China dumping strategy : दोनों तरफ से तनातनी और मोर्चाबंदी के बाद आखिरकार अमेरिका और चीन के बीच ड्रेड डील हो गयी है. दोनों ही देशों ने टैरिफ में 115 प्रतिशत की कटौती की घोषणा की है. व्यापार समझौते के मुताबिक, अमेरिका जहां चीनी सामान पर 30 फीसदी टैरिफ लगायेगा, वहीं अमेरिकी उत्पादों पर चीन 10 प्रतिशत शुल्क लगायेगा. दोनों देशों के बीच टैरिफ में यह कटौती नब्बे दिनों के लिए हुई है. लेकिन पिछले कुछ समय से ट्रंप के टैरिफ वार पर जितनी चर्चा हो रही है, उतनी बात चीन द्वारा की जाने वाली डंपिंग पर नहीं हो रही, जिससे अनेक देशों के घरेलू उद्योग को नुकसान हो रहा है. इनमें भारत भी शामिल है. डंपिंग का मतलब है कम दामों पर सामान बेचना.
अंतरराष्ट्रीय व्यापार की भाषा में डंपिंग तब होती है, जब कोई देश या कंपनी अपने घरेलू बाजार की तुलना में विदेशी बाजार में कम कीमत पर उत्पाद का निर्यात करती है. अंतरराष्ट्रीय व्यापार में डंपिंग को दुरुपयोग माना जाता है. चीन ने डंपिंग की इस कला में महारत हासिल कर ली है, जिसका उद्देश्य आयात करने वाले देशों के घरेलू उद्योग को खत्म करना है. एक बार जब कोई देश चीनी उत्पादों पर निर्भर हो जाता है, तो फिर उसका शोषण शुरू हो जाता है. सक्रिय दवा सामग्री (एपीआइ) का मामला चीनी डंपिंग और शोषण के जीते-जागते उदाहरण हैं.
वर्ष 2004 के बाद, पेनिसिलिन जी और फोलिक एसिड सहित कई प्रकार की एपीआइ को भारतीय बाजारों में बेहद कम कीमतों पर डंप किया गया. इस खेल से न केवल भारतीय एपीआइ उद्योग को खत्म कर दिया गया, बल्कि देश की स्वास्थ्य सुरक्षा को भी खतरे में डाल दिया गया. विगत मार्च में भारत ने घरेलू उद्योगों को चीनी डंपिंग से बचाने के लिए चार चीनी वस्तुओं- सॉफ्ट फेराइट कोर, वैक्यूम इंसुलेटेड फ्लास्क, एल्युमीनियम पन्नी और ट्राइक्लोरो आइसोसायन्यूरिक एसिड- पर एंटी-डंपिंग शुल्क लगाया था. इससे पहले 2024 में व्यापार उपचार महानिदेशालय (डीजीटीआर) द्वारा दायर एंटी-डंपिंग जांचों में से 79 प्रतिशत चीनी उत्पादकों के खिलाफ दायर की गयी थी.
चीन इतना डंपिंग क्यों करता है? दरअसल चीन के पास बहुत अधिक अतिरिक्त उत्पादन क्षमता है, जिससे अधिशेष उत्पादन होता है. चीन का ध्यान हमेशा निर्यात आधारित विकास पर रहा है, जिसे सरकार का समर्थन प्राप्त है. चीनी कंपनियों को अन्य रूपों में सब्सिडी और सरकारी सहायता मिलती है, जिससे वे अपने उत्पादों को कृत्रिम रूप से कम कीमतों पर बेच पाते हैं. सरकारी सब्सिडी बाजार की कीमतों को विकृत करती है और अनुचित प्रतिस्पर्धा को जन्म देती है. डंपिंग के जरिये चीन ज्यादातर देशों के बाजारों को अपने उत्पादों से पाट देता है. इस तरह वह दूसरे देशों को अपने माल का गुलाम बना देता है. चूंकि चीनी उत्पाद तुलनात्मक रूप से सस्ते होते हैं, ऐसे में, वे दूसरे देशों के उद्योगों की कमर तोड़ देते हैं.
डंपिंग रणनीति के जरिये चीन ने जहां दुनिया के अधिकांश देशों के बाजारों में अपनी मजबूत उपस्थिति दर्ज की है, वहीं उसकी इस चालाक रणनीति के आगे अमेरिका जैसे देश भी लाचार नजर आते हैं. अतीत में, ऐसे कई उदाहरण सामने आये हैं, जब चीन ने भारत समेत विदेशी बाजारों में डंपिंग की अनैतिक प्रथा अपनायी. हमारा एपीआइ उद्योग, इलेक्ट्रॉनिक्स और टेलीकॉम उद्योग, कपड़ा और परिधान उद्योग, खिलौना उद्योग और कई अन्य उद्योग चीनी डंपिंग का शिकार रहे हैं. इन उद्योगों की कई विनिर्माण इकाइयां चीनी डंपिंग के कारण बंद होने के कगार पर पहुंच गयीं. डंपिंग से निपटने के लिए भारत ने डब्ल्यूटीओ नियमों के तहत उपलब्ध कई व्यापार उपायों का उपयोग किया है, जिनमें एंटी-डंपिंग शुल्क और सुरक्षा उपाय शामिल हैं. भारत द्वारा लगाये गये अधिकांश एंटी-डंपिंग शुल्क चीन पर थे.
चीनी डंपिंग को रोकने के लिए अपनाये गये विभिन्न तरीकों के बावजूद चीनी आयात पर भारतीय निर्भरता लगातार बढ़ रही है. वित्त वर्ष 2024-25 में अप्रैल से फरवरी तक चीन से भारत का आयात एक साल पहले की समान अवधि की तुलना में 10.4 फीसदी बढ़कर 103.7 अरब अमेरिकी डॉलर हो गया. जबकि चीन को निर्यात 15.7 प्रतिशत घटकर 12.7 अरब डॉलर रह गया. इससे चीन के साथ हमारा व्यापार घाटा बढ़ गया है. यह भारत द्वारा अपनाये गये एंटी-डंपिंग उपायों की लंबी सूची के बावजूद है. जाहिर है, चीनी डंपिंग रोकने के लिए और अधिक प्रयास करने की जरूरत है.
अब जब भारत दुनिया के लिए विनिर्माण केंद्र बनने की आकांक्षा रखता है, तब वह चीन से डंपिंग के किसी नये दौर को बर्दाश्त नहीं कर सकता, क्योंकि यह उसके आत्मनिर्भर भारत के सपने को खतरे में डाल सकता है. जब भी भारत ने एंटी-डंपिंग शुल्क, सुरक्षा उपायों या किसी अन्य तरीके का इस्तेमाल किया है, तब चीन ने इसे टालने की कोशिश की है. चीनी सामान पर अंकुश लगाने के नयी दिल्ली के प्रयासों को विफल करने के लिए चीन ने अपने कारखानों को अन्य देशों में स्थानांतरित कर दिया है और उन देशों के माध्यम से माल की आपूर्ति कर रहा है. हम न केवल चीन में उत्पादित चीनी सामान पर, बल्कि चीन के बाहर स्थापित चीनी कारखानों द्वारा उत्पादित सामान पर भी अंकुश लगाने की दिशा में विचार कर सकते हैं. (ये लेखक के निजी विचार हैं.)