Lokpal : यह वाकई हैरान करने वाली बात है कि भ्रष्टाचार निरोधक शीर्ष संस्था लोकपाल का जिक्र भ्रष्टाचार की शिनाख्त या भ्रष्टाचारियों के खिलाफ कार्रवाई करने के बजाय लग्जरी कारों की खरीद के मामले में सामने आया है. लोकपाल ने हाल ही में लगभग पांच करोड़ रुपये में सात लग्जरी बीएमडब्ल्यू कारों की खरीद के लिए टेंडर जारी किया है, जिसकी विपक्ष और भ्रष्टाचार विरोधी कार्यकर्ताओं ने तीखी आलोचना की है. बताया गया है कि इस खरीद का उद्देश्य संस्था के प्रत्येक सदस्य को, जिनमें अध्यक्ष समेत छह अन्य सदस्य शामिल हैं, एक-एक वाहन उपलब्ध कराना है.
गौरतलब है कि लोकपाल और लोकायुक्त अधिनियम 2013 में बना और 2014 में लागू हुआ. लोकपाल में एक अध्यक्ष और अधिकतम आठ सदस्य होते हैं, जिनमें से आधे न्यायिक पृष्ठभूमि के होते हैं. जबकि इसके अध्यक्ष आमतौर पर सुप्रीम कोर्ट के न्यायाधीश या पूर्व प्रधान न्यायाधीश होते हैं. वर्ष 2019 में पहले लोकपाल की नियुक्ति हुई थी. विपक्षी पार्टियों का कहना है कि पांच करोड़ रुपये का टेंडर जारी करना फिजूलखर्ची का प्रदर्शन है, जो संस्था के मूल उद्देश्य को कमजोर करता है. विपक्ष का सवाल यह भी है कि इन कारों की खरीद के लिए जनता का पैसा क्यों खर्च किया जाये. दरअसल जिन कारों का टेंडर लोकपाल ने निकाला है, उनमें से एक कार की कीमत लगभग 70 लाख रुपये है.
लोकपाल की यह खरीद इसलिए भी सवालों के घेरे में आयी है, क्योंकि इस संस्था का मकसद जनहित और पारदर्शिता से जुड़ा हुआ है. वरिष्ठ कांग्रेसी नेता पी चिदंबरम ने सवाल उठाया है कि जब सर्वोच्च न्यायालय के जज सरकारी सिडान कारों से काम चलाते हैं, तो लोकपाल जैसी संस्था को इतनी महंगी कारों की जरूरत क्यों है. इस टेंडर की आलोचना करने वालों में नीति आयोग के पूर्व सीइओ अमिताभ कांत भी हैं. उन्होंने लोकपाल से इस टेंडर को रद्द कर देश में बनी इलेक्ट्रिक कारें खरीदने की सलाह दी है.
ज्यादा दुर्भाग्यपूर्ण यह है कि टेंडर जारी किये जाने के बाद से लोकपाल के अब तक के कामकाज का मूल्यांकन भी शुरू हो चुका है और कहा जा रहा है कि इसने अब तक ज्यादातर छोटे-मोटे अधिकारियों के खिलाफ ही कार्रवाई की है. अगर यह सच है कि 2019 में गठन के बाद से लोकपाल को 8,703 आवेदन मिले हैं, जिनमें से केवल 24 मामलों की जांच हुई और छह अभियोजन स्वीकृत हुए, तो यही अपने आप में भ्रष्टाचार निरोधक इस शीर्ष संस्था के बारे में बताने के लिए काफी है.

