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बदले हुए जम्मू-कश्मीर में सन्न कर देने वाला हमला, पढ़ें अवधेश कुमार का लेख

प्रधानमंत्री मोदी ने अगर सऊदी अरब से लौटते हुए पाकिस्तानी वायु मार्ग का इस्तेमाल नहीं किया, तो इसके निहितार्थ भी स्पष्ट हैं. जाहिर है, सरकार के स्तर पर पाकिस्तान की भूमिका की सटीक सूचना नहीं होती, तो ऐसा नहीं होता. जो जानकारी है, उसके अनुसार आतंकवादी पाकिस्तान से निर्देश ले रहे थे. दरअसल आंतरिक संकटों से ग्रस्त पाकिस्तान और अपनी छवि सुधारने के लिए संघर्षरत सेना-आइएसआइ के पास एकमात्र रास्ता जम्मू-कश्मीर ही बचता है.

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पहलगाम में हुए आतंकी हमले पर पूरा देश क्षुब्ध है. चुन-चुनकर निहत्थे हिंदू पर्यटकों की हत्या नरेंद्र मोदी सरकार के अंदर जम्मू-कश्मीर के स्पष्ट दिख रहे परिवर्तित हालात की दृष्टि से असामान्य और सन्न करने वाली घटना है. पहलगाम जम्मू-कश्मीर का प्रसिद्ध पर्यटन स्थल है. चूंकि जम्मू-कश्मीर की स्थिति पिछले पांच-छह साल में काफी हद तक सामान्य हो गयी है, इसलिए भारी संख्या में लोग अपने परिवार के साथ निर्भय होकर चारों ओर घूमते हैं. घटना का विवरण और इसकी पृष्ठभूमि हमें कई बातों पर विचार करने के लिए बाध्य करती है. आखिर वह कौन-सी सोच है, जिसमें आतंकवादियों ने मजहब प्रमाणित करके लोगों को मारा? प्रधानमंत्री मोदी ने इस घटना को इतनी गंभीरता से लिया कि सऊदी अरब की यात्रा बीच में रोक वापस लौटे, विदेश मंत्री और राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार के साथ बैठक की तथा गृह मंत्री अमित शाह सीधे कश्मीर पहुंचे. सरकारी स्तर पर ऐसी सक्रियता से लोगों को सुरक्षा का आश्वासन मिलता है तथा आतंकवादियों एवं उनको प्रायोजित करने वाली शक्तियों को सख्त संदेश.

चूंकि यह घटना अमरनाथ यात्री निवास नुनवान बेस कैंप से महज 15 किलोमीटर दूर हुई और आगामी तीन जुलाई से अमरनाथ यात्रा शुरू हो रही है, तो यह मानने में भी समस्या नहीं है कि पर्यटकों के साथ तीर्थयात्रियों के अंदर भय पैदा करने के लिए हमला किया गया. आतंकवादी संगठन लश्कर से जुड़े ‘द रेजिस्टेंस फ्रंट’ (टीआरएफ) ने हमले की जिम्मेदारी ली है. इसके बारे में जानकारी यही है कि जब पाकिस्तान पर आतंकी संगठनों को प्रतिबंधित और नियंत्रित करने का दबाव बढ़ा, तब लश्कर और अन्य संगठनों ने टीआरएफ नाम कर लिया.

प्रधानमंत्री मोदी ने अगर सऊदी अरब से लौटते हुए पाकिस्तानी वायु मार्ग का इस्तेमाल नहीं किया, तो इसके निहितार्थ भी स्पष्ट हैं. जाहिर है, सरकार के स्तर पर पाकिस्तान की भूमिका की सटीक सूचना नहीं होती, तो ऐसा नहीं होता. जो जानकारी है, उसके अनुसार आतंकवादी पाकिस्तान से निर्देश ले रहे थे. दरअसल आंतरिक संकटों से ग्रस्त पाकिस्तान और अपनी छवि सुधारने के लिए संघर्षरत सेना-आइएसआइ के पास एकमात्र रास्ता जम्मू-कश्मीर ही बचता है. पाकिस्तान में जिस तरह सेना का उपहास उड़ाया जा रहा है, लोग सेना के विरुद्ध सड़कों पर उतरे हैं, उसके भ्रष्टाचार और विफलता के विवरण मीडिया, सोशल मीडिया में सामने आये हैं, उनसे सेना के अधिकारियों की चिंता बढ़ी है. सेना प्रमुख जनरल मुनीर का मुस्लिमों को भड़काने वाला भाषण इसी कड़ी का हिस्सा था. जनरल मुनीर ने नये सिरे से इस्लामी जेहाद की बात की और जम्मू-कश्मीर की भी चर्चा की. यह संकेत था कि सेना ने जम्मू-कश्मीर में हिंसा फैलाने की कुछ दीर्घकालीन नीतियां बनायी है. जब लोग सवाल उठाते हैं कि आर्थिक दृष्टि से विपन्न पाकिस्तान भारत के विरुद्ध हिंसा कैसे फैलायेगा, तो वे भूल जाते हैं कि इसके लिए शक्तिशाली होना जरूरी नहीं है, बल्कि जम्मू-कश्मीर में इस्लाम के नाम पर भड़काना और पहले से व्याप्त आतंकी ढांचे को सक्रिय करना होता है. जनरल मुनीर ने यही किया. उनकी सोच और रणनीति देखिए. एक पीड़ित महिला ने बताया कि मैं और मेरे पति भेल खा रहे थे, तभी आतंकी आये और बोले कि ये मुस्लिम नहीं लग रहे, इन्हें मार दो और मेरे पति को गोली मार दी. आतंकवादियों की योजना यही है कि वे कश्मीर के स्थानीय मुस्लिम निवासियों को संदेश दें कि हम मुसलमान होकर आपके हैं और गैर मुसलमान हम सबके साझा दुश्मन हैं. हालांकि आतंकवादी संगठन, अलगाववादी तथा पाकिस्तान भूल रहे हैं कि भारत, जम्मू-कश्मीर और वैश्विक अंतरराष्ट्रीय स्थितियां बदली हुई हैं. कश्मीर के स्थानीय लोगों को अनुच्छेद 370 हटाने के बाद बदली स्थिति का लाभ मिला है. खुलकर हवा में सांस लेने लगे हैं, बच्चे पढ़ने लगे हैं, खेलकूद व सांस्कृतिक गतिविधियों में भाग ले रहे हैं और सबसे बढ़कर विकास उनके घर तक पहुंच रहा है. पहले की तरह वहां आतंकवादियों से मुठभेड़ में सुरक्षा बलों के विरुद्ध प्रदर्शन और पत्थरबाजी नहीं दिखती. यह तो नहीं कह सकते कि आतंकवादियों का स्थानीय समर्थन बिल्कुल खत्म हो गया है, पर स्थिति पहले की तरह नहीं है. कभी पाकिस्तान को अमेरिका या कुछ यूरोपीय देशों की अंतरराष्ट्रीय नीति के कारण शह मिल जाती थी, किंतु अब वह अकेला है. अफगानिस्तान तक उसके विरुद्ध खड़ा है. ज्यादातर प्रमुख मुस्लिम देश भी पाकिस्तान का साथ देने को तैयार नहीं. भारत की स्थिति भी पिछले 10 साल में काफी बदली है. दो बार सीमापार कार्रवाई करके प्रदर्शित भी किया गया है कि हम प्रायोजित आतंकवाद का मुंहतोड़ जवाब देने वाले देश बन चुके हैं. अमेरिका, रूस और यूरोपीय देश ही नहीं, कई मुस्लिम देशों ने इस घटना में भारत के साथ होने का बयान दिया है. इसलिए प्रधानमंत्री मोदी अगर दोषियों को बख्शे नहीं जाने की बात कर रहे हैं और अमित शाह मोर्चा संभाले हुए हैं, तो आतंकवादियों और उनके प्रायोजकों के लिए अब तक का सबसे बुरा समय होगा.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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