11.1 C
Ranchi

BREAKING NEWS

Advertisement

प्रदूषित होती गंगा

राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने जानकारी दी है कि अभी भी गंगा में गिरनेवाले लगभग 50 प्रतिशत नालों का गंदा पानी बिना साफ किये ही बहा दिया जाता है.

गंगोत्री से गंगासागर तक प्रवाहित होती गंगा हमारे देश की महत्वपूर्ण नदी है. राष्ट्रीय जीवन में इसका विशिष्ट स्थान है, इसलिए इसे पवित्र भी माना जाता है. लेकिन इसमें गंदी नालियों और औद्योगिक अवशिष्टों के निरंतर बहाव ने इसे दुनिया की सबसे प्रदूषित नदियों में एक बना दिया है. गंगा प्रदूषण को रोकने तथा इसे स्वच्छ बनाने के प्रयास दशकों से हो रहे हैं, फिर भी संतोषजनक परिणाम नहीं मिल पास रहे हैं.

राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने जानकारी दी है कि अभी भी गंगा में गिरनेवाले लगभग 50 प्रतिशत नालों का गंदा पानी बिना साफ किये ही बहा दिया जाता है. वर्तमान समय में गंगा सफाई के लिए एक राष्ट्रीय मिशन कार्यरत है, जिसके तहत नमामि गंगे अभियान चल रहा है. प्राधिकरण ने रेखांकित किया है कि यह मिशन उन लोगों, संस्थाओं या उद्योगों के विरुद्ध कार्रवाई नहीं कर पा रहा है, जो नियमों का उल्लंघन कर गंगा में प्रदूषित पानी बहा रहे हैं.

प्राधिकरण ने राष्ट्रीय गंगा परिषद से इस समस्या के बारे में जवाब मांगा है. इसके अध्यक्ष न्यायाधीश आदेश कुमार गोयल ने यह महत्वपूर्ण बात कही है कि गंगा में लोग केवल स्नान ही नहीं करते, बल्कि इस पवित्र जल को पूजा-पाठ और कर्मकांडों में पीने का चलन भी है. वर्तमान सावन माह में गंगा नदी के जल को उत्तर भारत के कई मंदिरों में भगवान शंकर को अर्पित किया जा रहा है. इस पवित्र नदी के तट पर अनेक धार्मिक शहर बसे हुए हैं, जहां पूरे साल श्रद्धालुओं जुटते हैं.

अनेक त्योहारों में लोग विशेष रूप से गंगा स्नान करते हैं. भारत और बांग्लादेश में बहनेवाली इस नदी की लंबाई 2500 किलोमीटर से अधिक है. इसके किनारे बसे शहरों और गांवों के लिए इसका आर्थिक महत्व भी है. गंदे नालों और रासायनिक प्रदूषकों के साथ-साथ बड़ी मात्रा में प्लास्टिक भी नदी में बहाया जाता है, जिससे नदी के जीव-जंतु तो प्रभावित होते ही हैं, बंगाल की खाड़ी में भी प्रदूषण बढ़ता है. लगभग चार दशकों के प्रयासों का अगर यह परिणाम है, तो यह बेहद चिंताजनक है.

इसीलिए प्राधिकरण ने स्वच्छता कार्यक्रमों तथा निगरानी प्रक्रिया में व्यापक फेर-बदल की आवश्यकता पर बल दिया है. यदि नदी को बचाना है, तो लापरवाही और देरी से परहेज किया जाना चाहिए. गंगा सफाई से जुड़े विभाग और निगरानी संस्थान अक्सर एक-दूसरे पर आरोप लगाकर अपना पल्ला झाड़ लेते हैं, नयी-नयी योजनाएं बनती रहती हैं, पर जवाबदेही तय नहीं होती है.

प्रदूषण के अलावा गाद जमना, बालू का अनियंत्रित खनन, तटीय कटाव, नदी बेसिन में भूक्षरण, अतिक्रमण जैसी समस्याएं भी गंभीर होती जा रही हैं. यह सब अगर गंगा के साथ हो सकता है, शेष नदियों के साथ हमारे बर्ताव का अनुमान सहजता से लगाया जा सकता है. जलवायु संकट गहराता जा रहा है और पानी की कमी चिंताजनक हो चुकी है. ऐसे में अगर नदियां नहीं बचीं, तो हमारे अस्तित्व पर ही प्रश्नचिन्ह लग जायेगा.

Prabhat Khabar App :

देश, एजुकेशन, मनोरंजन, बिजनेस अपडेट, धर्म, क्रिकेट, राशिफल की ताजा खबरें पढ़ें यहां. रोजाना की ब्रेकिंग हिंदी न्यूज और लाइव न्यूज कवरेज के लिए डाउनलोड करिए

Advertisement

अन्य खबरें

ऐप पर पढें