27.2 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Trending Tags:

Advertisement

मनमोहन सिंह : अर्थशास्त्री से पीएम तक

अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह का दक्ष राजनीतिज्ञ रूप में अवतरण एक आकर्षक कथा है. बीते 26 सितंबर को डॉ मनमोहन सिंह का जन्मदिन था, उन्होंने अपने जीवन के 88 वसंत पूरे कर लिये हैं.

रशीद किदवई, राजनीतिक विश्लेषक/वरिष्ठ पत्रकार

rasheedkidwai@gmail.com

डॉवाइ के अलघ ने भारत के 13वें प्रधानमंत्री (कार्यकाल 2004-2014) डॉ मनमोहन सिंह को एक बेहद कम कर के आंके गये राजनीतिज्ञ तथा बहुत बढ़ा-चढ़ा कर प्रस्तुत किये गये अर्थशास्त्री कहा था. अर्थशास्त्री मनमोहन सिंह का दक्ष राजनीतिज्ञ रूप में अवतरण एक आकर्षक कथा है. मनमोहन सिंह 2004 से 2014 तक यानी दस साल भारत के प्रधानमंत्री रहे. बीते 26 सितंबर को डॉ मनमोहन सिंह का जन्मदिन था, उन्होंने अपने जीवन के 88 वसंत पूरे कर लिये हैं.

संयुक्त प्रगतिशील गठबंधन (यूपीए) जब वजूद में आया, तो परिस्थितियां बड़ी विकट थीं. अपने प्रति दुष्प्रचार से आहत सोनिया गांधी ने 2004 के चुनाव में, कांग्रेस की विजय के बावजूद प्रधानमंत्री पद ग्रहण करने से इंकार कर दिया था. तब यूपीए में विचार-विमर्श कर मनमोहन सिंह के नेतृत्व में सरकार बनाने पर सहमति बनायी गयी. इस सरकार को वाम दलों ने बाहर से समर्थन दिया था. मनमोहन सिंह सर्वमान्य नेता बनाये गये और बतौर प्रधानमंत्री उन्होंने ऐसा काम किया कि यूपीए को 2009 के चुनाव में भी सफलता मिली.

अलबत्ता यह जरूर है कि इस मिली-जुली सरकार को भीतर और बाहर अनेक चुनौतियों से जूझना पड़ा. मंत्रियों के आपसी मतभेद बार-बार सामने आते रहे. अपने वरिष्ठ नेताओं पर प्रधानमंत्री का किसी भी तरह का नियंत्रण दिखायी नहीं पड़ता था. अपने दस सालों के कार्यकाल में मनमोहन सिंह ‘लंबी दूरी तक दौड़ने वाले मैराथन के धावक जरूर रहे, लेकिन वे अकेले ही दौड़ते रहे.’ परमाणु करार मामले में, वामपंथी पार्टियों के साथ मनमोहन का एक अलग रूप देखने को मिला.

इसमें कांग्रेस ने गठबंधन धर्म नहीं निभाया. परमाणु करार को लेकर मनमोहन सिंह ने प्रतिष्ठित अंग्रेजी अखबार द टेलीग्राफ को इंटरव्यू देते हुए कहा, ‘मैंने उनसे (वामपंथी पार्टियों से) कह दिया है कि इस करार पर पुनर्विचार करना संभव नहीं है. यह एक सम्मानजनक करार है, कैबिनेट ने इसे अनुमोदित किया है, हम इस पर पीछे नहीं हट सकते. मैंने उनसे कहा, उन्हें जो कुछ करना है, वे कर लें. अगर वे चाहें तो समर्थन वापस ले सकते हैं.’

बहरहाल, मनमोहन सिंह के दूसरे प्रधानमंत्रित्व काल में महंगाई बढ़ती रही. इसके बावजूद, पता नहीं किन कारणों से सिंह ने इस पर ज्यादा बात करना पसंद नहीं किया. अपने कुल 1,379 भाषणों में से मात्र 88 भाषणों में उन्होंने महंगाई पर बात की. मनमोहन सिंह काम करते रहे, लेकिन मौन रह कर, इससे वे आमजनों में आत्मविश्वास का भाव पैदा नहीं कर सके.

