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Thursday, March 28, 2024

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स्वस्थ कृषि पर जोर

यदि खाद का उपयोग घटता है, तो राजकोष का दबाव भी कम होगा. वर्तमान वित्त वर्ष में इस अनुदान के 2.25 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है, जो पिछले वर्ष से 39 प्रतिशत अधिक है.

खेती में अत्यधिक मात्रा में खाद और रसायनों के उपयोग से मिट्टी की उर्वरा शक्ति का क्षरण तो होता ही है, किसान और उपज के उपभोक्ता का स्वास्थ्य भी प्रभावित होता है. लंबे समय से वैकल्पिक उपायों की जरूरत पर बल दिया जाता रहा है. इस संबंध में केंद्र सरकार ने ‘प्रधानमंत्री प्रणाम योजना के रूप में एक बड़ी पहल की है, जिसकी घोषणा शीघ्र होने का अनुमान है. भारत सरकार रासायनिक उर्वरकों पर अनुदान देती है.

यदि खाद का उपयोग घटता है, तो राजकोष का दबाव भी कम होगा. वर्तमान वित्त वर्ष में इस अनुदान के 2.25 लाख करोड़ रुपये होने का अनुमान है, जो पिछले वर्ष से 39 प्रतिशत अधिक है. इस योजना में राज्यों के उर्वरक उपभोग की मात्रा का आकलन किया जायेगा और वैकल्पिक उपायों को प्रस्तावित किया जायेगा. रिपोर्टों के अनुसार, इस योजना के लिए अलग से धन का आवंटन नहीं किया जायेगा, बल्कि खाद अनुदानों में हुई बचत को ही योजना में लगाया जायेगा. बचत का आधा हिस्सा राज्यों को मिलेगा.

जो वैकल्पिक उर्वरक होंगे, उनका उत्पादन गांव, प्रखंड और जिला स्तर पर किया जायेगा. उल्लेखनीय है कि वैश्विक स्तर पर रासायनिक उर्वरकों के दामों में बड़ी बढ़त हुई है. इसका प्रभाव किसानों पर न हो, इसके लिए सरकार ने अतिरिक्त अनुदान भी दिया है. मनुष्य और मिट्टी के स्वास्थ्य के अनुकूल वैकल्पिक खाद से इस तरह के व्यय बचेंगे तथा स्थानीय स्तर पर नये तरह के उर्वरकों से जुड़े रोजगार पैदा होंगे.

रासायनिक उर्वरक पर्यावरण के लिए भी नुकसानदेह होते हैं. उनमें जो अतिरिक्त पोशाक तत्व होते हैं, उनकी कुछ मात्रा धरती में चली जाती है, जिससे भू-क्षरण होता है तथा भूमि की प्राकृतिक उत्पादकता घटती जाती है. ये तत्व नदियों और समुद्र में पहुंचकर वहां की पारिस्थितिकी को प्रभावित करते हैं. ऐसे उर्वरकों में प्रयुक्त तत्व हृदय रोग, मधुमेह जैसी बीमारियों का कारण भी बनते हैं.

महामारी की तरह फैलते कैंसर रोग का भी संबंध रासायनिक खाद और कीटनाशकों के बेतहाशा इस्तेमाल से है. इस तरह के उपयोग को अचानक नहीं रोका जा सकता है. केंद्र और राज्य सरकारों को वैकल्पिक उर्वरकों के व्यापक उत्पादन को प्राथमिकता देनी चाहिए. अनेक अध्ययनों में पाया गया है कि वर्तमान समय में देश में उपलब्ध जैविक उर्वरकों की गुणवत्ता भी ठीक नहीं है और उनका उत्पादन भी कम हो रहा है. साथ ही, उपलब्धता की समस्या भी है.

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