विवेक तिवारी डेविड
Sridevi: भारतीय सिनेमा की पहली महिला सुपरस्टार घुंघराले बालों और चमकदार आंखों वाली श्रीदेवी ने चार साल की उम्र में साल 1969 में थोनयवन नामक तमिल फिल्म के जरिए फिल्मी दुनिया में कदम रखा था जिसमें उन्होंने भगवान मुरूगन की भूमिका निभाई थी. मलयालम फिल्म पूमपट्टा के लिए केरल स्टेट अवार्ड फॉर बेस्ट चाइल्ड आर्टिस्ट मिला था. किशोरावस्था तक श्रीदेवी लगातार बेबी श्रीदेवी के नाम से काम करती रही एक चाइल्ड आर्टिस्ट के तौर पर उनकी बाल भरथम ,प्रार्थनई , नामनादु , बाबू बडी पंथालु , और भक्तकुम्ब्रा जैसी फिल्में काफी सफल रही. साल 1976 में उन्हें अपने करियर का पहला लीड रोल फिल्म मुंडुमुडुचू के रूप में मिला जिसके बालाचंदर ने निर्देशित किया था. श्रीदेवी की प्रमुख दक्षिण भारतीय फिल्मों की बात करे तो सिगप्पू ,रोजाक्कल ,प्रिय कार्तिक, दीपम जानी, वरूमायिन, निरमसिगप्पू, आकालीराज्यम जैसे नाम उल्लेखनीय है. उन्होंने दक्षिण भारतीय राज्य के ज्यादातर नामी कलाकारों रजनीकांत कमल हसन और चिरंजीवी के साथ काम किया था. उन्होंने एक्टर व राजनेता जयललिता के साथ भी थिरूमंगलायम , कंदन, करुणामयी आदि प्रशक्ति फिल्मों में काम किया था.
बॉलीवुड में श्रीदेवी ने फिल्म जूली के साथ कदम रखा था, जिसमे वह मुख्य हीरोइन लक्ष्मी की छोटी बहन थी. हिन्दी फिल्मों की मुख्य हीरोइन के रूप में उनकी पहली फिल्म सोलहवां सावन रही जो कुछ खास सफल नहीं हो सकी, पर इसके ठीक चार साल बाद रिलीज जीतेंद्र के साथ फिल्म हिम्मतवाला साल 1983 की सबसे सफल फिल्म साबित हुई. इस फिल्म का गीत नैनों में सपना… और इसमें श्रीदेवी के अलंकृत कपडे और हेडगियर इन सभी ने श्रीदेवी को चर्चा के केन्द्र में ला खड़ा किया. अगले साल जितेन्द्र के साथ रिलीज उनकी तीसरी फिल्म तोहफा भी बडी हिट साबित हुई. साल 1983 और 1988 के बीच जितेंद्र और श्रीदेवी ने कुल जमा 16 फिल्मों में काम किया जिनमें से 13 हिट रही साल 1983 में ही फिल्म सदमा में निभाए गए रेटोग्रेड एम्नीशिया पीडित युवती रेशमी के किरदार ने उन्हें फिल्म समीक्षकों और फिल्म आलोचकों की नजरों में भी काफी ऊपर चढ़ा दिया. साल 1986 में रिलीज फिल्म नगीना में श्रीदेवी को एक नागिन के रूप में काफी पसंद किया गया. इसके बाद साल 1987 में फिल्म मिस्टर इंडिया रिलीज हुई और इस फिल्म ने एक झटके में श्रीदेवी के करियर का कायापलट कर दिया. फैंटेसी और कॉमेडी से भरपूर इस फिल्म के बाद से ही वह शीर्ष अभिनेत्रियों में गिनी जाने लगी.
