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रशीद किदवई

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संसद में टकराव की स्थिति से बचना चाहिए

इस बार का जनादेश यह है कि प्रधानमंत्री मोदी गठबंधन सरकार का नेतृत्व करें और मजबूत विपक्ष सरकार की जवाबदेही सुनिश्चित करे.

लोकसभा चुनाव में मेहनत से मिली विपक्ष को कामयाबी

लोकसभा चुनाव परिणाम दोनों पक्षों के लिए बहुत कुछ सीख लेने का अवसर है. सत्तारूढ़ दल ने 400 से अधिक सीटें लाने का दावा किया था

कांग्रेस में नेताओं के पलायन का संकट

कांग्रेस का नेतृत्व भी बिखरा हुआ है और उसके पास उत्तरदायित्व के भाव का अभाव है. मल्लिकार्जुन खरगे अध्यक्ष हैं, पर पार्टी की कमान गांधी-नेहरू परिवार के हाथ में है और सोनिया गांधी, राहुल गांधी एवं प्रियंका गांधी किसी महत्वपूर्ण पद पर नहीं हैं. खरगे हर निर्णय के लिए गांधी-नेहरू परिवार की ओर देखते हैं.

अखिलेश यादव की तल्खी और विपक्षी एकता

आम चुनाव में भाजपा को मात देने के लिए गैर कांग्रेसी दलों को 150 सीटें जीतनी होंगी और कांग्रेस को भी 125-150 सीटें जीतनी पड़ेंगी. ऐसे में दोनों ही पक्षों को पता है कि चाहे जितनी भी खटपट हो, साथ-साथ रहना उनकी मजबूरी है.

सोनिया के सहारे एकजुट हुआ विपक्ष

विपक्ष के सामने अभी बहुत अड़चनें हैं. जैसे, अभी मध्य प्रदेश, छत्तीसगढ़, राजस्थान, तेलंगाना और मिजोरम में चुनाव होने हैं. उन चुनावों में गैर-कांग्रेसी दल जैसे आम आदमी पार्टी या समाजवादी पार्टी जैसे दल भी हिस्सा लेना चाहते हैं.

विपक्षी दलों की एकजुटता की कोशिश

कांग्रेस के भीतर क्या चल रहा है या विपक्षी एकता को लेकर उसका रोडमैप क्या है, इसे लेकर अधिकृत बातें सामने नहीं आती हैं. कांग्रेस अध्यक्ष मल्लिकार्जुन खरगे एक अनुभवी और दिग्गज नेता हैं और उनके गैर-भाजपा दलों के तमाम नेताओं के साथ संपर्क हैं तथा अन्य नेता उनका आदर भी करते हैं.

कर्नाटक चुनाव से निकलते संदेश

कांग्रेस के पास जमीनी स्तर पर कार्यकर्ता होने के साथ-साथ राज्य में अनुभवी नेतृत्व है. भाजपा में ऐसे नेतृत्व का अभाव था. पार्टी ने पहले येदियुरप्पा को आयु के आधार पर किनारे किया, फिर उन्हें वापस बुलाया गया, पर वे मुख्यमंत्री पद के दावेदार या उम्मीदवार नहीं थे

कांग्रेस महाधिवेशन में स्पष्टता का अभाव

अभी जो देश की राजनीतिक स्थिति है, उससे यह साफ जाहिर होता है कि कांग्रेस अपने बूते पर तो सरकार नहीं बना सकती है. देश में छोटी-बड़ी 23-24 पार्टियां हैं, जिन्हें कांग्रेस को साधना है और बड़े गठबंधन बनाने की कोशिश करनी है.

शीर्ष संस्थानों में मुसलमान

देश के चोटी की संस्थाओं में मुसलमानों का प्रतिनिधित्व न के बराबर है. केंद्र सरकार को समस्याओं के निवारण के लिए मैदानी सतह पर काम करना चाहिए.
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