानी आयोग करता है. भारत में अबतक चार बार परिसीमन आयोग का गठन किया गया है. इलेक्शन कमीशन के अनुसार भारत में पहली बार 1952, फिर 1963, फिर 1973 और 2002 में परिसीमन का कार्य हुआ है. परिसीमन आयोग का गठन हर जनगणना के बाद किया जाता है. परिसीमन आयोग की रिपोर्ट को किसी भी न्यायालय में चुनौती नहीं दी जा सकती है. यह देश का कानून है, जिसे राष्ट्रपति के आदेश से जारी किया जाता है. इस आदेश की प्रतियां  लोक सभा और राज्य विधानसभा के सदन के सामने रखी जाती है, लेकिन इन सभाओं को इसमें किसी भी तरह का संशोधन करने का कोई अधिकार नहीं होता है. 

एमके स्टालिन को किस बात का लग रहा है डर

Mk Stalin
एमके-स्टालिन

नरेंद्र मोदी सरकार 2029 के लोकसभा चुनाव की तैयारी में अभी से है और संभावना है कि 2026 में जनगणना का कार्य पूरा हो जाए और परिसीमन आयोग का गठन कर परिसीमन का कार्य भी पूरा करा लिया जाए. चूंकि परिसीमन जनसंख्या में बढ़ोतरी के हिसाब से किया जाता है, उस लिहाज से तमिलनाडु सहित अन्य कई दक्षिणी राज्यों में सीटें घट सकती हैं, क्योंकि जनसंख्या वृद्धि का दर कम है. हालांकि अभी इस बात की कोई जानकारी नहीं है कि परिसीमन के बाद लोकसभा में कितनी सीटें बढ़ेंगी. तमिलनाडु में अभी 39 लोकसभा क्षेत्र हैं, स्टालिन यह दावा कर रहे हैं कि तमिलनाडु से आठ सीटें छीन सकती है, जिसका असर लोकसभा में उनके राज्य के प्रतिनिधित्व पर बढ़ेगा. बेशक जनसंख्या में वृद्धि के लिहाज से दक्षिणी राज्य उत्तर भारत के राज्यों से पीछे हैं जिसका परिणाम परिसीमन आयोग की रिपोर्ट में दिख सकता है. 2026 में तमिलनाडु, केरल, पुडुचेरी और बंगाल जैसे राज्यों में विधानसभा चुनाव भी हैं, यही वजह है कि स्टालिन खौफजदा हैं. गृहमंत्री अमित शाह ने यह स्पष्ट भी किया है कि दक्षिण भारत के राज्यों का प्रतिनिधित्व किसी भी कीमत पर कम नहीं होगा.

पढ़ें प्रभात खबर की प्रीमियम स्टोरी :सावधान!  कहीं आपका बच्चा घंटों मोबाइल से चिपक कर मनोरोगी तो नहीं बन रहा

औरंगजेब ने आंखें निकलवा दीं, पर छावा संभाजी ने नहीं कुबूल किया इस्लाम, क्या है शिवाजी के बेटे की पूरी कहानी?

विभिन्न विषयों पर एक्सप्लेनर पढ़ने के लिए क्लिक करें

1973 के बाद नहीं हुआ है लोकसभा की सीटों में बदलाव

1976 में इंदिरा गांधी ने परिसीमन पर रोक लगा दी थी, क्योंकि उन्हें डर था कि अगर उत्तर भारत की सीटें बढ़ीं, तो उनकी सरकार को खतरा हो जाएगा. उसके बाद से अबतक लोकसभा में 543 सीटें ही हैं, दो सांसद मनोनीत किए जाते हैं. 2002 के परिसीमन में सीटों की संख्या में कोई बदलाव नहीं किया गया था, लेकिन 2026 की जनगणना के बाद जो परिसीमन होगा उसमें लोकसभा की सीटें बढ़ाई जाएंगी, यह बात तय है क्योंकि देश की जनसंख्या में बड़ा बदलाव आ चुका है. 

