India Europe relations : यह उम्मीद जतायी जा रही है कि इस साल ब्रिटेन और यूरोपीय संघ, दोनों के साथ हमारा मुक्त व्यापार समझौता (एफटीए) होने वाला है. ब्रिटेन के साथ, जो यूरोपीय संघ का हिस्सा नहीं है, मुक्त व्यापार समझौते की बातचीत फिर से बहाल हो चुकी है. इससे अगले 10 वर्षों में दोनों देशों में द्विपक्षीय व्यापार मौजूदा 20 अरब डॉलर का दोगुना या तीन गुना होने की उम्मीद है. दोनों देशों के बीच इस बारे में वार्ता जनवरी, 2013 में शुरू हुई थी. इसका उद्देश्य द्विपक्षीय व्यापार और निवेश को बढ़ावा देना है. मुक्त व्यापार समझौते में दो देश व्यापार किये जाने वाले अधिकतम सामान पर सीमा शुल्क को या तो समाप्त कर देते हैं या काफी कम कर देते हैं. वे सेवाओं और द्विपक्षीय निवेश में व्यापार को बढ़ावा देने के मानदंडों को भी आसान बनाते हैं. ध्यान देने की बात यह भी है कि भारत और ब्रिटेन सिर्फ एफटीए पर बात नहीं कर रहे. दोनों देश इसके साथ-साथ द्विपक्षीय निवेश संधि (बीआइटी) और दोहरे अंशदान कन्वेंशन समझौते पर भी बातचीत कर रहे हैं. इस बीच हमारे विदेश मंत्री एस जयशंकर ब्रिटेन और आयरलैंड की यात्रा पर गये हैं.
ब्रिटेन के अलावा यूरोपीय संघ से भी मुक्त व्यापार समझौते पर वार्ता चल रही है. यूरोपीय संघ फिलहाल दुनिया की सभी बड़ी अर्थव्यवस्थाओं के साथ अपने संबंध मजबूत करने की कोशिश में है. इसी के तहत संघ की अध्यक्ष उर्सूला बॉन डेर लेयेन प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के आमंत्रण पर 27-28 फरवरी को कुल 27 में से 22 कैबिनेट सहयोगियों के साथ, जिन्हें इयू कॉलेज ऑफ कमिशनर्स कहा जाता है, भारत यात्रा पर आयी थीं. उर्सूला बॉन की यह तीसरी भारत यात्रा थी. सबसे पहले वह अप्रैल, 2022 में द्विपक्षीय आधिकारिक यात्रा पर नयी दिल्ली आयी थीं. दूसरी बार सितंबर, 2023 में वह जी-20 नेताओं के शिखर सम्मेलन में भाग लेने के लिए आयी थीं. जबकि इयू कॉलेज ऑफ कमिशनर्स की यह पहली भारत यात्रा थी. दरअसल डोनाल्ड ट्रंप के दूसरी बार राष्ट्रपति चुने जाने से पहले ही उर्सूला बॉन ने, जिनका इयू की अध्यक्ष के तौर पर यह दूसरा कार्यकाल है, यूरोप से बाहर आर्थिक साझेदारी के लिए भारत को चुनने का निर्णय कर लिया था. इसका कारण आर्थिक मोर्चे पर भारत की मजबूती और इसकी शानदार लोकतंत्रिक छवि है.
प्रधानमंत्री मोदी के साथ बैठक में दोनों पक्षों ने भारत-यूरोपीय संघ रणनीतिक साझेदारी को और मजबूत करने तथा भारत-मध्य पूर्व-यूरोप कॉरिडोर पर व्यापक चर्चा की. अपनी यात्रा के दौरान उर्सला बॉन ने कहा कि यूरोपीय संघ जापान और दक्षिण कोरिया के साथ किये गये समझौतों की तरह भारत के साथ भविष्य में सुरक्षा साझेदारी की संभावनाएं तलाश रहा है. उन्होंने यह भी कहा कि दोनों पक्ष इस वर्ष तक मुक्त व्यापार समझौते पर हस्ताक्षर करने पर विचार कर रहे हैं, जो विश्व स्तर पर अपनी तरह का सबसे बड़ा समझौता होगा.
