New India Co-operative Bank : न्यू इंडिया को-ऑपरेटिव बैंक में हुए बड़े घोटाले के बाद भारतीय रिजर्व बैंक ने बैंक से किसी भी तरह के लेनदेन पर रोक लगा दी है. इस आदेश के बाद बैंक के बाहर बड़ी संख्या में ग्राहकों की लंबी कतार लग गयी थी. यह प्रतिबंध 13 फरवरी, 2025 से लागू हुआ है और अगले छह महीने तक जारी रहेगा. रिजर्व बैंक के इस निर्णय के कारण बैंक के 1.3 लाख जमाकर्ता ग्राहकों को भारी परेशानी का सामना करना पड़ेगा, क्योंकि अब वे अपने ही बैंक खाते से पैसे नहीं निकाल पायेंगे.
यद्यपि, भारतीय रिजर्व बैंक की सब्सिडियरी डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन (डीआइसीजीसी) एक्ट, 1961 की धारा 16 (1) के प्रावधानों के तहत, अगर कोई बैंक डूब जाता है या दिवालिया हो जाता है, तो डिपॉजिट इंश्योरेंस एंड क्रेडिट गारंटी कॉरपोरेशन जमाकर्ता को भुगतान करने के लिए उत्तरदायी होता है और उसकी जमा राशि पर पांच लाख रुपये तक का बीमा होता है.
किसी भी देश की बैंकिंग प्रणाली उसकी अर्थव्यवस्था की रीढ़ होती है. बैंकों को ज्यादा नुकसान होने से देश के प्रत्येक व्यक्ति पर प्रभाव पड़ता है, क्योंकि बैंकों में जमा राशि देश के नागरिकों की होती है. भारतीय बैंकिंग प्रणाली में गैर-निष्पादित परिसंपत्तियों (एनपीए) की समस्या प्रमुख और विकट समस्याओं में से एक है जिसने संपूर्ण बैंकिंग प्रणाली को प्रभावित किया है. बैंकिंग घोटालों का संबंध केवल ऋण से नहीं है, बल्कि इसका संबंध संचालनगत जोखिम (ऑपरेशनल रिस्क) से सीधा होता है. बैंकों का एनपीए मुख्य रूप से बैंकों के फंसे ऋण व घोटाले के कारण हैं. इनमें से अधिकतर सफेदपोश अपराध है, जो अमीरों और ताकतवर द्वारा किये गये हैं.
शोध में पता चलता है कि बड़े लोन एडवांस में धोखाधड़ी करना आसान नहीं होता फिर भी ऐसा होता रहता है क्योंकि बड़े लेनदार बैंक के अधिकारियों या कभी-कभी तीसरे पक्ष, जैसे वकीलों या चार्टर्ड अकाउंटेंट (सीए) तक के साथ सांठ-गांठ कर लेते हैं. वहीं एक आम व्यक्ति की किस्त तीन महीने तो क्या एक महीने भी जमा न हो, तो बैंक परेशान करने लगते हैं. जबकि बड़ी-बड़ी संस्थाओं से वसूली पर ध्यान ही नहीं दिया जाता और वे बैंक घोटाले कर विदेश भाग जाते हैं.
देश में एक नियमित अंतराल पर बैंक घोटाले हो रहे हैं. इससे बैंकों की व्यवस्था पर आम लोगों का भरोसा टूट रहा है. पीएमसी बैंक घोटाला, आदर्श क्रेडिट घोटाला, डीएचएफएल, एबीजी शिपयार्ड कंपनी, पीएनबी घोटाले में नीरव मोदी और मेहुल चौकसी का घोटाला, शराब कारोबारी विजय माल्या का 13 बैंकों के साथ घोटाला, इसके अतिरिक्त आइसीआइसीआइ बैंक घोटाले, इलाहाबाद बैंक घोटाला, रोटोमेक पेन घोटाला, आरपी इन्फोसिस्टम बैंक घोटाला और यस बैंक घोटाले सहित न जाने कितने बैंक घोटाले हमारे सामने हैं. उच्च एनपीए से बैंकों का नेट इंटरेस्ट मार्जिन भी कम होने लगता है. साथ ही उनका परिचालन लागत (ऑपरेटिंग कॉस्ट) लगातार बढ़ता जाता है. और ये बैंक इस लागत को अपने छोटे ग्राहकों से आय दिन सुविधा शुल्क बढ़ाकर पूरा करते हैं.
दूसरे शब्दों में कहें, तो बैंक घोटालों में ‘करे कोई, भरे कोई’ का मामला ही चल रहा है. जिसका भार अंतत: आम आदमी और करदाता ही उठाता है. खराब ऋण समय के साथ उच्च एनपीए की ओर ले जाते हैं, इसलिए धन की पेशकश करते समय बैंकों को उचित परिश्रम व सतर्कता रखनी होगी. बैंकों के एनपीए को कम करने के लिए सनदी लेखाकारों का नियमन एवं नियंत्रण जरूरी है. बैंकों को उन भारतीय कंपनियों को कर्ज देते समय सतर्क रहना चाहिए, जिन्होंने विदेशों में भारी कर्ज लिया है. बैंकों के आंतरिक और बाहरी ऑडिट सिस्टम को सख्त करने की तत्काल आवश्यकता है. सरकार को कानूनों में संशोधन करने और बैंकों को एनपीए की वसूली के लिए अधिक अधिकार देने की जरूरत है. कनिष्ठ अधिकारियों को अक्सर चूक का जिम्मेदार माना जाता है, जबकि बड़े निर्णय क्रेडिट स्वीकृति समिति द्वारा लिये जाते हैं, जिनमें वरिष्ठ स्तर के अधिकारी शामिल होते हैं. इसलिए, वरिष्ठ अधिकारियों को जवाबदेह बनाना महत्वपूर्ण है. यहां ऋण विभाग के कर्मचारियों का तेज रोटेशन अत्यंत आवश्यक है.
आरबीआइ के पास फॉरेंसिक ऑडिट करने के लिए पर्यवेक्षी क्षमता का अभाव है और इसे मानव के साथ-साथ तकनीकी संसाधनों के साथ मजबूत किया जाना चाहिए. वित्तीय लेनदेन की निगरानी के लिए एआइ के उपयोग से वित्तीय धोखाधड़ी को बहुत हद तक कम किया जा सकता है. हालांकि एक बिंदु से आगे डिजिटलीकरण को अपनाना गलत साबित हो सकता है क्योंकि एआइ मात्रात्मक जानकारी प्रदान करती है, परंतु इसमें गुणात्मक पहलुओं को जगह नहीं मिलती है. उधारकर्ताओं की पृष्ठभूमि और अन्य प्रासंगिक जमीनी वास्तविकताओं पर शाखा से इनपुट, जो जोखिमों का आकलन करने में महत्वपूर्ण हैं, को उचित महत्व दिया जाना चाहिए. आरबीआइ व बैंकों को ऋण प्रबंधन पर अधिक पर्यवेक्षी निरीक्षण के साथ रोकथाम में अधिक सक्रिय भूमिका निभानी होगी.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)