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Mughal Harem Stories 5: मुगल हरम के इतिहास पर अगर नजर डालें तो हम पाएंगे कि यहां महिलाओं की स्थिति दोयम ही थी. वे पर्दे में रहती थीं और उनका बाहर आना-जाना भी बिना पर्दे के नहीं होता था. उस स्थिति में राजकुमारियों को शिक्षा कैसे मिलती होगी यह जानने की इच्छा आज के जमाने में भी लोगों को है, क्योंकि तमाम पाबंदियों के बावजूद नूरजहां, मुमताज महल, जहांआरा और रोशनआरा जैसी विदुषियां मुगल काल में हुई हैं.
राजकुमारियों को दोयम दर्जा
इतिहासकार किशोरी शरण लाल अपनी किताब The Mughal Harem में लिखते हैं कि मुगल काल में महिलाओं की सामाजिक स्थिति पुरुषों से बहुत कमतर थी. मुगलों के परिवार में जब कोई लड़का पैदा होता था तो पूरे दरबार में जश्न मनाया जाता था, लेकिन राजकुमारियों के जन्म पर इस तरह का कोई आयोजन नहीं होता था. यह खुशी हरम तक ही सीमित होती थी. अबुल फजल ने लिखा है कि बादशाह अकबर ने राजकुमारियों की शिक्षा पर विशेष ध्यान दिया और उन्होंने राजकुमारियों के जन्म पर जश्न की शुरुआत भी की. पहली बार उन्होंने राजकुमार सलीम की बेटी इफत बानो के जन्म पर जब खुशियां मनाने का आदेश दिया था, तो यह चौंकाने वाला फैसला था क्योंकि यह मुगलों की परंपरा के विरुद्ध था.
हरम में कैसी थी शिक्षा की व्यवस्था
अकबर से पहले भी हरम में राजकुमारियों के लिए शिक्षा की व्यवस्था थी, लेकिन उसे बहुत व्यवस्थित नहीं कहा जा सकता है. अकबर ने राजकुमारियों के लिए शिक्षा को व्यवस्थित बनाया. उस काल में राजकुमारियां एक जगह इकट्ठा होकर शिक्षा प्राप्त करती थीं. अकबर के दरबार में रहने वाले फादर मोनसेरेट लिखते हैं कि अकबर ने महिला शिक्षा में बहुत रुचि ली थी, उन्होंने लड़कियों को शिक्षित करने के लिए नए तकनीक विकसित किए और स्कूल की भी स्थापना की. लेकिन उस वक्त शिक्षा के ‘साधन’ सीमित थे. मौखिक परंपरा से ही शिक्षा दी जाती थी क्योंकि पुस्तक छपी हुई नहीं थी. कागज उपलब्ध नहीं था और स्याही की भी सख्त कमी थी, इस वजह से महिलाओं की शिक्षा बहुत परवान नहीं चढ़ सकी. उसपर पर्दा भी राजकुमारियों की शिक्षा में बड़ा बाधक था. उस काल में तो कई रईस भी अंगूठा छाप ही थे.
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मध्य युग में महिलाओं की शिक्षा

मध्य युग में महिलाओं की शिक्षा पर बहुत ध्यान दिया गया होगा, यह सच नहीं है और राजकुमारियों ने भी उच्च शिक्षा प्राप्त करने में ज्यादा रुचि नहीं दिखाई. कुछेक राजकुमारियां जिनमें गुलबदन बेगम फारसी और तुर्की भाषा में पारंगत थीं और उनके हरम में उनका अपना पुस्तकालय था। उनमें काव्यात्मक स्वभाव था और वे अक्सर कविताएं लिखा करती थीं. वह अकबर की बुआ थी उन्होंने अकबर के अनुरोध पर हुमायूंनामा लिखा. नूरजहां, जहांआरा और उनकी भतीजी जैब-उन-निसा भी कविताएं लिखने में रुचि रखती थीं. औरंगजेब ने अपनी सभी बेटियों को अच्छी शिक्षा दी थी खासकर धार्मिक शिक्षा पर उसका फोकस था.जैब-उन-निसा, बदर-उन-निसा और जबदत-उन-निसा ने कुरान को कंठस्थ किया और धर्म पर कई किताबें पढ़ीं. बावजूद इसके मुगलों के दरबार में इनमें से किसी को भी जगह नहीं मिली थी, जो इस बात का सूचक है कि महिलाओं की शिक्षा और उनके सृजन को ज्यादा महत्व नहीं दिया जाता था.यही वजह था कि जो राजकुमारी कविताएं लिखती थीं, वे छद्म नाम से लिखती थीं, ताकि उनकी पहचान उजागर ना हो. इसके अलावा नृत्य संगीत, चित्रकारी और पाक कला की शिक्षा भी महिलाओं को व्यवस्थित ढंग से नहीं दी जाती थी जिसकी वजह से वे इन कलाओं से महरुम रहती थीं. हरम की महिलाएं भोजन के लिए नौकरों पर आश्रित थीं और बहुत कम ही सिलाई-कढ़ाई या चित्रकारी में रुचि लेती थीं. हरम की महिलाएं आलसी और आरामतलब थीं. वे पूरे दिन मनोरंजन और सजावट में व्यस्त रहती थीं .
राजकुमारों की शिक्षा की शुरुआत हरम से ही होती थी
मुगल काल में छोटे राजकुमार हरम में ही रहते थे, इसलिए उनके शिक्षा की व्यवस्था भी हरम में ही की जाती थी.लेकिन राजकुमारों के लिए शिक्षा की व्यवस्था बहुत व्यवस्थित थी. राजकुमारों के जन्म के साथ ही उनके लिए नाम और शिक्षा के लिए फंड की व्यवस्था कर दी जाती थी. उन्हें प्रारंभिक शिक्षा के साथ उच्च शिक्षा भी जाती थी. भारतीय दर्शन भी पढ़ाया जाता था, लेकिन इसका विरोध भी होता था.
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