यूरोपीय संघ के साथ भारत के रणनीतिक संबंधों के तीन दशक पूरे होने वाले हैं. हालांकि भारत उन शुरुआती देशों में था, जिसने 1963 में यूरोपीय संघ के साथ, जो तब यूरोपियन इकोनॉमिक कम्युनिटी (इइसी) के नाम से जाना जाता था, अपना रिश्ता शुरू किया था. लेकिन शीतयुद्ध के दौर में जब भारत तत्कालीन सोवियत संघ की ओर झुकता चला गया, तब यूरोपीय संघ के साथ उसका रिश्ता कायदे से आकार ही नहीं ले पाया. सोवियत संघ के विघटन के बाद 1990 के दशक की शुरुआत में भारत के रिश्ते यूरोपीय संघ से बनने शुरू हुए. दोनों के बीच रणनीतिक साझेदारी 2004 में शुरू हुई और इन्होंने 2007 में एफटीए पर बातचीत आरंभ की. हालांकि 2013 में एफटीए पर इनकी बातचीत टूट गयी और सिर्फ रणनीतिक साझेदारी चलती रही. मोदी सरकार ने 2022 में यूरोपीय संघ के साथ एफटीए पर वार्ता फिर शुरू की.
हालांकि यूरोपीय संघ के साथ सिर्फ मुक्त व्यापार समझौता काफी नहीं है, दोनों तरफ से आव्रजन और आवाजाही भी जरूरी है, खासकर भारत की तरफ से. अब बेल्जियम की राजकुमारी एस्ट्रिड दो से आठ मार्च तक भारत यात्रा पर हैं. बेल्जियम और भारत के बीच ऐतिहासिक संबंध हैं. भारत की आजादी के एक महीने के बाद ही बेल्जियम ने हमारे साथ राजनयिक संबंध स्थापित किया था. हीरे दोनों देशों के बीच के आर्थिक संबंधों की आधारशिला बने हुए हैं. बेल्जियम के आर्थिक मिशन पर आयीं राजकुमारी के साथ 335 सदस्यों और 180 कंपनियों का प्रतिनिधिमंडल है. इस दौरान नवीकरणीय ऊर्जा, रक्षा, पर्यावरण, जीवन विज्ञान और इस्पात डीकार्बनाइजेशन जैसे मुद्दों पर कम से कम 14 सम्मेलन और सेमिनार होने हैं. इस बीच बेल्जियम के राजदूत ने एएनआइ को बताया, ‘हम यूरोपीय संघ और भारत तथा भारत और बेल्जियम के बीच और अधिक गहन तथा रणनीतिक संबंध की ओर बढ़ रहे हैं. हमें दुनियाभर में विश्वसनीय भागीदारों की आवश्यकता है. भारत में हर वर्ष पांच से सात प्रतिशत की प्रभावशाली वृद्धि हो रही है. इसलिए भारत हमारी प्राथमिकता सूची में सबसे ऊपर है.’ इस वर्ष भारत और बेल्जियम के बीच रक्षा समझौता होने की उम्मीद जतायी जा रही है.
ब्रिटेन और यूरोपीय संघ के साथ हमारे व्यापारिक संबंधों में अंतर है. ब्रिटेन के साथ हमारे पारंपरिक संबंध हैं और उसके साथ अधिक समस्या नहीं है. लेकिन यूरोपीय संघ का बाजार संरक्षणवादी है. इएसजी (इन्वायर्नमेंट, सोशल एंड गवर्नेंस) और सीबीडी (कन्वेंशन ऑन बायोलॉजिकल डायवर्सिटी) जैसे उसके सख्त मानकों का पालन कर पाना कठिन है. यानी वह उत्पादों को पर्यावरण और दूसरी कसौटियों पर कसकर देखता है. यूरोपीय संघ ने इएसजी से जुड़े कई कानून बनाये हैं, जिनका मकसद निवेशकों और आम लोगों को कंपनियों के पर्यावरण, सामाजिक मूल्य और शासन से जुड़े प्रदर्शन के बारे में जानकारी देना है. चूंकि यूक्रेन मुद्दे पर यूरोप का रुख अमेरिका से अलग दिखता है, ऐसे में, यह माना जा रहा है कि यूरोप संभवत: भारत जैसे बड़े बाजारों के नजदीक आये. यह एक हद तक सच है. लेकिन अंतरराष्ट्रीय परिदृश्य में अमेरिकी मदद के बगैर यूरोप यूक्रेन युद्ध का खात्मा नहीं कर सकता, न ही वह जेलेंस्की को मदद देने की स्थिति में है. ऐसे ही, यह नहीं समझ लेना चाहिए कि भारत ट्रंप की आक्रामक टैरिफ नीति से परेशान होकर यूरोप की तरह झुक जायेगा. यह संभव नहीं है. भारत जब भी यूरोप के साथ जायेगा, वह अमेरिका के साथ बेहतर रिश्ता बनाते हुए ही जायेगा. यानी न तो भारत के लिए अमेरिका की अनदेखी संभव है और न ही यूरोप के लिए.
(ये लेखक के निजी विचार हैं.)