भारत में स्वतंत्रता के बाद हुई परिसीमन की प्रक्रिया

क्रमांकवर्षविवरणजनगणना का वर्षलोकसभा सीटों की संख्या
11952स्वतंत्रता के बाद पहली परिसीमन प्रक्रिया1951494
219631956 में राज्यों के पुनर्गठन के बाद पहली परिसीमन प्रक्रिया. केवल एकल सीट वाले निर्वाचन क्षेत्र1961522
31973लोकसभा सीटों की संख्या 522 से बढ़कर 543 हुई1971543
42002लोकसभा सीटों या विभिन्न राज्यों के बीच उनके आवंटन में कोई परिवर्तन नहीं2001543
520262002 में संविधान में 84वें संशोधन के बाद, 2026 के बाद आयोजित पहली जनगणना के आधार पर परिसीमन किया जाना है.2026 (अपेक्षित)परिवर्तन संभावित

परिसीमन का फायदा अघोषित रूप से सरकारों को होता है: रशीद किदवई

राजनीतिक विश्लेषक रशीद किदवई प्रभात खबर के साथ बातचीत में बताते हैं कि भारत विविधताओं का देश है, यहां कई जाति और धर्म के लोग एक साथ रहते हैं. हमारे देश में लोकसभा और विधानसभा सीटों के परिसीमन का आधार जनसंख्या है. अगर इस बार भी जनसंख्या को ही सिर्फ आधार बनाकर परिसीमन होगा तो उन क्षेत्रों को बहुत नुकसान हो सकता है, जिन्होंने काफी प्रयास करके देशहित में जनसंख्या को नियंत्रित किया है. एमके स्टालिन जो चिंता जता रहे हैं, उसमें वजन है, क्योंकि केरल और तमिलनाडु जैसे राज्यों का प्रतिनिधित्व राष्ट्रीय राजनीति में इस परिसीमन के बाद घट सकता है, क्योंकि उन्होंने पापुलेशन कंट्रोल किया है. अभी देश में 10 लाख की आबादी वाला क्षेत्र एक लोकसभा बनता है, इस परिसीमन में संभव है कि 15 लाख की आबादी पर एक लोकसभा क्षेत्र बना दिया जाए. लेकिन यहां गौर करने वाली बात यह है कि जनसंख्या वृद्धि की जो दर उत्तर भारत में है, वो दक्षिण भारत में नहीं है, इस लिहाज से उनका बड़ा नुकसान संभव है. मेरी निजी राय यह है कि सरकार को परिसीमन के लिए सिर्फ जनसंख्या को आधार नहीं बनाना चाहिए, बल्कि उन्हें इस तरह से भी विचार करना चाहिए कि हर राज्य में सांसदों की संख्या कितनी प्रतिशत बढ़ाई जाए, इससे दक्षिण के राज्यों को नुकसान कम होगा. यह भी एक सच्चाई है कि परिसीमन में कभी सीटें बढ़ती हैं और कभी घटती हैं. यह भी एक सच्चाई है कि परिसीमन से अघोषित रूप से सरकारों को फायदा होता है. इसलिए एके स्टालिन परेशान हैं, क्योंकि परिसीमन का असर उनकी राजनीति पर दिखेगा.

2026 के बाद दक्षिण भारत का प्रभाव राष्ट्रीय राजनीति में कम हो सकता है: अविनाश मिश्रा

इलाहाबाद यूनिवर्सिटी के रिसर्च स्काॅलर अविनाश मिश्रा कहते हैं कि दक्षिण भारत के लोगों ने काफी प्रयास करके अपनी जनसंख्या को नियंत्रित किया है और उनकी प्रति व्यक्ति आय भी अधिक है. लेकिन परिसीमन जनसंख्या के आधार पर किया जाता है, इस लिहाज से उत्तर भारत में निश्चित तौर पर सीटें बढ़ेंगी जबकि दक्षिण में कम हो सकती हैं. अगर दक्षिण भारतीय राज्यों की सीटें घटीं, तो उनका राष्ट्रीय राजनीति पर प्रभाव कम होगा, जबकि उनका योगदान देश के विकास में बेहतर है. साथ ही दक्षिण भारतीय क्षेत्रीय पार्टियों का कद भी इससे कम होगा, यही वजह है कि वे राष्ट्रीय राजनीति में अपनी भूमिका को लेकर चिंतित हैं. आंतरिक परिसीमन से क्षेत्र भी बदलता है और आगामी विधानसभा चुनाव के लिए वे इस बात को लेकर भी चिंतित हैं.

पढ़ें प्रभात खबर की प्रीमियम स्टोरी :भारत को पीछे छोड़ने के लिए छाती पीट रहे हैं शहबाज शरीफ, लेकिन सच्चाई कर रही कुछ और ही बयां

क्या है परिसीमन?

परिसीमन का अर्थ है- लोकसभा और विधानसभाओं के लिए प्रत्येक राज्य में सीटों की संख्या और  निर्वाचन क्षेत्रों की सीमाएं तय करने की प्रक्रिया.

परिसीमन का आधार अभी देश में क्या है?

देश में अभी परिसीमन का आधार जनसंख्या है.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें