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बिहार में महिला वोटरों पर रहेंगी निगाहें

women-voters : एनडीए का लक्ष्य एक करोड़ महिलाओं को लखपति दीदी बनाना है और सफल महिला उद्यमियों को आगे मदद देने के लिए मिशन करोड़पति भी शुरू किये जाने की बात है.

Women Voters : बिहार के चुनाव पर पूरे देश की नजर लगी हुई है, क्योंकि माना जा रहा है कि बिहार का चुनावी नतीजा इसके बाद असम, पश्चिम बंगाल, तमिलनाडु आदि के विधानसभा चुनावों पर पड़ सकता है. एनडीए जहां इस चुनाव में अपनी जीत के प्रति पूरी तरह आश्वस्त नजर आ रहा है, वहीं हरियाणा, महाराष्ट्र और दिल्ली में पराजयों के बाद इंडिया गठबंधन अपनी खोई हुई लय वापस पाने के लिए बिहार में पूरा जोर लगाये हुए है. बिहार चुनाव में वैसे तो कांटे की टक्कर बतायी जा रही है, लेकिन राज्य में घूमते हुए मैंने एक चीज यह देखी कि नीतीश कुमार के प्रति मतदाताओं में गुस्सा या आक्रोश नहीं है.

इतने लंबे समय से सत्ता में होते हुए भी नीतीश कुमार को चुनाव में अगर एंटी इनकम्बेंसी का सामना नहीं करना पड़ रहा है, तो यह बहुत बड़ी बात है. हालांकि लोगों ने चर्चा के दौरान भ्रष्टाचार की बात की, लेकिन मुख्यमंत्री नीतीश कुमार की छवि इस मामले में बेहद साफ-सुथरी है. एनडीए ने अपनी ‘पंचामृत गारंटी’ के तहत बिहार के गरीबों के लिए मुफ्त राशन, प्रति परिवार 125 यूनिट मुफ्त बिजली, पांच लाख रुपये तक मुफ्त स्वास्थ्य सेवा, 50 लाख पक्के मकानों का निर्माण और पात्र परिवारों के लिए सामाजिक सुरक्षा पेंशन जैसे जो पांच प्रमुख कल्याणकारी वादे किये हैं, उसका संदेश राज्य के गांवों तक पहुंचता दिखा है.

एनडीए के संकल्प पत्र में राज्य में एक करोड़ नौकरी और रोजगार देने का संकल्प है, मुख्यमंत्री महिला रोजगार के तहत महिलाओं को व्यवसाय शुरू करने के लिए दो लाख रुपये की वित्तीय सहायता दी जायेगी. एनडीए का लक्ष्य एक करोड़ महिलाओं को लखपति दीदी बनाना है और सफल महिला उद्यमियों को आगे मदद देने के लिए मिशन करोड़पति भी शुरू किये जाने की बात है. गौरतलब है कि बिहार सरकार कुछ दिन पहले ही मुख्यमंत्री महिला रोजगार योजना शुरू कर चुकी है. इसके तहत जीविका दीदियों को स्वरोजगार के लिए दस-दस हजार की राशि दी गयी है. अब तक 1.21 करोड़ महिलाओं के खाते में दस-दस हजार रुपये भेजे जा चुके हैं. यानी एनडीए की तरफ से खासकर महिला वोटरों को आकर्षित करने के लिए बहुत कुछ है.


दूसरी ओर, महागठबंधन ने अपने घोषणापत्र में रोजगार, शिक्षा, महिला सशक्तीकरण और किसान हितैषी योजनाओं को प्रमुखता दी है. तेजस्वी यादव ने सत्ता में आने पर जीविका दीदियों को 30,000 रुपये मासिक वेतन और स्थायी नियुक्ति देने का वादा किया है. इससे पहले वह ‘माई-बहिन मान योजना’ के तहत हर महिला को 2,500 रुपये मासिक देने की घोषणा कर चुके हैं. ऐसे ही, छात्राओं के लिए स्कॉलरशिप और विधवा-बुजुर्ग पेंशन जैसे वादे भी कर चुके हैं. पर अब महागठबंधन का जोर जीविका दीदियों पर ज्यादा है.

