RBI: रुपये की कीमत 27 दिसंबर को डॉलर के मुकाबले गिरकर 89.85 पर आ गयी, जबकि 16 दिसंबर को यह अपने सर्वोच्च 91 के स्तर से ऊपर थी. इसका मुख्य कारण विदेशी संस्थागत निवेशकों (एफआइआइ) के निरंतर शेयर बिक्री और भारत-अमेरिका व्यापार समझौते को लेकर अनिश्चितता है. जब विदेशी निवेशक बिकवाली करते हैं, तो रुपये बेचकर डॉलर खरीदे जाते हैं, जिससे रुपये पर दबाव बढ़ता है. दिसंबर में अब तक एफआइआइ ने भारतीय शेयर बाजार से कुल 21,073.83 करोड़ रुपये की बिक्री की है और पूरे साल में 2,31,990 करोड़ रुपये की. हालांकि, विदेशी निवेशकों ने 73,583 करोड़ रुपये का निवेश भी किया है. इस साल कुल शुद्ध बिकवाली 1.58 लाख करोड़ रुपये से अधिक की रही.
पहले केंद्रीय बैंक ने कहा था कि डॉलर के मुकाबले रुपये का कमजोर होना चिंता का विषय नहीं है और यह जल्द ही स्थिर हो जायेगा, पर बाद में जब स्थिति नियंत्रण से बाहर हो गयी, तो केंद्रीय बैंक ने राष्ट्रीयकृत बैंकों को डॉलर खरीदने का निर्देश दिया. फिर दिसंबर में पांच अरब डॉलर के तीन साल की स्वैप नीलामी और एक लाख करोड़ रुपये के ओएमओ लागू करने की प्रक्रिया शुरू हुई. इस साल अब तक, केंद्रीय बैंक ने ओएमओ, स्वैप और अन्य विकल्पों के जरिये बैंकिंग प्रणाली में करीब 10 लाख करोड़ रुपये डाले हैं. रिजर्व बैंक ने रुपये की कीमत स्थिर रखने और बैंकिंग प्रणाली में तरलता बढ़ाने के लिए आगामी 13 जनवरी को करीब 90 हजार करोड़ रुपये का स्वैप कारोबार करने का निर्णय लिया है.
यह स्वैप अवधि तीन साल की होगी, जिसमें बैंक केंद्रीय बैंक को डॉलर बेचेंगे और बदले में रुपये प्राप्त करेंगे और तीन साल बाद वे रुपये देकर डॉलर वापस खरीद सकेंगे. इससे बैंकिंग प्रणाली में अधिक तरलता आयेगी, जिससे रुपये और ब्याज दरों में स्थिरता आयेगी और बैंक अधिक ऋण देकर अर्थव्यवस्था को सशक्त बनाने में मदद करेंगे. रुपये की कीमत स्थिर रखने के लिए अब केंद्रीय बैंक मुद्रा बाजार में जरूरी हस्तक्षेप कर रहा है, जिसमें वह डॉलर बेचकर इसकी आपूर्ति बढ़ा रहा है, ताकि रुपये का मूल्य स्थिर बना रहे.
हालांकि इससे विदेशी मुद्रा का भंडार थोड़ा कम हो गया है और बैंकिंग प्रणाली में तरलता भी घट गयी है. नवंबर में देश का वस्तु वाणिज्य घाटा 24.53 अरब डॉलर तक गिर गया, जो पिछले पांच महीनों में सबसे कम था. इस महीने निर्यात 41 महीने में सबसे तेजी से बढ़ा, जबकि आयात में मामूली कमी हुई, जिससे व्यापार घाटा घट गया. आयात घटने का मुख्य कारण सोने के आयात में भारी गिरावट रहा. अक्तूबर में व्यापार घाटा 41.68 अरब डॉलर हो गया था, जो पिछले साल नवंबर में 31.93 अरब डॉलर था.
पुनः नवंबर में वस्तुओं का निर्यात बढ़कर 38.13 अरब डॉलर हो गया, जो पिछले छह महीनों में सर्वाधिक है. भू-राजनीतिक अनिश्चितता, कुछ देशों के बीच जारी युद्ध और 50 फीसदी अमेरिकी टैरिफ के बावजूद, नवंबर माह में निर्यात 19.38 फीसदी बढ़ा. इस महीने अमेरिका को 6.98 अरब डॉलर का निर्यात हुआ, जो पिछले साल की समान अवधि से 22.45 फीसदी अधिक है. अक्तूबर की तुलना में नवंबर में अमेरिका को निर्यात 10.62 फीसदी बढ़ा है. माना जा रहा है कि दोनों देशों के बीच व्यापार समझौता जल्दी होने की उम्मीद में निर्यात बढ़ा है. चालू वित्त वर्ष में ऋण वृद्धि की दर लगभग 11.50 से 12.00 फीसदी के बीच बनी रहने और आर्थिक गतिविधियों में तेजी रहने का अनुमान है. अमेरिका के रोजगार बाजार में धीमी वृद्धि के चलते फेडरल रिजर्व की ब्याज दरों में कटौती की उम्मीद बनी हुई है, जिससे वैश्विक मुद्रा बाजार पर नकारात्मक प्रभाव पड़ा है.
नवंबर में रुपये की कीमत स्थिर बनी रही, क्योंकि डॉलर की मजबूती बनाये रखने, विदेशी निवेशकों द्वारा भारतीय बाजार में निवेश से परहेज करने, सोने की बढ़ती कीमत, भारत-अमेरिका व्यापार समझौते को लेकर बने असमंजस आदि के कारण रुपया कुछ कमजोर जरूर हुआ, पर कई दूसरी मुद्राओं की तुलना में यह ज्यादा स्थिर रहा. भारत और अमेरिका के बीच कारोबारी समझौते को लेकर बने असमंजस और देश में शेयरों की कीमतें उच्च स्तर पर रहने के कारण विदेशी निवेशक अब भी सतर्क हैं, जिससे हाल के महीनों में विदेशी निवेश में कमी आयी है. अप्रैल से अक्तूबर के बीच विदेशी स्रोतों से लिये गये कर्ज की संख्या में भी आयी गिरावट दर्शाती है कि विदेशी पैसा जुटाने की प्रक्रिया धीमी हो गयी है.
ऐसे में, नये साल में कुछ समय तक भारतीय रुपये पर दबाव रह सकता है, क्योंकि इसकी चाल कुछ हद तक डॉलर के प्रवाह पर निर्भर करेगी. फिर भी, इस वित्त वर्ष की दूसरी तिमाही में चालू खाते का घाटा पिछले साल से कम रहने, वस्तुओं के व्यापार घाटे में कमी आने का अनुमान, सेवाओं के निर्यात में मजबूती आने, प्रवासी भारतीयों द्वारा भेजे जा रहे पैसे, मौजूदा विदेशी मुद्रा भंडार के 11 महीनों की आयात जरूरतें पूरी करने के लिए पर्याप्त होने, महंगाई दर नियंत्रित रहने, ऋण वृद्धि की दर बेहतर रहने, आर्थिक गतिविधियों में तेजी बनी रहने, कंपनियों का मुनाफा बढ़ने, जीडीपी वृद्धि दर के बेहतर होने आदि से रुपये पर बहुत लंबे समय तक दबाव बनाने की संभावना नहीं है. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)