साल 1989 में रिलीज फिल्म चांदनी, चालबाज, लम्हे के जरिए उन्होंने अपनी एक्टिंग का लोहा मनवाया खामोशी उनके आगे पीछे चलती थी लेकिन बीच में खुशी थी हंसी थी और जिंदगी थी उन्हीं लम्हों में रहती थी श्रीदेवी, अपनों के बीच अपनों की दुनिया में दूसरों को सपने बांटती हुई ऐसा क्यों लग रहा है जैसे कोई अदृश्य सी शक्ति जो पिछले चार दशकों से आपको आगे बढ़ने, चुनौतियों का मुकाबला करने की ताकत देती आ रही थी वह अचानक बंद मुठ्ठी से रेत की मानिंद सरक गई. कौन थी वह, एक बेहतरीन अदाकारा एक बेहद खूबसूरत और कुछ गलत कुछ सही निर्णय लेने वाली एक मानवीय स्त्री एक जुझारू औरत जो जिंदगी के हर मुकाम पर शांति और शिद्दत से बाजी जीतती रही या एक हम उम्र आइडल शायद ये सब कुछ अस्सी और नब्बे के दशक में जिसने भी श्रीदेवी को सामने से देखा है वह बता सकता है कि उनकी एक झलक आंखों में रोशनी भरने के लिए काफी थी. बला की दिलकश यूं लगता जैसे संगमरमर का कोई तराशा हुआ बुत हो कैमरे के सामने जैसे उस बुत में जान आ जाती श्रीदेवी को क्षणभर में किरदार में ढलते देखना अपने आप में अनोखा अनुभव था.
कुछ तो बात थी उनमें जिससे लगता की वह आपका ही कोई हिस्सा हो यह बात बरसों बाद लेखक निर्देशक कमल पाण्डेय ने भी कही थी मिस्टर इंडिया जबरदस्त कामयाब रही. रातों रात जया प्रदा ,मीनाक्षी शेषाद्री और रेखा को पछाड़ कर श्रीदेवी हिंदी फिल्मों की नंबर एक नायिका बन गयी. हिन्दी फिल्मों में श्रीदेवी को एक और बडी कामयाबी मिली यश चोपड़ा के साथ फिल्म चांदनी में. निर्देशक यश चोपड़ा पहले रेखा के साथ यह फिल्म बनाना चाहते थे पर मिस्टर इंडिया में नीली साडी में पानी में भीगती श्रीदेवी को काटे नहीं कटते गाने में देखने के बाद उन्होनें तय कर लिया की उनकी चांदनी बस श्रीदेवी हो सकती हैं. यश चोपड़ा ने श्रीदेवी को अपने अंदाज में बयां करते हुए कहा था कि इस लड़की के अंदर दर्द का ज्वालामुखी कैद है वह अपने दर्द किसी से नहीं बांटती बहुत अंतर्मुखी है, खामोश रहती है नगमा जुबां पर नहीं उसके दिल में चलता रहता है. जब वह कैमरे के सामने आती है तो जैसे वह ज्वालामुखी फट जाता है और कयामत आ जाती है फिल्म चांदनी की शूटिंग देखकर लौटते समय उस समय के प्रसिद्ध फिल्म आलोचक रऊफ अहमद ने कहा था अब इस लडकी को आगे बढ़ने से कोई रोक नहीं सकता. इसे पता है कि अपनी कमजोरियों से कैसे पार पाना है अपने को हर दिन कैसे नई चुनौती देनी है और उनसे कैसे लडना है.
रऊफ की बात सही निकली चांदनी के जरिये अस्सी के दशक के अंत में एक बार फिर परदे पर प्यार लौट आया श्रीदेवी को दो चीजों से डर लगता था बूढी होने और अपनो को खोने से वह बूढी होने के बहुत पहले ही अपनों से विदा हो गई. श्रीदेवी को जितनी सफलता अपनी पहली फिल्म कमबैक फिल्म में मिली है उतनी सभी अभिनेत्रियों को नहीं मिलती है. श्रीदेवी की सफलता की वजह रही उम्र के मुताबिक रोल नई पीढ़ी की मानसिकता पर नब्ज नए दौर के सिनेमा से तालमेल सही पटकथा तथा संवेदनशील निर्देशक का चयन और अपनी असल टारगेट ऑडियंस से कनेक्शन उनकी फिल्म की सबसे बडी दर्शक संख्या मध्यवर्ग की महिलाओं की थी लेकिन ताजुब यह है कि उन्होंने श्रीदेवी को जद्दोजहद को देखने के लिए मल्टीप्लेक्स के महंगे टिकट तक खरीदी यही उनकी फिल्म की कामयाबी की मिसाल है. हमें भी उनके साथ सीरियल हमारी बहू मालिनी अय्यर में सहायक निर्देशक के रूप में काम करने का सौभाग्य प्राप्त हुआ.