महागठबंधन में राजद का ही बोलबाला दिखता है और नतीजा कमोबेश इसके प्रदर्शन पर ही निर्भर करेगा. हालांकि सीमांचल इलाके में ओवैसी की पार्टी भी महागठबंधन को नुकसान पहुंचा सकती है. कांग्रेस इस मुकाबले में पीछे ही नजर आ रही है. राजद के जनाधार वाले इलाके में मैंने लोगों को कहते हुए सुना कि कांग्रेस यहां शून्य है और शून्य ही रहेगी. जबकि वह राहुल गांधी ही थे, जिन्होंने भाजपा पर वोट चोरी का आरोप लगाते हुए तेजस्वी के साथ राज्य में यात्रा कर माहौल बना दिया था. बिहार के अलग-अलग हिस्सों में कथित वोट चोरी का मुद्दा तो है, पर ऐसा लगता है कि इस चुनाव में राहुल गांधी और कांग्रेस का वह असर अब नहीं है, जो पहले महसूस हो रहा था. बिहार में कांग्रेस को अपनी मजबूत उपस्थिति बनाने के लिए अभी बहुत काम करने की आवश्यकता है.


चुनाव में प्रशांत किशोर की जनसुराज पार्टी न सिर्फ तीसरी ताकत के रूप में उभरी है, बल्कि दूरस्थ इलाकों तक में इसका आकर्षण साफ-साफ दिखाई देता है. आमतौर पर माना जाता है कि प्रशांत किशोर के समर्थकों में ज्यादातर ऊंची जाति के लोग हैं, पर गांवों में पिछड़ी जातियों के बीच भी मैंने उनके प्रति आकर्षण महसूस किया. जिस राज्य में वोटिंग जातिवादी समीकरण पर आधारित है, वहां प्रशांत किशोर शिक्षा और रोजगार की बातें कर रहे हैं, जो शिक्षित युवाओं को प्रभावित कर रहा है. एक तरह से प्रशांत किशोर ने बिहार चुनाव का नैरेटिव बदल दिया है. वैसे तो जनसुराज पार्टी के एनडीए और महागठबंधन, दोनों के जनाधार में सेंध लगाने की बात कही जा रही है, पर भाजपा पर इसका असर ज्यादा पड़ सकता है.

प्रशांत किशोर और उनकी पार्टी पर पड़ रहे बाहरी दबाव भी शायद इसी ओर इशारा कर रहे हैं.
पर एक बात तो तय है कि पिछले विधानसभा चुनावों की तरह इस बार के चुनाव में भी महिला मतदाताओं की भूमिका बेहद महत्वपूर्ण होने वाली है. महिला मतदाताओं पर तमाम राजनीतिक दलों की नजर भी है. इसकी वजह यह है कि 2000 से 2020 तक महिला मतदाताओं की संख्या तो बिहार में लगातार बढ़ी ही है, उनका वोटिंग प्रतिशत भी बढ़ता गया है. वर्ष 2000 के चुनाव में 70.71 फीसदी पुरुष मतदाताओं की तुलना में महिला मतदान 53.28 फीसदी था.

पांच साल बाद हुए चुनाव में पुरुष वोटिंग 49.95 फीसदी थी, तो महिला वोटिंग 42.52 फीसदी थी. लेकिन 2010 के चुनाव में महिलाओं ने पुरुषों की तुलना में अधिक वोटिंग की थी- तब महिलाओं ने 54.49 फीसदी वोटिंग की थी, जबकि पुरुषों की वोटिंग 51.12 फीसदी थी. वर्ष 2015 और 2020 में भी वोटिंग प्रतिशत के मामले में महिलाएं पुरुषों से आगे रहीं. इसी को देखते हुए नीतीश सरकार महिलाओं के लिए कई योजनाएं चला रही हैं, तो तेजस्वी यादव भी लगातार महिला वोटरों को लुभाने की कोशिश में लगे हुए हैं.


राजनीतिक दलों ने महिलाओं को अधिक संख्या में टिकट देने पर भी जोर दिया है. वर्ष 1985 से फरवरी, 2005 तक बिहार विधानसभा के लिए चुने गये विधायकों में महिलाओं की हिस्सेदारी छह प्रतिशत के आसपास थी, पर बाद में विधानसभा में चुनी गयी महिलाओं का आंकड़ा बढ़कर 10 प्रतिशत हो गया था. वर्ष 2010 में विधानसभा में महिलाओं का प्रतिनिधित्व बढ़ कर 14 प्रतिशत हो गया था. इस बार राजद ने सबसे अधिक 16.8 फीसदी महिला प्रत्याशियों को टिकट दिया है. हालांकि राजद सबसे ज्यादा सीटों पर लड़ भी रहा है. पर ध्यान रखना चाहिए कि शराबबंदी के कारण महिला मतदाताएं नीतीश कुमार पर भरोसा करती आ रही हैं. इस चुनाव में भी यह सिलसिला बना रहे, तो आश्चर्य नहीं होगा.
(ये लेखिका के निजी विचार हैं.)

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