पूर्व आइएएस व एशियन डेवलपमेंट बैंक (एडीबी) के डायरेक्टर प्रदीप के लाहिरी की आत्मकथा ‘अ टाइड इन द अफेयर्स ऑफ मेनः अ पब्लिक सर्वेंट रिमेंबर्स’ में मनमोहन से जुड़ी कई बातों का जिक्र मिलता है. उनके मुताबिक, भारतीय इतिहास में मनमोहन सिंह का योगदान प्रधानमंत्री के बजाय भारत के वित्त मंत्री के रूप में ज्यादा याद रखा जायेगा.

फिक्की द्वारा दिल्ली में आयोजित एक कार्यक्रम में वित्त मंत्री मनमोहन सिंह को बतौर वक्ता शिरकत करनी थी. इस कार्यक्रम में, उनकी धर्मपत्नी गुरशरण कौर को भी आमंत्रित किया गया था. उन्हें कार्यक्रम में ले जाने के लिए एक उपसचिव नयी दिल्ली स्थित उनके घर पहुंचे. स्वाभाविक रूप से इस अधिकारी को लगा था कि भारत के वित्त मंत्री के घर पर कई सरकारी वाहन होंगे, जिसमें वह वित्त मंत्री की धर्मपत्नी को आयोजन स्थल तक ले जायेंगे. परंतु घर पहुंच कर वह आश्चर्यचकित रह गये, जब वित्त मंत्री की धर्मपत्नी ने बताया कि मंत्री जी के पास एक ही सरकारी वाहन है, जिसका उपयोग वे स्वयं करते हैं.

सितंबर, 1932 में गेह (अब पाकिस्तान में) नामक छोटे से कस्बे में मनमोहन सिंह का जन्म हुआ. अपने जीवन के प्रारंभिक 12 साल उन्होंने एक ऐसे गांव में गुजारे, जहां न बिजली थी, न पानी का नल, न स्कूल, न अस्पताल. गांव से दूर स्थित एक उर्दू मीडियम स्कूल में उन्होंने पढ़ाई की, जिसके लिए उन्हें रोजाना मीलों पैदल चलना पड़ता था. वे रात को केरोसीन लैंप की रौशनी में पढ़ाई किया करते थे.

मनमोहन सिंह अपनी शिक्षा पूरी कर प्रख्यात अर्थशास्त्री रॉल प्रेबिश के अधीन संयुक्त राष्ट्र संघ में काम कर रहे थे, तभी उन्हें दिल्ली स्कूल ऑफ इकोनॉमिक्स में लेक्चररशिप का ऑफर मिला. सिंह ने यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया और 1969 में भारत लौट आये. इस पर डॉ. प्रेबिश को स्वाभाविक रूप से आश्चर्य हुआ कि मनमोहन सिंह जैसा विद्वान अर्थशास्त्री संयुक्त राष्ट्र की प्रतिष्ठित नौकरी छोड़कर आखिर भारत क्यों लौट रहा है. उन्होंने कहा, ‘तुम मूर्खता कर रहे हो, मगर मूर्खता करना भी कभी–कभी बुद्धिमानी होती है!’

22 जून, 1991, शनिवार की सुबह वे यूजीसी के अपने कार्यालय में थे कि उनके लिए फोन आया. उसी दोपहर, प्रधानमंत्री पद की शपथ लेने वाले पीवी नरसिम्हा राव लाइन पर थे. उन्होंने मनमोहन सिंह से सीधे कहा, ‘तुम वहां क्या कर रहे हो? घर जाओ और तैयार होकर सीधे राष्ट्रपति भवन आ जाओ.’ यहीं से मनमोहन सिंह की राजनीतिक यात्रा शुरू होती है, जिसके बाद उन्होंने कभी पलटकर नहीं देखा.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें