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भारत के लिए नये वैश्विक अवसर

कई देश आपूर्ति श्रृंखलाओं को चीन से दूर करने का प्रयास कर रहे हैं और भारत से संबंध स्थापित कर रहे हैं. भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान ने चीन पर निर्भरता घटाने के लिए त्रिपक्षीय पहल के विचार-विमर्श को आगे बढ़ाया है.

चीन-ताइवान तनाव और अमेरिकी विरोध की चीनी रणनीति के कारण चीन पर वैश्विक निर्भरता में कमी के बीच भारत के लिए वैश्विक आपूर्ति में नये मौकों का परिदृश्य उभरता दिख रहा है. कई देश आपूर्ति श्रृंखलाओं को चीन से दूर करने का प्रयास कर रहे हैं और भारत से संबंध स्थापित कर रहे हैं. भारत, ऑस्ट्रेलिया और जापान ने चीन पर निर्भरता घटाने के लिए त्रिपक्षीय पहल के विचार-विमर्श को आगे बढ़ाया है. यह बात भी महत्वपूर्ण है कि कोविड-19 को लेकर चीन के प्रति वैश्विक नकारात्मकता अभी कम नहीं हुई है और इस वर्ष के शुरुआती महीनों में चीन में कोरोना संक्रमण के कारण उद्योग-व्यापार के ठहर जाने से चीन से होने वाली आपूर्ति में बड़ी कमी आयी है.

स्पष्ट दिख रहा है कि कोरोना काल में चीन से बाहर निकलते विनिर्माण, निवेश और निर्यात के कई मौके भारत की ओर आये हैं. अब ताइवान और अमेरिका के साथ चीन की शत्रुता के बीच भारत कई देशों और वैश्विक कंपनियों के लिए मैनुफैक्चरिंग सेक्टर और विभिन्न उत्पादों की वैकल्पिक आपूर्ति करने वाले देश के रूप में आगे बढ़ने का अवसर मुठ्ठी में ले सकता है. अब तेजी से बदलती हुई यह धारणा भी भारत के लिए लाभप्रद है कि भारत गुणवत्तापूर्ण और किफायती उत्पादों के निर्यात के लिहाज से एक बढ़िया प्लेटफॉर्म है. साथ ही, भारत सस्ती लागत के विनिर्माण में चीन को पीछे छोड़ सकता है.

उल्लेखनीय है कि दुनियाभर में मेक इन इंडिया की मांग बढ़ रही है. आत्मनिर्भर भारत अभियान में 24 सेक्टरों को प्राथमिकता के साथ आगे बढ़ाया जा रहा है. चूंकि अभी भी देश में दवा, मोबाइल, चिकित्सा उपकरण, वाहन तथा इलेक्ट्रॉनिक्स जैसे कई उद्योग बहुत कुछ चीन से आयातित माल पर आधारित हैं, ऐसे में चीनी कच्चे माल का विकल्प तैयार करने के लिए पिछले दो वर्ष में सरकार ने प्रोडक्शन लिंक्ड इंसेंटिव (पीएलआई) स्कीम के तहत 13 उद्योगों को करीब दो लाख करोड़ रुपये के आवंटन के साथ प्रोत्साहन सुनिश्चित किया है. इस योजना के तहत देश में लगभग 40 लाख करोड़ रुपये मूल्य की वस्तुओं के उत्पादन का जो लक्ष्य है, वह धीरे-धीरे आकार लेता हुआ दिख रहा है. कुछ निर्मित उत्पादों का निर्यात भी हो रहा है.

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रूस-यूक्रेन संकट और चीन-ताइवान तनातनी के कारण दुनिया रूस और चीन तथा अमेरिका व पश्चिमी देशों के दो ध्रुवों में विभाजित दिख रही है. ऐसे में यह कोई छोटी बात नहीं है कि भारत दोनों ही खेमों के विभिन्न देशों में व्यापार-कारोबार बढ़ाने की जोरदार संभावनाएं रखता है. पश्चिमी देशों द्वारा रूस पर लगाये गये आर्थिक प्रतिबंधों के कारण अमेरिकी, यूरोपीय और जापानी कंपनियों सहित कई बहुराष्ट्रीय कंपनियों ने रूस में अपना कारोबार बंद कर दिया है, तब रूस में भारत की उपभोक्ता कंपनियों से लेकर दवा निर्माण कंपनियों ने अपना कामकाज बढ़ा लिया है. अब अमेरिका के साथ चीन के तनाव के कारण अमेरिका व पश्चिमी देशों में चीन के लिए विदेश व्यापार के मौके घटेंगे और भारत के लिए ये मौके बढ़ेंगे.

दुनिया के जिन देशों के साथ चीन के व्यापार समझौते नहीं हैं, उनके साथ भारत के कारोबार की नयी संभावनाएं पैदा हुई हैं. अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया ने क्वाड के रूप में जिस नयी ताकत के उदय का शंखनाद किया है, वह क्वाड भारत के उद्योग-कारोबार के विकास में मील का पत्थर साबित हो सकता है. विगत 24 मई को अमेरिका, भारत, जापान और ऑस्ट्रेलिया के रणनीतिक मंच क्वाड के दूसरे शिखर सम्मेलन में चारों देशों ने जिस समन्वित शक्ति का शंखनाद किया है और बुनियादी ढांचे पर 50 अरब डॉलर से अधिक रकम लगाने का वादा किया है, उससे क्वाड देशों में भारत के उद्योग-कारोबार के लिए नये मौके निर्मित होंगे.

यह भी महत्वपूर्ण है कि अमेरिका की अगुआई में बनाये गये संगठन हिंद-प्रशांत आर्थिक फ्रेमवर्क (आइपीइएफ) के सदस्य देशों की 11 जून को पेरिस में आयोजित हुई अनौपचारिक बैठक के बाद इसके सदस्य देशों के साथ भारत के विदेश व्यापार को नयी गतिशीलता मिलने की संभावनाएं उभरती हुई दिख रही हैं. वस्तुतः आइपीइएफ पहला बहुपक्षीय करार है, जिसमें भारत शामिल हुआ है. इसमें अमेरिका, भारत, जापान, ऑस्ट्रेलिया, ब्रुनेई, इंडोनेशिया, दक्षिण कोरिया, मलेशिया, न्यूजीलैंड, फिलिपींस, सिंगापुर, थाईलैंड और वियतनाम शामिल हैं. इसी वर्ष 2022 में यूरोपीय देशों के साथ किये गये नये आर्थिक समझौतों के क्रियान्वयन से भी भारत का विदेश व्यापार बढ़ेगा.

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निश्चित रूप से पिछले 11 जुलाई को भारतीय रिजर्व बैंक के द्वारा भारत और अन्य देशों के बीच व्यापारिक सौदों का निपटान रुपये में किये जाने संबंधी महत्वपूर्ण निर्णय से जहां भारतीय निर्यातकों और आयातकों को अब व्यापार के लिए डॉलर की अनिवार्यता नहीं रहेगी. वहीं अब दुनिया का कोई भी देश भारत से सीधे बिना अमेरिकी डॉलर के व्यापार कर सकता है. ऐसे में उन देशों के साथ भारत के लिए तेजी से कारोबार बढ़ाने के नये मौके निर्मित होंगे. खासतौर से डॉलर संकट का सामना कर रहे रूस, संयुक्त अरब अमीरात, इंडोनेशिया, श्रीलंका, ईरान, एशिया और अफ्रीका सहित कई छोटे-छोटे देशों के साथ भारत का विदेश व्यापार तेजी से बढ़ेगा.

निश्चित रूप से रिजर्व बैंक के इस कदम से भारतीय रुपये को अंतरराष्ट्रीय व्यापार में एक वैश्विक मुद्रा के रूप में स्वीकार करवाने की दिशा में मदद मिलेगी. जिस तरह चीन और रूस जैसे देशों ने अंतरराष्ट्रीय व्यापार में अमेरिकी डॉलर के वर्चस्व को तोड़ने की दिशा में सफल कदम बढ़ाये हैं, उसी तरह अब रिजर्व बैंक के निर्णय से भारत की बढ़ती वैश्विक स्वीकार्यता के कारण रुपये को अंतरराष्ट्रीय मुद्रा के रूप में स्थापित करने में भी मदद मिल सकती है और इससे भारत के लिए विदेश व्यापार के नये मौके बढ़ेंगे. हम उम्मीद करें कि इस समय चीन-ताइवान के बीच तनातनी, रूस-यूक्रेन युद्ध की बढ़ती अवधि की चुनौती तथा चीन पर वैश्विक निर्भरता में कमी आने के बीच आपूर्ति श्रृंखला के पुनर्गठन के मद्देनजर भारत के लिए मैनुफैक्चरिंग सेक्टर एवं विदेश व्यापार बढ़ाने के जो अभूतपूर्व मौके निर्मित होते हुए दिख रहे हैं, उन्हें मुठ्ठियों में लेने के लिए सरकार और देश के उद्योग-व्यापार जगत के द्वारा रणनीतिक रूप से आगे बढ़ा जायेगा.

(ये लेखक के निजी विचार हैं.)

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